लोगों की सुरक्षा की कीमत पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाना कितना सही, क्या कहता है उच्च न्यायालय

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है कि आवारा कुत्तों को खिलाने का इरादा नेक है, लेकिन इससे आम लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए
फोटो: आईस्टॉक
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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है कि आवारा कुत्तों को खिलाने का इरादा नेक है, लेकिन इससे आम लोगों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। पांच अक्टूबर, 2023 को अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने कहा कि सड़क पर कुत्तों को खिलाने के अलावा, किसी भी नगर निगम या सार्वजनिक विभाग ने ऐसी कोई जानकारी नहीं दी है कि जो लोग आवारा कुत्तों को खाना खिलाते हैं, वे उनकी नसबंदी और टीकाकरण के कार्य में भी मदद के लिए भी आगे आ रहे हैं।

उच्च न्यायालय ने अपने निर्देश में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड द्वारा तीन मार्च, 2021 को जारी एक दिशानिर्देश पर भी प्रकाश डाला है, जिसमें आरडब्ल्यूए और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के प्रतिनिधियों की मदद से उन जगहों की पहचान की बात कही गई है जहां कॉलोनियों में इन आवारा कुत्तों को खाना दिया जा सकता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि कॉलोनी में आवारा कुत्तों को खाना दिए जाने वाली इन जगहों पर इससे जुड़ी किसी भी गतिविधि से दूसरे लोगों को समस्या नहीं होनी चाहिए। उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया है कि दिशानिर्देश आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के लोगों के वास्तविक इरादे को पहचानते हैं।

हालांकि साथ ही यह लोगों को यह सुनिश्चित करने के लिए भी बाध्य करते हैं कि उनके कार्यों से दूसरे लोगों को परेशानी या असुविधा नहीं होने चाहिए। न ही उनके स्वास्थ्य के लिए किसी तरह का खतरा पैदा होना चाहिए। ऐसे भी कुछ मामले सामने आए हैं जहां कब्बन पार्क में लोग टहलने के लिए आते हैं वहां आवारा कुत्तों को खाना दिया जाता है।

ऐसे में उच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार को इस मामले में सुधार के लिए आवश्यक कार्रवाइयों की रूपरेखा बताते हुए मुद्दे पर विस्तृत प्रतिक्रिया देने का आदेश दिया है।

कुत्ते जानवरों की कुछ ऐसी प्रजातियों में शामिल हैं जो हमेशा से इंसानों का साथी रहे हैं। शायद यही वजह है कि आवारा कुत्ते, गाय, बंदर और कबूतर हमेशा से भारतीय जीवन का हिस्सा रहे। मगर, हाल के दशकों में जिस तरह से शहरों में इनकी आबादी में इजाफा हुआ है, वो धीर-धीर इंसानी सुरक्षा के लिए भी खतरा बनते जा रहे हैं। ऐसे ही अनेकों मामले हाल के कुछ वर्षों में बेहद चर्चा का विषय बन गए थे।

2022 में कुत्तों के हमले के 19.2 लाख मामले आए थे सामने

डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 के दौरान भारत में कुत्तों के काटने के कुल 19.2 लाख मामले सामने आए थे, यानी कि हर दिन करीब 5,200 लोगों को कुत्तों ने काटा था। हालांकि साल 2019 में या कोविड-19 की दस्तक से पहले यह आंकड़ा 72.8 लाख दर्ज किया गया था।

इस तरह के बढ़ते मामलों के चलते वर्ष 2021 में भारत सरकार ने इंसानों में होने वाले रेबीज के सभी मामलों को दर्ज करना अनिवार्य कर दिया। नतीजन उस साल रेबीज के मामले बढ़कर 47,291 हो गए, जो 2020 में महज 733 दर्ज किए गए थे।

देखा जाए तो समय के साथ शहरों में रहने कुत्तों के व्यवहार में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। ये शहरी व्यवस्था के अनुरूप खुद को ढाल रहे हैं। हाल ही में जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि बढ़ते तापमान और प्रदूषण के साथ कुत्ते कहीं ज्यादा गुस्सैल होते जाएंगें, साथ ही उनके काटने की घटनाएं काफी बढ़ सकती हैं।

रिसर्च के अनुसार आम दिनों की तुलना में गर्म, प्रदूषित, धूल-धुंए भरे दिन में इनके हमले की आशंका 11 फीसदी तक बढ़ सकती हैं। देखा जाए तो इन निरीह जीवों के व्यवहार में आते बदलावों के लिए कहीं न कहीं हम इंसान भी जिम्मेवार हैं। कुत्तों के हमलों में पीड़ित और कुत्ते दोनों को गंभीर चोटें आ सकती हैं।

ऐसे में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए, उन सभी कारकों को समझना जरूरी है जो जानवरों की आक्रामकता में योगदान कर रहे हैं। कुत्ते के काटने का एक प्रमुख कारण डर है, जब किसी कुत्ते को खतरा लगता है या वो अपने आप को घिरा या डरा हुआ महसूस करता है, तो वह आत्मरक्षा में काटने का सहारा ले सकता है। ऐसे में इन सभी कारणों पर भी ध्यान देना जरूरी है।

देखा जाए तो इंसानों और इन जीवों के मिलकर रहने के लिए केवल उनकी संख्या को नियंत्रित करना शायद पर्याप्त नहीं है। इसके लिए मानव को भी अपने व्यवहार में बदलाव की जरूरत है, ताकि ये जीव शहर के लिए खतरा न बनें।

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