
नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे कुछ विदेशी चींटियां जो अब तक केवल इमारतों और ग्रीनहाउस जैसी गर्म जगहों तक सीमित थीं, अब बाहरी वातावरण में भी पनपने की क्षमता पा रही हैं। यह बदलाव स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
दुनिया भर में पेड़-पौधों, मिट्टी और सामान के आदान-प्रदान के साथ कई कीड़े-मकोड़े, खासकर चींटियां, अनजाने में नए इलाकों में पहुंच जाती हैं।
स्टडी से पता चला है जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में इजाफा होगा, वैसे-वैसे ये 'इनडोर चींटियां' बाहर के माहौल में भी खुद को ढालने लगेंगी। यह एक ऐसा खामोश हमला है, जिसकी आहट तब तक नहीं होगी, जब तक नुकसान सामने न आ जाए।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर टोबी सैंग ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "हम आमतौर पर सोचते हैं कि विदेशी प्रजातियां केवल बाहरी वातावरण पर हमला करती हैं, लेकिन ठंडे क्षेत्रों में इमारतें, घर और ग्रीनहाउस इनके लिए एक तरह के सुरक्षित अड्डे बन जाते हैं। यहां वे तब तक टिकी रहती हैं जब तक की बाहर का तापमान उनके अनुकूल नहीं हो जाता।"
रिसर्च में क्या कुछ आया है सामने?
उन्होंने इन चींटियों को दो श्रेणियों में बांटा है, इनमें पहली वो प्रजातियां हैं जो केवल घरों या ग्रीनहाउस जैसी जगहों में पाई गई, जिन्हें 'इनडोर-रिस्ट्रिक्टेड' कहा गया। वहीं दूसरी वो चींटियां हैं जो बाहरी वातावरण में भी आसानी से पनप सकती हैं। इन्हें "स्वाभाविक रूप से स्थापित" यानी ‘नेचुरलाइज्ड’ कहा गया।
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल डाइवर्सिटी एंड डिस्ट्रीब्यूशन्स में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में इस बात की जांच की गई है कि क्या मौसम और तापमान का असर इस बात पर पड़ता है कि चींटियां केवल घरों में सीमित रहती हैं या बाहर भी फैल सकती हैं।
शोधकर्ताओं ने इसके साथ ही हर क्षेत्र के तापमान और बारिश के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया है। उन्होंने मॉडलिंग के जरिए यह अनुमान लगाया है कि अगर तापमान 2 या 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, तो खासकर उत्तरी गोलार्ध के देशों में कौन-से इलाके इन चींटियों के लिए उपयुक्त बन सकते हैं।
ठंडी जगहों में छिपी चींटियां, अब फैल सकती हैं बाहर
शोधकर्ताओं के मुताबिक अपने छोटे आकार की वजह से विदेशी चींटियों को इमारतों या ग्रीनहाउस में पहचानना मुश्किल होता है, और इसी कारण उनकी आबादी चुपचाप बढ़ती जाती है।
अधिकतर चींटियां करीब-करीब हर तरह का खाना खा लेती हैं, इसलिए उन्हें खाने की कमी नहीं होती। साथ ही, घरों के भीतर उनके कोई बड़े दुश्मन भी नहीं होते। ऐसे में अगर एक बार उनका घोंसला बन गया, तो इनडोर माहौल उनके लिए सुरक्षित और अनुकूल हो जाता है, जहां वे आसानी से फैल सकती हैं।
शोध से पता चला कि गर्म इलाकों में पहुंची चींटियां आसानी से बाहरी वातावरण में ढल जाती हैं। उदाहरण के तौर पर अमेरिका के फ्लोरिडा और ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड जैसे इलाकों में अधिकतर विदेशी चींटियां बाहर भी पाई गईं। वहीं, यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे ठंडे क्षेत्रों में ज्यादातर विदेशी चींटियां जो अब तक केवल घरों के भीतर सीमित हैं। वो बढ़ते तापमान के साथ, अब बाहर भी फैल सकती हैं।
खतरे की दस्तक
शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि कनाडा के ओंटारियो में फिलहाल विदेशी चींटियों की पांच प्रजातियां पाई जाती हैं, जो केवल घरों या इमारतों के अंदर ही जीवित रहती हैं। इनमें से अगर एक प्रजाति बाहर फैल गई, तो वो गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।
वास्मानिया ऑरोपंक्टाटा, जिसे आमतौर पर 'इलेक्ट्रिक एंट' या 'लिटिल फायर एंट' भी कहा जाता है, एक छोटी सुनहरे-भूरे रंग की चींटी है जो मध्य और दक्षिण अमेरिका की मूल निवासी है। इसका नाम इसके छोटे आकार के मुकाबले बेहद तेज डंक के कारण पड़ा है। यह चींटी अब तक पांच महाद्वीपों में खुले वातावरण में फैल चुकी है, जिसमें उत्तरी अमेरिका भी शामिल है, और फिलहाल यह कनाडा के कई हिस्सों में ग्रीनहाउस के अंदर पाई जाती है।
वास्मानिया ऑरोपंक्टाटा को आईयूसीएन ने दुनिया की 100 सबसे खतरनाक विदेशी प्रजातियों में शामिल किया है। यह चींटी देशी चींटियों से ज्यादा तेजी से बढ़ती है और अन्य कीटों एवं छोटे जीवों का शिकार भी करती है। यह कृषि के लिए भी बेहद नुकसानदेह है, क्योंकि यह खेतों में काम करने वाले मजदूरों और जानवरों को काटती हैं। इसके डंक के गंभीर मामलों में आंखों की रौशनी भी जा सकती है।
ये चींटियां फसलों के लिए भी खतरा हैं, क्योंकि ये हानिकारक कीट जैसे एफिड्स को शिकारी से बचाती हैं, ताकि वे उनसे मिठास वाला एक तरल पदार्थ 'हनीड्यू' ले सकें, जो इनका मुख्य भोजन होता है। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने आर्जेंटीनियन ऐंट को भी स्थानीय प्रजातियों, कृषि और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा बताया है।
रिसर्च से पता चला है कि अगर तापमान बढ़ता रहा तो उत्तरी गोलार्ध, खासकर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और फिनलैंड जैसे देश, इन इनडोर चींटियों के बाहर फैलने की चपेट में सबसे पहले आएंगे।
सैंग का कहना है कि हम अक्सर सोचते हैं कि विदेशी प्रजातियां सिर्फ बाहरी वातावरण को प्रभावित करती हैं, लेकिन घरों के अंदर मौजूद ये चींटियां भी भविष्य में बड़ा संकट बन सकती हैं।“
उनके मुताबिक अगर हमने अभी ध्यान नहीं दिया, तो ये प्रजातियां हमारी पारिस्थितिकी, कृषि और स्वास्थ्य पर भारी असर डाल सकती हैं। ऐसे में इनकी निगरानी और नियंत्रण के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
भारत में किए एक अन्य अध्ययन में पर्वतों के मध्य हिस्सों में रहने वाले पक्षियों के बारे में एक दिलचस्प बात पता चली है कि ओकोफिला वंश से संबंध रखने वाली चींटियां की मौजूदगी इन पक्षियों की विविधता को प्रभावित कर रही है। यह अध्ययन जर्नल इकोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।
बता दें कि दुनिया भर में चीटियों की 17,000 से ज्यादा ज्ञात प्रजातियां हैं, जिनकी कुल आबादी करीब 20,000 लाख करोड़ है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कार्डिफ द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि जब आक्रामक चींटियां नए क्षेत्रों में प्रवेश करती हैं, तो वे न केवल स्थानीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। रिसर्च के मुताबिक ये आक्रामक विदेशी चींटियां, संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा कर और उनके शिकार के जरिए स्थानीय प्रजातियां की संख्या को 53 फीसदी तक कम कर सकती हैं।