गैरकानूनी है देवरिया में सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा के लिए दी गई पर्यावरण मंजूरी: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने देवरिया में एक सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा को स्थापित करने के लिए दी गई पर्यावरण मंजूरी को रद्द कर दिया है
गैरकानूनी है देवरिया में सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा के लिए दी गई पर्यावरण मंजूरी: एनजीटी
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने देवरिया में एक सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा (सीबीडब्ल्यूटीएफ) को स्थापित करने के लिए दी गई पर्यावरण मंजूरी को रद्द कर दिया है। यह पर्यावरण मंजूरी उत्तर प्रदेश राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा दी गई थी।

इसके साथ ही अदालत ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) द्वारा इस सुविधा के लिए दी गई स्थापना (सीटीई) की सहमति को भी रद्द कर दिया है। गौरतलब है कि यह मंजूरी पहाड़पुर गांव में एक सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा के लिए जेकेएन पूर्वांचल सीबीडब्ल्यूटीएफ वर्क्स को दी गई थी। मामला उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले का है।

इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने यूपीपीसीबी को निर्देश दिया है कि वो मौजूदा उपचार सुविधाओं के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में कितना जैव-चिकित्सा अपशिष्ट पैदा हो रहा है उसकी सूची बनाए और समीक्षा करे। इसके साथ ही यूपीपीसीबी को यह जांच करने के लिए कहा गया है कि 75 किमी के दायरे में कितना बायो-मेडिकल कचरा पैदा हो रहा है और क्या वहां मौजूद सुविधाएं उसे संभाल सकती हैं।

उन्हें इनके बीच मौजूद अंतर का विश्लेषण करने के लिए भी कहा गया है। इसके अतिरिक्त, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तीन महीनों के भीतर सीबीडब्ल्यूटीएफ दिशानिर्देश 2016 के अनुसार नई उपचार सुविधाओं के विकास के लिए एक कार्य योजना तैयार करने के लिए कहा गया है।

इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पांच अगस्त 2024 को 119 पेजों का फैसला दिया है। इस फैसले में ट्रिब्यूनल ने बीएमडब्ल्यूएम नियम 2016 और सीबीडब्ल्यूटीएफ दिशानिर्देश 2016 के तहत गोरखपुर और अन्य क्षेत्रों में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा स्थापित करने के लिए उपयुक्त भूमि आवंटित करने का निर्देश दिया है। ट्रिब्यूनल ने इसके लिए तीन महीनों का समय दिया है।

मारकंडा नदी को दूषित कर रहे दवा उद्योग, हिमाचल प्रदेश में सिरमौर का है मामला

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मारकंडा नदी में जल प्रदूषण और काला अंब क्षेत्र में वायु प्रदूषण पैदा करने वाले दवा उद्योगों के खिलाफ लगाए आरोपों को गंभीरता से लिया है। पांच अगस्त 2024 को अदालत ने कहा है कि इस मामले ने पर्यावरण सम्बन्धी नियमों के पालन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं। पूरा मामला हिमाचल प्रदेश में सिरमौर के काला अंब क्षेत्र का है।

ट्रिब्यूनल ने काला अंब त्रिलोकपुर में कारखानों से होने वाले प्रदूषण के एक अन्य मामले, धर्मवीर बनाम हरियाणा राज्य को भी इसके साथ ही देखने का फैसला लिया है। इन दोनों मामलों में सुनवाई आठ नवंबर, 2024 को एक साथ की जाएगी।

आवेदक का आरोप है कि दवा उद्योग मारकंडा नदी में जल प्रदूषण और काला अंब क्षेत्र में वायु प्रदूषण कर रहे हैं। आवेदक ने दावा किया है कि ये इकाइयां बिना साफ किए हानिकारक केमिकल, भारी धातुएं और दवा अवशेषों को छोड़ रही हैं, जिससे नदी जल की गुणवत्ता गंभीर रूप से खराब हो रही है। यह उद्योत वायु प्रदूषण में भी इजाफा कर रहे हैं।

गंगा घाट के आसपास जमा प्लास्टिक कचरा, एनजीटी ने मुख्य सचिव से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पांच अगस्त, 2024 को पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव से जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा है। मामला पश्चिम बंगाल में गंगा घाट की सफाई से जुड़ा है।

गौरतलब है कि पांच अक्टूबर, 2023 को दायर एक हलफनामे में आवेदक सुप्रोवा प्रसाद ने घाटों पर मौजूद प्लास्टिक कचरे को लेकर चिंता जताई थी। उनका सुझाव था कि गंगा में प्लास्टिक कचरे और कूड़े को कम करने के लिए घाटों के आसपास के 100 मीटर के क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए।

साथ ही उन्होंने घाटों पर प्लास्टिक के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है, ताकि नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को इसके जहरीले और हानिकारक प्रभावों से बचाया जा सके।

ट्रिब्यूनल ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव से हलफनामा दाखिल करते समय इस पहलू पर गौर करने का निर्देश दिया है।

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