
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तरकाशी में गंगोत्री नेशनल हाईवे पर ढलान और भूस्खलन से सुरक्षा जैसे जरूरी कार्यों में देरी पर चिंता जताई है। न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जमीनी स्तर पर तुरंत कार्रवाई जरूरी है, वरना क्षेत्र में दुर्घटना की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
बेंच ने कहा कि नेशनल हाईवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) और बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। इस पर अदालत ने निर्देश दिया है कि दोनों एजेंसियों के उच्च अधिकारियों की तुरंत संयुक्त बैठक बुलाई जाए, ताकि जिम्मेदारी तय हो और जरूरी काम समय पर पूरा हो सके।
बरेठी में बढ़ा खतरा
याचिकाकर्ता का आरोप है कि एनएचआईडीसीएल ने गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर भूस्खलन सुरक्षा गैलरी, ढलान सुरक्षा और नदी सुरक्षा के लिए कोई कार्रवाई नहीं की है। खासतौर पर उत्तरकाशी के बरेठी क्षेत्र में भूस्खलन और ढलान की सुरक्षा के साथ-साथ मवेशियों के लिए बाड़ लगाना आवश्यक है।
बीआरओ की ओर से पेश वकील ने बरेठी में ढलान सुरक्षा कार्य की साइट निरीक्षण रिपोर्ट का हवाला दिया है। रिपोर्ट में पाया गया है कि घाटी की ओर की ढलान पूरी तरह कट चुकी है, जिससे सात खंभों की नींव खुल गई है, इससे उन्हें नुकसान होने का खतरा मंडरा रहा है। ढलान के नीचे भारी मलबा जमा है, जो नुकसान की गंभीरता को दिखाता है।
कटाव को रोकने के लिए एनएचआईडीसीएल ने सीमेंट ग्राउटिंग की है, लेकिन इसका असर समय के साथ ही पता चलेगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, सड़क के किनारे धंसने के संकेत मिले हैं, जिससे दो जगह क्रैश बैरियर भी क्षतिग्रस्त हुए हैं।
बीआरओ के वकील ने कहा कि एनएचआईडीसीएल इस परियोजना की कार्यकारी एजेंसी है, इसलिए ढलान और भूस्खलन सुरक्षा गैलरी जैसे सुरक्षा के कार्य उसी को करने चाहिए थे। वहीं एनएचआईडीसीएल के वकील का कहना है कि अब 'डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड' खत्म हो चुका है, इसलिए ये काम अब बीआरओ को करना चाहिए।uttar
बिना अध्ययन के जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट को दे दी गई मंजूरी, एनजीटी में हुई सुनवाई
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा रिपोर्ट दाखिल करने में देरी पर नाराजगी जताई है। इस मामले में 8 अगस्त 2025 को सुनवाई हुई थी।
गौरतलब है कि इस मामले में एसईआईएए के वकील ने तीन जिलों बांदा, बस्ती और शामली से संबंधित रिप्लेनिशमेंट (खनन क्षेत्र की पुनः पूर्ति) स्टडी से जुड़ी जानकारी देने के लिए अदालत से समय मांगा था। इसमें जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (डीएसआर) को मंजूरी देते समय पुनःपूर्ति अध्ययन की तैयारी और विचार शामिल था। अदालत ने यह मांग स्वीकार कर ली थी, लेकिन 8 अगस्त, 2025 तक भी यह रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई।
अब राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण ने फिर से तीन हफ्ते का अतिरिक्त समय मांगा है, जिसे एनजीटी ने आखिरी बार स्वीकार करते हुए सख्त चेतावनी दी है कि अगली बार इस आधार पर कोई और समय नहीं मिलेगा।आरोप है कि इन तीनों जिलों की जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट को बिना रिप्लेनिशमेंट स्टडी के ही मंजूर कर दिया गया।
खतरे में झांसी की हरियाली? एनजीटी में अवैध कब्जों और लापरवाही की शिकायत
झांसी विकास प्राधिकरण ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सूचित किया है कि झांसी मास्टर प्लान 2031 हाल ही में अधिसूचित किया गया है। साथ ही 7 अगस्त 2025 को प्राधिकरण ने इसे पेश करने के लिए अदालत से थोड़ा समय मांगा गया है।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने 10 अक्टूबर 2023 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि इस आदेश के अनुसार संबंधित अधिकारियों को ग्रीन बेल्ट की सुरक्षा और बहाली के लिए जल्द कार्रवाई करनी थी। लेकिन 25.31 हेक्टेयर खाली भूमि पर अब तक झांसी विकास प्राधिकरण और वन विभाग ने पौधारोपण नहीं किया है और न ही अब तक कोई जवाब दिया है।
झांसी विकास प्राधिकरण की ओर से पेश वकील ने एनजीटी को भरोसा दिलाया है कि वह आदेश का पालन हो रहा है या नहीं, उसकी जांच करेंगे और तीन सप्ताह के भीतर अदालत में हलफनामा दाखिल करेंगे। याचिका में शिकायत की गई थी कि ददियापुरा, झांसी खास, वुधा, पिचोर और नया गांव क्षेत्रों में पार्क और ग्रीन बेल्ट पर अवैध कब्जे हुए हैं।