अरावली खनन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी को दिए जांच के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक यदि राज्य सरकार को लगता है कि अरावली रेंज में खनन गतिविधियां पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं तो उसके पास उन्हें रोकने का पूरा अधिकार है
अरावली खनन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी को दिए जांच के निर्देश
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) से अरावली खनन मामले में जांच करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी से कहा है कि जहां तक खनन गतिविधियों को अनुमति देने का सवाल है, क्या अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं का वर्गीकरण जारी रखने की जरूरत है, वो इसकी जांच करे।

अदालत ने समिति को यह भी सुझाव दिया है उसे अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले भूविज्ञान से जुड़े विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जनवरी को यह भी कहा है कि अगर राज्य को लगता है कि अरावली रेंज में खनन गतिविधियां पर्यावरण के लिए हानिकारक है, तो राज्य सरकार के पास अरावली रेंज में ऐसी गतिविधियों को रोकने का अधिकार है।

एनजीटी ने हमीरपुर नगर परिषद से मांगी ताजा रिपोर्ट, कचरे के प्रबंधन से जुड़ा है मामला

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हमीरपुर नगर परिषद से एक नई रिपोर्ट सौंपने को कहा है। गौरतलब है कि 16 जनवरी, 2024 को दिया यह आदेश वहां मौजूद कचरे के निपटान से जुड़ा है।

एनजीटी ने इस नई रिपोर्ट में परिषद से अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करने की दिशा में हुई प्रगति पर जानकारी साझा करने को कहा है। साथ ही 31 मार्च, 2024 तक पुराने कचरे को निपटाने की दिशा में क्या प्रगति हुई है, इस संदर्भ में ताजा जानकारी भी मांगी है। हमीरपुर नगर परिषद को 10 अप्रैल 2023 तक रिपोर्ट को कोर्ट में सौंपना के लिए कहा गया है।

बता दें कि इस मामले में हमीरपुर नगर परिषद ने 29 दिसंबर, 2023 को अपना जवाब दाखिल किया था, जिसमें कहा गया था कि वर्षों से जमा पुराने कचरे से निपटने के लिए पहले ही कदम उठाए जा चुके हैं। साथ ही यह भी जानकारी दी थी कि वहां हर दिन 6.2 टन कचरा पैदा हो रहा है और उसे प्रोसेस करने के लिए टेंडर की प्रक्रिया चल रही है, जिसे अगले 10 दिनों के भीतर अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है।

कोर्ट को जानकारी दी गई है कि शुरूआत में पुराने कचरे की मात्रा करीब 2000 मीट्रिक होने का अनुमान लगाया गया था। हालांकि, बाद में पता चला कि यह उससे कहीं ज्यादा है। ऐसे में इसके निपटान की प्रक्रिया में कहीं अधिक समय लग सकता है।

माथेरान में सीमित संख्या में ही ई-रिक्शा को चलने की दी जाएगी अनुमति: सुप्रीम कोर्ट

महाराष्ट्र के वकील ने शीर्ष अदालत को जानकारी दी है कि आईआईटी बॉम्बे के साथ मिलकर निगरानी समिति माथेरान में कंक्रीट के बजाय मिट्टी के पेवर ब्लॉक का उपयोग करने पर विचार कर रही है। अदालत को बताया गया है कि कटाव को रोकने के लिए मिट्टी के पेवर ब्लॉकों का उपयोग करना आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि अनुमति मिलती है, तो केवल मौजूदा ठेला चालकों को ही ई-रिक्शा उपलब्ध कराए जाएंगे, ताकि उनके रोजगार जाने से हुए नुकसान की भरपाई की  जा सके। इसके साथ ही माथेरान में सीमित संख्या में ही ई-रिक्शा को चलने की अनुमति दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने निगरानी समिति को यह भी जांच करने को कहा है कि ई-रिक्शा को किन सड़कों और गलियों में चलने की अनुमति दी जाए और कितनी संख्या में ई-रिक्शा चलाए जाएंगे।

गौरतलब है कि माथेरान एक छोटा सा कार-मुक्त हिल स्टेशन है, जो महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की कर्जत तालुका में स्थित है। यह पश्चिमी घाट में समुद्र तल से करीब 800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है।

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