
2024 में दक्षिण-पश्चिम प्रशांत क्षेत्र असामान्य गर्मी की चपेट में रहा। इसकी वजह से न केवल समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बल्कि अर्थव्यवस्था और लोगों की जीविका पर भी गहरा असर पड़ा है। यह खुलासा विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी नई रिपोर्ट "द स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन द साउथ-वेस्ट पैसिफिक 2024" में किया है।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि लू का कहर अभी सिर्फ जमीनी इलाकों तक सीमित नहीं है। समुद्र भी इससे अछूते नहीं हैं। 2024 दक्षिण-पश्चिम प्रशांत क्षेत्र के लिए अब तक का सबसे गर्म साल रहा, जब समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया। इतना ही नहीं इस दौरान महासागर में जमा गर्मी भी पहले कभी न देखे गए स्तर के करीब तक पहुंच गई।
इस दौरान करीब चार करोड़ वर्ग किलोमीटर समुद्री क्षेत्र समुद्री लू (हीटवेव) की चपेट में आया। यह क्षेत्र आकार में कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लू की चपेट में आया यह क्षेत्र एशिया महाद्वीप जितना बड़ा है। यह दुनिया के कुल महासागरीय क्षेत्र के 10 फीसदी से भी अधिक है। वहीं यूरोप या अमेरिका से तुलना करें तो यह उससे चार गुणा बड़ा क्षेत्र है।
रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती गर्मी और अम्लीकरण समुद्री जीवन के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी गहरा नुकसान पहुंचा रही है। चिंता की बात यह है कि समुद्र के जल स्तर में हो रही वृद्धि इस क्षेत्र के सभी द्वीपीय देशों के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है।
द्वीपों पर संकट: घर छोड़ने की आई नौबत
देखा जाए तो इस क्षेत्र में समुद्र का स्तर वैश्विक औसत से अधिक तेजी से बढ़ रहा है, जिससे प्रशांत द्वीपों पर खतरा गहराता जा रहा है। इन द्वीपों की आधी से ज्यादा आबादी समुद्र तट से 500 मीटर के भीतर के दायरे में रहती है। ऐसे में अब ये समुदाय एक मुश्किल फैसले के दौर में हैं—क्या वे जोखिम भरे इलाकों में रहना जारी रखें या सुरक्षित भविष्य के लिए कहीं और बस जाएं?
फिजी का सेरुआ द्वीप इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। बीते दो दशकों में समुद्री कटाव और बाढ़ ने यहां के गांव को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया है।
इसकी वजह से समुद्र-रोधी दीवार टूट गई, घर डूब गए, खारे पानी ने फसलों को बर्बाद कर दिया और उपजाऊ मिट्टी बह गई। दो बार तो हालत इतनी खराब हुई कि पूरा द्वीप नाव से पार किया जा सकता था। इस दौरान जमीन तो नजरों से पूरी तरह ओझल हो गई।
स्थानीय लोग अब खुद को बचाने के करीब-करीब सारे उपाय आजमा चुके हैं—समुद्र दीवारें, मैंग्रोव लगाना और जल निकासी सुधारना—लेकिन ये सब अब काम नहीं आ रहे। फिजी सरकार ने भी लोगों को कहीं और बसाने की पेशकश की है, लेकिन बहुत से लोग अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उनके लिए "वनुआ"—जिसका मतलब होता है "जमीन"—सिर्फ भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का हिस्सा है।
अनुमान है कि हर साल कम से कम 50,000 प्रशांत द्वीपवासी जलवायु संकट के कारण विस्थापित होने के खतरे का सामना कर रहे हैं।
रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके मुताबिक दक्षिण-पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में 2024 का औसत तापमान 1991-2020 के औसत से 0.48 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। दक्षिण-पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में 2024 के दौरान गर्मी रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई। इसकी एक बड़ी वजह 2023/2024 में मौजूद अल नीनो का प्रभाव था।
आपदाओं ने मचाई तबाही
ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस समेत कई देशों के लिए 2024 उनके जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म साल रहा। इस दौरान बढ़ती गर्मी के साथ बारिश ने भी भारी तबाही मचाई। इतना ही नहीं 2024 में चरम मौसमी घटनाओं ने भी इस क्षेत्र में जमकर उत्पात मचाया।
उदाहरण के लिए फिलीपींस में रिकॉर्ड संख्या में उष्णकटिबंधीय तूफान आए, जबकि इंडोनेशिया के न्यू गिनी में बचा आखिरी ट्रॉपिकल ग्लेशियर खत्म होने के कगार पर पहुंच गया। 2026 तक इसके पूरी तरह विलुप्त हो जाने की आशंका है।
सैटेलाइट आंकड़ों के मुताबिक, न्यू गिनी द्वीप के पश्चिमी हिस्से में बर्फ की कुल सतह 2022 से अब तक 30 से 50 फीसदी तक घट चुकी है। अगर यही रफ्तार बनी रही, तो 2026 तक यहां की सारी बर्फ पूरी तरह खत्म हो सकती है, आशंका है कि यह उससे भी पहले भी यह खत्म हो सकती है।
फिलीपींस में 2024 के अंत में तूफानों का मौसम अब तक का सबसे भयावह रहा। सितंबर से नवंबर के बीच 12 उष्णकटिबंधीय तूफान आए, जो औसत के दोगुने से भी ज्यादा हैं। इन तूफानों से देश के 18 में से 17 क्षेत्रों में 1.3 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए और 14 लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
इन तूफानों ने 43 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान पहुंचाया।
वहीं दूसरी तरफ 2024 में ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी तट, न्यूजीलैंड के उत्तरी हिस्से और कई प्रशांत द्वीपों में सामान्य से कम बारिश हुई, जबकि मलेशिया, इंडोनेशिया, उत्तरी फिलीपींस, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, पापुआ न्यू गिनी के पूर्वी हिस्से, सोलोमन द्वीप और दक्षिणी न्यूजीलैंड में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई।
भारी बारिश और बाढ़ ने पूरे क्षेत्र में भारी तबाही मचाई। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस में आई आपदाओं ने लोगों की जिंदगियों, बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्थाओं को बुरी तरह प्रभावित किया।
उम्मीद की किरण
रिपोर्ट में एक अच्छी खबर यह सामने आई है कि फिलीपींस में एंटीसीपेटरी एक्शन और प्रभाव-आधारित चेतावनी प्रणाली ने जान बचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। समय पर चेतावनी और पहले से की गई तैयारी की वजह से जान का नुकसान काफी हद तक टल गया।
गौरतलब है कि फिलीपींस की राष्ट्रीय अनुकूलन योजना में ऐसे संकटों से निपटने की क्षमता बढ़ाना एक प्रमुख लक्ष्य है। अनुमान है कि भले ही भविष्य में तूफानों की संख्या घट जाए लेकिन वो पहले से कहीं अधिक तीव्र और विनाशकारी होते जाएंगे। इनकी वजह से बुनियादी ढांचे, कृषि और तटीय इलाकों को गंभीर नुकसान होगा और लाखों लोगों की जिंदगी प्रभावित होगी।
2024 ने इतना तो साफ कर दिया कि जलवायु संकट अब भविष्य नहीं, वर्तमान का हिस्सा है। समय तेजी से निकल रहा है और यदि अब भी निर्णायक कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में सभी द्वीप नक्शे से गायब हो सकते हैं।