
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी बेंच ने असम के दीपोर बील में हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
इसके साथ ही अदालत ने असम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण और कामरूप के जिला उपायुक्त को भी निर्देश दिए हैं कि वे अपनी प्रतिक्रिया चार सप्ताह के भीतर दाखिल करें।
इस मामले में अगली सुनवाई 25 अगस्त 2025 की होगी।
तेजी से सिकुड़ रहा दीपोर बील
असम ट्रिब्यून में 22 अप्रैल 2025 की छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि गुवाहाटी में तेजी से हो रहे शहरीकरण, अवैध बस्तियों और कचरे की अवैध डंपिंग और अंधाधुंध निपटान के कारण दीपोर बील का आकार लगातार घट रहा है। एक समय में करीब 40 वर्ग किलोमीटर में फैला यह वेटलैंड अब आधे से भी कम रह गया है।
इसके साथ ही, जैव विविधता में भारी गिरावट आई है। स्थानीय लोगों के अनुसार, अब पानी साफ नहीं रहा, मछलियां तेजी से गायब हो रही हैं, और पहले जहां सैकड़ों पक्षी दिखते थे, अब वहां सन्नाटा है। विशेष रूप से स्पॉट-बिल्ड पेलिकन, लेसर एजुटेंट स्टॉर्क और ग्रेटर एजुटेंट जैसे 200 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियां प्रभावित हुई हैं।
कचरा बना सबसे बड़ा दुश्मन
खबर में यह भी कहा गया है कि बील के आसपास के इलाके, जो भारी बारिश में भी सूखे रहते थे, अब कई दिनों तक पानी से भरे रहते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक वेटलैंड की बिगड़ती सूरत का सबसे बड़ा कारण बोरागांव लैंडफिल (कचरा डंपिंग स्थल) है, जो बील के बेहद नजदीक है। जहां कोर्ट के आदेशों के बावजूद कचरा की डंपिंग बदस्तूर जारी है, और हर मानसून में कचरे का एक बड़ा हिस्सा बहकर बील में पहुंच जाता है, जिससे जल प्रदूषण और जैव विविधता पर गहरा असर पड़ रहा है।
एनजीटी ने अवैध सड़क निर्माण पर उठाया कदम, सरकारी विभागों को भेजा नोटिस
अरुणाचल प्रदेश के पापुम पारे जिले में गंगा से ताइपू और गंगा से टैगो के बीच संवेदनशील कैचमेंट क्षेत्रों में अवैध सड़क निर्माण के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाया है। एनजीटी की पूर्वी बेंच ने इस संबंध में चार सप्ताह के भीतर संबंधित विभागों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
इस मामले में अदालत ने जिन विभागों को नोटिस जारी किया है, उनमें अरुणाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (शिलांग क्षेत्रीय कार्यालय), पापुम पारे जिले के जिला मजिस्ट्रेट और अरुणाचल प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक शामिल हैं।
गौरतलब है कि यह मामला 22 अप्रैल 2025 को अरुणाचल टाइम्स में प्रकाशित खबर के आधार पर एनजीटी द्वारा स्वत: संज्ञान में लिया गया। इसके बाद इसे एनजीटी की पूर्वी बेंच को सौंप दिया गया।
इस खबर के मुताबिक, लगातार शिकायतों के बावजूद अवैध रूप से मिट्टी की कटाई और सड़क बनाने का काम जारी है। इसकी वजह से इलाके का पारिस्थितिक संतुलन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। पेड़ों की कटाई और भूमि क्षरण से प्राकृतिक जल स्रोतों में गंदगी घुल रही है, जिसके चलते गांववालों को कीचड़युक्त और असुरक्षित पानी पीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
खबर में यह भी बताया गया कि स्थानीय वन अधिकारियों को कई बार शिकायतें दी गईं, लेकिन उन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इससे लोगों में नाराजगी और स्वास्थ्य को लेकर चिंता बढ़ रही है।
मेलूर तालुक दूषित पानी की सप्लाई, एनजीटी ने मामले में लिया स्वत: संज्ञान
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने तमिलनाडु के मदुरै जिले के मेलूर तालुक में गांवों को दूषित पानी की आपूर्ति के मामले में गंभीर चिंता जताई है। अदालत ने कहा कि यह मामला जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के उल्लंघन को दर्शाता है। इस मामले में 22 जुलाई 2025 को सुनवाई हुई थी।
इस पर अदालत ने तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मदुरै के जिलाधिकारी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामला अब एनजीटी की दक्षिणी बेंच के समक्ष विचाराधीन है।
गौरतलब है कि यह मामला 13 जुलाई 2025 को 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित एक खबर के आधार पर अदालत द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया गया है। खबर में कहा गया है कि कावेरी संयुक्त पेयजल आपूर्ति योजना (सीडब्ल्यूएसएस) की पाइपलाइन लीक होने के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई।
रिपोर्ट के अनुसार, तिरुवडवूर, कोट्टमपट्टी, तेरक्कुथेरू और ईडयारपट्टी सहित कई गांवों के करीब 1.2 लाख परिवार कावेरी संयुक्त पेयजल आपूर्ति योजना पर निर्भर हैं। लेकिन बीते कुछ दिनों से उन्हें कथित तौर पर बिना साफ किया पानी मिल रहा है। खबर में आगे कहा गया है कि इस दौरान बोरवेल के पानी की आपूर्ति शुरू की, लेकिन वह भी बिना किसी उपचार के सीधे लोगों तक पहुंचाया गया, जिससे स्वास्थ्य को खतरा बढ़ने की आशंका है।