क्या अरावली अधिसूचना का उल्लंघन है कुसुमपुर पहाड़ी में झुग्गी पुनर्विकास परियोजना, एनजीटी ने मांगा जवाब

दावा है कि डीडीए द्वारा कुसुमपुर पहाड़ी में झुग्गी बस्ती के लिए प्रस्तावित पुनर्निर्माण परियोजना अरावली अधिसूचना का उल्लंघन है
अरावली पहाड़ियां, प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
अरावली पहाड़ियां, प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली में वसंत विहार की कुसुमपुर पहाड़ी में झुग्गी पुनर्विकास परियोजना के संबंध में अधिकारियों को जवाब देने का निर्देश दिया है।

ट्रिब्यूनल ने 10 सितंबर, 2024 को दिल्ली विकास प्राधिकरण, रिज प्रबंधन बोर्ड, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण और दिल्ली के उपराज्यपाल को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 13 दिसंबर, 2024 को होगी।

आवेदक का दावा है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा कुसुमपुर पहाड़ी में झुग्गी बस्ती के लिए प्रस्तावित पुनर्निर्माण परियोजना, 1992 की अरावली अधिसूचना का उल्लंघन करती है। बता दें कि यह नियम अरावली पहाड़ियों की रक्षा करता है और पहाड़ी क्षेत्रों के कुछ विशेष हिस्सों में निर्माण, बिजली व्यवस्था, पेड़ों को काटने या सड़क बनाने पर प्रतिबन्ध लगाता है।

डीडीए ने इस क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल 2019 के आधार पर झुग्गी-झोपड़ियों के पुनर्विकास और पुनर्वास की योजना बनाई है।

आवेदक की दलील है कि वसंत विहार के उत्तर-पश्चिम में 692 एकड़ भूमि को दिल्ली सरकार द्वारा संरक्षित वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया है, जहां जंगलों के अलावा किसी भी अन्य गतिविधि की अनुमति नहीं है।

उनकी यह भी दलील है कि समय के साथ खदान मजदूर कुसुमपुर पहाड़ी में बस गए, और उन्होंने धीरे-धीरे इस क्षेत्र पर अतिक्रमण कर लिया, जिसे अब झुग्गी-झोपड़ी क्लस्टर घोषित कर दिया गया है।

आवेदक ने कुसुमपुर पहाड़ी के लिए 'इन-सीटू स्लम रिहैबिलिटेशन' योजना पर सवाल उठाते हुए कहा है कि वहां 2,800 घर बनाने की योजना है, जिसकी अनुमति नहीं है। उन्होंने यह भी बताया है कि समय के साथ, कुसुमपुर पहाड़ी एक लाख लोगों के साथ एक झुग्गी बस्ती में बदल गई, जिसकी संरक्षित वन क्षेत्र में अनुमति नहीं है।

आवेदक ने केंद्रीय भूजल बोर्ड की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक वसंत विहार क्षेत्र ने अपने भूजल का बहुत ज्यादा दोहन किया है। आवेदन में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि इस तरह के बड़े पैमाने पर होने वाले विकास और आबादी बढ़ने से पर्यावरण को नुकसान हो सकता है, जिससे दक्षिण दिल्ली के पारिस्थितिक संतुलन के लिए खतरा पैदा हो सकता है।

जेपी इंफ्राटेक पर पर्यावरण नियमों को तोड़ने के लगे आरोप, एनजीटी ने मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) और जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड से उन आरोपों पर जवाब देने को कहा है कि वे नोएडा में एक टाउनशिप जेपी विशटाउन में काम करते समय पर्यावरण नियमों को उल्लंघन कर रहे हैं। मामला उत्तरप्रदेश के गौतम बुद्ध नगर का है।

गौरतलब है कि जेपी विशटाउन में रहने वाले लोगों ने शिकायत की थी। अपने आवेदन में उन्होंने जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड पर टाउनशिप में बड़े बदलाव कर पर्यावरण नियमों को तोड़ने का आरोप लगाया है।

आवेदकों का यह भी दावा है कि टाउनशिप यमुना नदी के किनारे स्थित है, यह नदी से सिर्फ दो किलोमीटर दूर है। यह क्षेत्र राष्ट्रीय ओखला पक्षी अभयारण्य का हिस्सा है, जोकि एक राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य है। उन्होंने आगे यह भी आरोप लगाया कि जेपी इंफ्राटेक टाउनशिप के हरित क्षेत्रों में व्यावसायिक निर्माण कर रहा है। इस मामले में अदालत ने नौ सितम्बर 2024 को सुनवाई की थी।

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