यदि प्रकृति को बचाना है तो विश्व की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को अपने प्रकृति-आधारित समाधानों पर किए जा रहे निवेश को आज के मुकाबले दोगुना से ज्यादा करने की जरुरत है।
इसका मतलब है कि 2050 तक इसपर हर साल 21.4 लाख करोड़ रुपए का निवेश करने की जरुरत होगी। रिपोर्ट के मुताबिक इस निवेश की जरुरत जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और भूमि क्षरण जैसे संकटों से निपटने के लिए है।
गौरतलब है कि विश्व की यह 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जिन्हें जी20 के नाम से जाना जाता है यह हर साल इसपर अभी करीब 9 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इस तरह देखा जाए तो इसमें करीब 140 फीसदी का इजाफा करने की जरुरत है। यह जानकारी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर इन द जी20’ में सामने आई है।
इस रिपोर्ट को यूनाइटेड नेशन एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी), वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ), द इकोनॉमिक्स ऑफ लैंड डिग्रडेशन इनिशिएटिव (ईएलडी), ड्यूश गेसेलशाफ्ट फर इंटरनेशनेल जुसामेनरबीट (जीआईजेड) और विविड इकॉनोमिक्स ने मिलकर तैयार किया है।
रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि वैश्विक स्तर पर प्रकृति आधारित समाधानों पर जितना भी निवेश किया गया था उसका करीब 92 फीसदी हिस्सा जी20 देशों का था। हालांकि जी20 देशों ने इसपर जितना भी निवेश किया था उसमें से करीब 87 फीसदी यानी करीब 7.9 लाख करोड़ रुपए अपने देश में ही आंतरिक रूप से सरकारी कार्यक्रमों पर खर्च किए थे।
इन जी20 देशों में भारत सहित अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि जी20 देशों की तुलना में अन्य देशों द्वारा जो इसपर निवेश किया जा रहा है उसके अंतर को भरना कहीं ज्यादा कठिन है। हालांकि जी20 देशों द्वारा प्रकृति-आधारित समाधानों पर किए जा रहे कुल निवेश का केवल 2 फीसदी हिस्सा ही आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) के लिए दिया जा रहा है।
इसी तरह निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी केवल 11 फीसदी (1.05 लाख करोड़ रुपए) ही है जबकि देखा जाए तो यह निजी क्षेत्र ज्यादातर जी20 देशों के जीडीपी में 60 फीसदी से ज्यादा का योगदान देता है।
प्रकृति का संरक्षण इंसान के विकास के लिए भी है जरुरी
यह रिपोर्ट 2021 में जारी एक अन्य रिपोर्ट 'द स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर' पर आधारित है, जिसमें 2030 तक प्रकृति-आधारित समाधानों पर किए जा रहे निवेश को तीन गुना किए जाने की बात कही थी। साथ ही इस रिपोर्ट में 2020 से 2050 के बीच प्रकृति-आधारित समाधानों के लिए दिए जा रह वित्तपोषण में मौजूद 307.8 लाख करोड़ रुपए (4.1 लाख करोड़ डॉलर) के अंतर को दूर करने की बात कही थी।
ऐसे में रिपोर्ट में सामने आए निष्कर्ष नेट जीरो एमिशन और प्रकृति को ध्यान में रखकर किए गए निवेश में तुरंत इजाफा करने की जरुरत को बल देते हैं। ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क और जलवायु परिवर्तन को लेकर हुई यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस कॉप-26 में भी इस पर जोर दिया गया था।
इस बारे में यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक, इंगर एंडरसन का कहना है कि जैव विविधता को हो रहा नुकसान पहले ही हर साल कुल उत्पादन के 10 फीसदी हिस्से को नुकसान पहुंचा रहा है।
ऐसे में यदि हम प्रकृति-आधारित समाधानों पर पर्याप्त निवेश नहीं करेंगें तो उसका असर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों की प्रगति पर भी पड़ेगा। उनके अनुसार यदि हम पर्यावरण को बचाने के लिए अभी प्रयास नहीं करते हैं तो सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करना लगभग नामुमकिन हो जाएगा।
सरकारों, वित्तीय संस्थानों और व्यवसायों को भविष्य में अपने आर्थिक निर्णय लेते समय प्रकृति को भी ध्यान में रखना होगा। जिससे निवेश के बीच की इस खाई को दूर किया जा सके। ऐसे में जरुरी है कि प्रकृति आधारित समाधानों को न केवल सरकारी क्षेत्र, बल्कि निजी क्षेत्र द्वारा भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
प्रकृति पर किया यह निवेश न केवल हम इंसानों बल्कि धरती पर मौजूद अन्य जीवों के लिए भी फायदेमंद होगा। इससे जहां जीवन की गुणवत्ता में सुधार आएगा वहीं दूसरी तरफ रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगें।
एक डॉलर = 75.07 भारतीय रुपए