नीति आयोग का शहरी सूचकांक : एसडीजी हासिल करने में शिमला पहले और 20वें पायदान पर दिल्ली

डैशबोर्ड के अनुसार 56 में से 21 शहर अपनी नगरपालिका में ठोस कचरे का 100 फीसदी उपचार कर रहे हैं। वहीं 31 शहरी क्षेत्रों के 10 में से 9 घर खाना पकाने के लिए साफ-सुथरे ईंधन का उपयोग कर रहे हैं
नीति आयोग का शहरी सूचकांक : एसडीजी हासिल करने में शिमला पहले और 20वें पायदान पर दिल्ली
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नीति आयोग द्वारा जारी हालिया एसडीजी अर्बन इंडेक्स में प्रदूषण से जूझ रही दिल्ली को 20वें पायदान पर रखा गया है, जबकि शिमला को 75.5 अंकों के साथ इस इंडेक्स में पहले स्थान पर रखा गया है, जो दर्शाता है कि सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में शिमला सबसे अव्वल है। वहीं 73.29 अंकों के साथ कोयंबटूर को दूसरे स्थान और 72.36 अंकों के साथ चंडीगढ़ को तीसरे पायदान पर जगह दी गई है।

इसके बाद तिरुवनंतपुरम को भी 72.36 अंकों के साथ तीसरे, कोच्ची को 72.29 अंकों के साथ पांचवे, पणजी को 71.86 अंकों के साथ छठे, पुणे को 71.21 अंकों के साथ सातवें, तिरुचिरापल्ली को 70 अंकों के साथ आठवें और अहमदाबाद एवं नागपुर को 69.79 अंकों के साथ सम्मिलित रूप से नौवें पायदान पर रखा गया है।

नीति आयोग के अनुसार, सतत विकास के हर एक लक्ष्य के लिए शहरी क्षेत्रों की रैंकिंग शून्य से 100 के पैमाने पर की गयी है। यहां सौ का मतलब है कि शहरी क्षेत्र ने 2030 के लिये निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर लिया है, जबकि शून्य से तात्पर्य है कि वो शहर लक्ष्य को हासिल करने से अभी मीलों दूर है।

गौरतलब है कि इस इंडेक्स में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मापदंडों का ध्यान रखा गया है। इस इंडेक्स और इससे जुड़े डैशबोर्ड को इंडो-जर्मन डेवलपमेंट कोऑपरेशन के तहत नीति आयोग, जीआईजेड और बीएमजेड के सहयोग से तैयार किया गया है। जिससे शहरों में सतत विकास के लक्ष्यों की दिशा में हो रही प्रगति के विषय में ताजा जानकारी हासिल हो सके। 

52.43 अंकों के साथ सबसे निचले पायदान पर रहा धनबाद

वहीं इस इंडेक्स में सबसे फिसड्डी रहे शहरों की बात करें तो इसमें धनबाद को सबसे निचले पायदान पर रखा गया है जिसे 52.43 अंक दिए गए हैं। वहीं मेरठ, ईटानगर, गुवाहाटी, पटना, जोधपुर, कोहिमा, आगरा, कोलकाता, फरीदाबाद का प्रदर्शन सबसे खराब रहा था, जो अंतिम 10 शहरों में शामिल थे।  गौरतलब है कि इन सभी शहरों को सतत विकास के लक्ष्यों में हो रही प्रगति के आधार पर सबसे निचले स्थान पर रखा गया है। 

यह आंकड़े आधिकारिक स्रोतों जैसे एनएफएचएस (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे), एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो), यू-डीआईएसई (शिक्षा के लिये एकीकृत जिला सूचना प्रणाली), विभिन्न मंत्रालयों के पोर्टल और अन्य सरकारी स्रोतों से लिए गए हैं।

डैशबोर्ड के अनुसार 56 में से 21 शहर अपने नगरपालिका में 100 फीसदी ठोस कचरे का उपचार कर रहे हैं। यदि जहरीले कचरे की बात करें तो यह शहर हर साल औसतन प्रति व्यक्ति 20 किलोग्राम जहरीला कचरा पैदा करते हैं, जबकि यदि राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो देश में प्रति व्यक्ति 8 किलोग्राम जहरीला कचरा पैदा हो रहा है। 

वहीं यदि स्वास्थ्य की बात करें तो इन 56 शहरी क्षेत्रों में से करीब 16 फीसदी शहरों में कम से कम 50 फीसदी घरों के एक सदस्य को स्वास्थ्य बीमा या स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ मिल रहा है। वहीं 55 शहरों में 15 से 49 वर्ष के आयुवर्ग की महिलाओं में से 25 फीसदी से ज्यादा एनीमिया से प्रभावित हैं। इसी तरह 56 में से 19 शहरों में जन्म के समय लिंगानुपात 950 या उसके अधिक है। 

यदि शिक्षा को देखें तो 96.4 फीसदी शहरों में माध्यमिक स्तर पर जन शिक्षक अनुपात 30 से कम है। 35 शहरों के 10 में से 9 घरों के पास साफ-सफाई की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसी तरह 56 में से 31 शहरी क्षेत्रों के कम से कम 10 में से 9 घर खाना पकाने के लिए साफ-सुथरे ईंधन का उपयोग कर रहे हैं। हालांकि देखा जाए तो वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ अपराध की जो औसत दर है वो 54 शहरों में राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है जिसे प्रति लाख पर 38.2 दर्ज किया गया है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 26.7 प्रति लाख है। 

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