
सर्वोच्च न्यायालय ने ऑरोविले टाउनशिप परियोजना को बड़ी राहत देते हुए एनजीटी आदेश को रद्द कर दिया है, इससे अब विकास कार्यों पर कोई रोक नहीं होगी
17 मार्च, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने ऑरोविले टाउनशिप परियोजना को बड़ी राहत देते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश को पलट दिया है। गौरतलब है कि एनजीटी ने पर्यावरण मंजूरी के बिना ऑरोविले फाउंडेशन की पुडुचेरी में प्रस्तावित टाउनशिप परियोजना को आगे बढ़ने से रोक दिया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ऑरोविले फाउंडेशन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में पर्यावरण से जुड़ा कोई भी महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं उठा था, और न ही ऑरोविले फाउंडेशन ने किसी भी पर्यावरण कानून का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने माना कि एनजीटी ने आदेश जारी करने में गलती की थी, जो उसे नहीं देने चाहिए थे।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि विकास और स्वच्छ पर्यावरण दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा कि विकास का अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार जितना ही महत्वपूर्ण है और इनमें संतुलन बनाने के लिए सतत विकास की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस अहम फैसले में यह साफ कर दिया कि देश में पर्यावरण संरक्षण जितना जरुरी है, उतना ही विकास भी जरुरी है।
क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने न्यायाधिकरण के समक्ष दायर हलफनामे में अपना रुख बेहद स्पष्ट कर दिया है कि ऑरोविले टाउनशिप परियोजना ईआईए अधिसूचना, 1994 और 2004 में इसके संशोधन से बहुत पहले से निर्माणाधीन है। ऐसे में इस परियोजना को 2004 की उक्त अधिसूचना के तहत एक नई परियोजना नहीं माना जा सकता।
रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मूल मास्टर प्लान से टाउनशिप परियोजना में कोई फेर बदल नहीं किया गया है। इसलिए, इस टाउनशिप परियोजना को 2006 के ईआईए नियमों और उसके अपडेट के तहत पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, दिलचस्प बात यह है कि एक बार फिर बिना किसी रिकॉर्ड के न्यायाधिकरण ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा हलफनामे में दिए स्पष्ट ब्यान को दरकिनार कर दिया। बिना किसी सबूत के न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया कि ऑरोविले फाउंडेशन को काम आगे बढ़ाने के लिए पर्यावरणीय मंजूरी के बाद ही अनुमति दी जा सकती है।
ट्रिब्यूनल ने साइट का निरीक्षण करने और यह जांचने के लिए एक संयुक्त समिति भी गठित कि क्या ज्यादा पेड़ों को बचाने के लिए सड़क की चौड़ाई कम की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे निर्देश स्पष्ट रूप से न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, खासकर तब जब एनजीटी अधिनियम की अनुसूची-I में सूचीबद्ध कानूनों के तहत पर्यावरण से जुड़ा कोई महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं उठाया गया हो।