
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने क्रोमियम डंप मामले में अदालती आदेश का पालना न करने पर उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की है।
7 मार्च, 2025 को एनजीटी ने टिप्पणी की भले ही उत्तर प्रदेश सरकार ने क्रोमियम डंप से प्रभावित क्षेत्रों की सफाई के लिए एमिकस क्यूरी द्वारा जारी समयसीमा पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन ट्रिब्यूनल द्वारा निर्देशित कोई भी प्रगति रिपोर्ट आज तक दायर नहीं की है।
उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वकील ने स्थगन का अनुरोध करते हुए कहा कि पर्यावरण सचिव को ट्रिब्यूनल के आदेश का पालन करने के लिए चार और सप्ताह की आवश्यकता है। अदालत द्वारा यह आदेश 30 जनवरी, 2025 को दिया गया था।
इस पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए सवाल किया कि निर्देशों का पालन करने के लिए पहले से दिया समय क्यों पर्याप्त नहीं था।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की बेंच ने कहा, "पर्यावरण सचिव की ओर से इस तरह की लापरवाही न तो सराहनीय है और न ही इसे स्वीकार किया जा सकता है।" उन्होंने कड़े शब्दों में इसकी निंदा की। उत्तर प्रदेश की ओर से कोई जवाब न मिलने पर न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के 30 जनवरी के आदेश का पालन करने के लिए 18 मार्च, 2025 तक की अंतिम समय-सीमा तय की है।
इस मामले में अगली सुनवाई 25 मार्च, 2025 को होगी।
क्रोमियम डंप से कहीं ज्यादा बड़ी है समस्या
यह पूरा मामला रनिया, कानपुर देहात, राखी मंडी, कानपुर नगर और फतेहपुर में क्रोमियम डंप से जुड़ा है।
एमिकस क्यूरी ने पिछली कार्यवाही में बताया था कि यह समस्या केवल क्रोमियम डंप की ही नहीं है, क्योंकि भूजल में पारा, फ्लोराइड और आयरन भी पाया गया है। एमिकस क्यूरी ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया था, और वहां की दयनीय स्थिति का खुलासा करते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
राज्य अधिकारियों को तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई का सुझाव देने के लिए 22 जनवरी, 2025 को एमिकस क्यूरी को अनुमति दी गई थी। ये सुझाव उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) को दिए गए।
सिफारिशों में दो महीने के भीतर आरओ-एनएफ जल संयंत्र स्थापित करना शामिल था। एक अन्य सुझाव यह था कि सरकार प्रभावित क्षेत्रों (कानपुर नगर, कानपुर देहात और फतेहपुर) में क्रोमियम, पारा और फ्लोराइड जैसी भारी धातुओं की जांच के लिए रक्त के परीक्षण और सर्वेक्षण कराए।