बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में ‘दर्शन यात्रा’ पर रोक की मांग, एनजीटी ने अधिकारियों को भेजा नोटिस

याचिकाकर्ता का कहना है यह यात्रा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान की नाजुक पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। पिछले साल 14,000 से ज्यादा लोग इस यात्रा में शामिल हुए थे और सीधे पार्क के संवेदनशील क्षेत्र में प्रवेश कर गए थे
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान; प्रतीकात्मक तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान; प्रतीकात्मक तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स
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सारांश
  • बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान की नाजुक पारिस्थितिकी को बचाने के लिए प्रस्तावित ‘दर्शन यात्रा’ पर रोक लगाने की मांग को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने याचिका पर सुनवाई की। यह यात्रा श्री सद्गुरु कबीर धर्मदास साहब वंशावली द्वारा आयोजित की जाने वाली है।

  • याचिकाकर्ता का कहना है कि जब तक इस यात्रा के लिए स्पष्ट और कड़े दिशानिर्देश तैयार नहीं किए जाते, तब तक इसका आयोजन पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

  • उनका कहना है यह यात्रा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान की नाजुक पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। पिछले साल 14,000 से ज्यादा लोग इस यात्रा में शामिल हुए थे और सीधे पार्क के संवेदनशील कोर क्षेत्र में प्रवेश कर गए थे।

  • यात्री चरनगंगा नदी में रोजाना पूजापाठ करते हैं और बिना किसी स्वच्छता व्यवस्था के रातभर रुकते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।

  • एनजीटी ने अधिकारियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है, जिसमें मध्य प्रदेश के चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट भी शामिल हैं।

बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान की नाजुक पारिस्थितिकी को बचाने के लिए प्रस्तावित ‘दर्शन यात्रा’ पर रोक लगाने की मांग को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की केंद्रीय पीठ ने 4 दिसंबर 2025 को सुनवाई की। यह यात्रा श्री सद्गुरु कबीर धर्मदास साहब वंशावली द्वारा आयोजित की जाने वाली है।

याचिकाकर्ता अजय शंकर दुबे ने कहा कि जब तक इस यात्रा के लिए स्पष्ट और कड़े दिशानिर्देश तैयार नहीं किए जाते, तब तक इसका आयोजन पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि संबंधित अधिकारी की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।

एनजीटी ने अधिकारियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है, जिसमें मध्य प्रदेश के चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट भी शामिल हैं। इस मामले में अगली सुनवाई 30 जनवरी, 2026 को होगी।

याचिका में बड़े खतरे की चेतावनी

याचिकाकर्ता का कहना है यह यात्रा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान की नाजुक पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। पिछले साल 14,000 से ज्यादा लोग इस यात्रा में शामिल हुए थे और सीधे पार्क के संवेदनशील कोर क्षेत्र में प्रवेश कर गए थे। यात्री चरनगंगा नदी में रोजाना पूजापाठ करते हैं और बिना किसी स्वच्छता व्यवस्था के रातभर रुकते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।

यह भी पाया गया कि संबंधित फील्ड डायरेक्टर ने आवश्यक सुरक्षा उपाय नहीं किए, जैसे यात्रियों की संख्या सीमित करना और उचित स्वच्छता व्यवस्था सुनिश्चित करना। याचिकाकर्ता का कहना है कि ऐसी यात्राओं के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जरूरी हैं, जैसे सीमित संख्या में अनुमति, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों से प्रवेश जैसे शर्ते शामिल हों।

अनुमति पर भी उठे सवाल

अदालत को बताया गया कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) ने कुछ शर्तों के साथ यात्रा की अनुमति दी थी, जबकि इसी अधिकारी ने पहले वन विभाग के सचिव को पत्र लिखकर ऐसी गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए नए दिशा-निर्देश बनाने का अनुरोध किया था।

मामले की पृष्ठभूमि को देखते हुए कई निर्देश जारी किए गए। वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई), देहरादून की रिपोर्ट के अनुसार, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की ऊंचाई और परिस्थितियों को देखते हुए वहां विजिटर्स की अधिकतम क्षमता 7,000 से 8,000 आंकी गई थी। लेकिन कठिन चढ़ाई और क्षेत्र में जंगली जानवरों की अधिकता के कारण सिर्फ 4,000 से 5,000 लोगों को ही प्रवेश देने की सिफारिश की गई।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि आगंतुकों को मेले में आने से पहले ऑनलाइन पंजीकरण करना होगा और यह प्रक्रिया मेले से एक महीने पहले शुरू की जानी चाहिए। इसके अलावा यह भी निर्देश दिया गया कि यात्रियों को स्थल तक केवल वाहनों से ही पहुंचना होगा, ताकि जंगली जानवरों के हमले का जोखिम कम रहे और उन्हें कम से कम व्यवधान पहुंचे।

आदेश में यह भी बताया गया कि राज्य सरकार के वकील ने एक विस्तृत अध्ययन पेश किया था, जिसमें कई सुधारात्मक कदम सुझाए गए हैं। इसी आधार पर ट्रिब्यूनल ने निर्देश दिया कि सरकार को नियमों और समिति की सलाह को ध्यान में रखते हुए यह तय करना होगा कि क्या अतिरिक्त उपायों की जरूरत है। अगर जरूरत हो, तो तीन महीने के भीतर नए नियम तैयार किए जाएं।

ट्रिब्यूनल की पुरानी सलाह: सीमित संख्या और मुफ्त वाहन

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत का ध्यान 25 नवंबर 2025 के उस पत्र की ओर भी खींचा, जो संभवतः मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) द्वारा फील्ड ऑफिसर, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व को लिखा गया। इसी तरह 2019 के दो पत्र और 11 नवंबर 2025 को श्री सद्गुरु कबीर धाम सभा के अध्यक्ष द्वारा भेजा गया पत्र भी न्यायालय के समक्ष रखा गया।

यह भी बताया गया कि ट्रिब्यूनल के 12 अगस्त 2025 के आदेश में दिए गए सुझावों का पालन जरूरी है। उस आदेश में स्पष्ट कहा गया था कि क्षेत्र में जंगली जानवरों की मौजूदगी को देखते हुए सिर्फ 4,000 से 5,000 श्रद्धालुओं को ही प्रवेश की अनुमति दी जाए। साथ ही श्रद्धालुओं को केवल ऑनलाइन पंजीकरण के बाद ही प्रवेश मिलेगा और उन्हें निःशुल्क उपलब्ध कराए गए वाहनों से ही स्थल तक ले जाया जाए।

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर ने 25 नवंबर 2025 को प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) को लिखे जवाब में कहा था कि 4,000 से 5,000 श्रद्धालुओं को मुफ्त वाहन उपलब्ध कराना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि निजी वाहनों को अंदर आने की अनुमति दी गई, तो इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच सकता है।

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