वैज्ञानिक अध्ययन: बारिश से बढ़ रही उष्णकटिबंधीय इलाकों की उमस

उष्णकटिबंधीय इलाकों में जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक लगातार और तीव्र उमस भरी गर्मी की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे कमजोर आबादी और बाहरी कामगारों के लिए खतरे बढ़ रहे हैं।
शुष्क इलाकों में अधिक बारिश के दौरान या उसके तुरंत बाद उमस भरी गर्मी के आसार अधिक होते हैं।
शुष्क इलाकों में अधिक बारिश के दौरान या उसके तुरंत बाद उमस भरी गर्मी के आसार अधिक होते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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वैज्ञानिकों का मानना है कि उमस और लू से खतरे में पड़े कमजोर समुदायों के लिए चेतावनी प्रणाली में सुधार करने का तरीका खोजना बहुत जरूरी है। जलवायु परिवर्तन के कारण हीटवेव या लू में वृद्धि हो रही है, यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक और यहां तक कि घातक भी हो सकती है।

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं की टीम ने पहली बार एक ऐसा विश्लेषण प्रस्तुत किया है जिसमें कहा गया है कि हाल ही में हुई बारिश के पैटर्न शुष्क या नमी वाली भूमि मिलकर दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में अत्यधिक उमस भरी गर्मी के खतरों को बढ़ा सकती है। इस शोध की अगुवाई लीड्स विश्वविद्यालय और यूके सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी के शोधकर्ताओं के द्वारा की गई है।

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यह शोध एक नई जानकारी को सामने लाता है जिसकी मदद से उन क्षेत्रों में कमजोर समुदायों के लिए शुरुआती चेतावनी प्रणाली विकसित की जा सकती है।

शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन का मतलब उमस भरी गर्मी और लू लोगों और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए एक बढ़ता हुआ खतरा हैं, खासकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में। जबकि शुष्क लू के बारे में कई शोध है, अत्यधिक उमस भरी गर्मी के मौसम संबंधी कारणों के बारे में बहुत कम जानकारी है।

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उमस भरी गर्मी का संबंध तापमान के तनाव से है, जो तब होता है जब पर्यावरण की परिस्थितियां शरीर की खुद को ठंडा करने की क्षमता को प्रभावित करती हैं। बहुत ज्यादा ताप तनाव के कारण शरीर का तापमान तीन डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बढ़ जाता है और इससे भ्रम, दौरे और चेतना को नुकसान पहुंच सकता है। यदि तुरंत उपचार न किया गया तो गंभीर ताप तनाव से मांसपेशियों को नुकसान, प्रमुख अंगों काम करना बंद होना, यहां तक की मृत्यु भी हो सकती है।

उमस भरी लू लोगों के लिए विशेष रूप से चिंताजनक हैं क्योंकि 35 डिग्री सेल्सियस का वेट-बल्ब तापमान, तापमान की एक माप जो आदर्श परिस्थितियों में वाष्पीकरण के माध्यम से कितना ठंडा हो सकती है, इसका हिसाब रखता है। इसका मतलब है कि वे पसीने के माध्यम से प्रभावी रूप से गर्मी को बाहर निकालने में असमर्थ हैं। कई उपोष्णकटिबंधीय तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों ने पहले ही इस 35 डिग्री सेल्सियस की सीमा को महसूस कर लिया है।

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उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नमी भरी लू तथा बारिश
उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नमी भरी लू तथा बारिश स्रोत: नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में, अधिक लगातार और तीव्र उमस भरी गर्मी की घटनाएं हो रही हैं, जिससे कमजोर आबादी और बाहरी कामगारों के लिए खतरे बढ़ रहे हैं।

शोध के द्वारा प्रदान की गई नई जानकारी मिट्टी की नमी और बारिश के लिए लगभग वास्तविक समय के उपग्रह अवलोकनों का उपयोग करके, बेहतर उमस भरी गर्मी की पूर्व चेतावनी प्रणाली की क्षमता को सामने लाती है। टीम ने 2001 से 2022 तक के मौसम और जलवायु के आंकड़ों का उपयोग करके उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उमस भरी गर्मी का अध्ययन किया।

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नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने हीटवेव की घटनाओं की पहचान की और देखा कि हाल ही में हुई बारिश से वे किस तरह प्रभावित हुए, उन्होंने नमी और सूखे दिनों के बीच अंतर करने के लिए उपग्रह अवलोकनों का उपयोग किया। फिर उन्होंने गणना की कि इन अलग-अलग बारिश की स्थितियों के बाद हीटवेव चलने के कितने आसार हैं।

उमस भरी लू दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैली हुई हैं। वे पश्चिमी अफ्रीका, भारत, पूर्वी चीन और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया जैसे मॉनसूनी इलाकों में, अमेजन, दक्षिण-पूर्व अमेरिका और कांगो बेसिन जैसे नमी से भरे क्षेत्रों में और मध्य पूर्व के गर्म तटीय क्षेत्रों में होती हैं।

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नए शोध से पता चलता है कि हाल ही में हुई बारिश के पैटर्न उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उमस भरी लू को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है, जिसके परिणाम बताते हैं कि उमस भरी लू का खतरा इस बात पर निर्भर करता है कि सतह का वातावरण सूखा है या नमी भरा।

शुष्क इलाकों में अधिक बारिश के दौरान या उसके तुरंत बाद उमस भरी गर्मी के आसार अधिक होते हैं। नमी वाले क्षेत्रों में, उमस भरी गर्मी कम से कम दो दिनों की कम बारिश के बाद होती है।

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शुष्क इलाकों में अधिक बारिश के दौरान या उसके तुरंत बाद उमस भरी गर्मी के आसार अधिक होते हैं।

यह अंतर इसलिए होता है क्योंकि बारिश से मिट्टी में नमी बढ़ जाती है जिससे परिस्थितियां अधिक नमी वाली हो जाती हैं। इसके विपरीत, कम बारिश और कम बादल भूमि को गर्म होने देते हैं, जिससे तापमान बढ़ता है।

उष्णकटिबंधीय इलाकों में उमस भरी गर्मी का पूर्वानुमान वास्तव में चिंताजनक है। लोग पसीना बहाकर अधिक गर्मी से बचते हैं। पसीने का वाष्पीकरण मनुष्य के शरीर को ठंडा करता है, जिससे वे शरीर का सुरक्षित तापमान बनाए रख सकते हैं। नमी इसे कम प्रभावी बनाती है।

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उमस भरी लू के चलते हवा का तापमान घातक हो सकता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र स्वाभाविक रूप से नमी भरे होते हैं और वैश्विक तापमान में मामूली वृद्धि भी खतरनाक उमस भरी गर्मी की चरम सीमाओं में बड़ी वृद्धि की ओर ले जाती है। यह न केवल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तत्काल कटौती करने की जरूरत पर जोर देती है, बल्कि उमस भरी गर्मी के लिए बेहतर शुरुआती चेतावनी प्रणाली की जरूरत की ओर भी इशारा करती है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इस तरह की हीटवेव के लिए रजमर्रा की समय-सीमा पर गौर किया जाता है। एक स्पष्ट अगला कदम शोध के विश्लेषण को प्रति घंटे के समय के पैमाने तक ले जाना होगा, जो कमजोर समुदायों को मिलने वाले सभी फायदों के साथ लगभग वास्तविक समय का पूर्वानुमान की दिशा में काम करने में मदद कर सकता है।

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