हीट आइलैंड बन रही है शहर के निवासियों के लिए दोधारी तलवार

शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 3,000 से अधिक शहरों में मृत्यु दर और तापमान के बीच संबंधों को स्थापित करने के लिए रिमोट सेंसिंग आंकड़ों, जलवायु, सामाजिक-आर्थिक कारणों सहित कई आंकड़ों के स्रोतों का विश्लेषण किया।
सीएसई के विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मॉनसून के दौरान गर्मी ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इन शहरों का ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) मॉनसून -पूर्व अवधि की तुलना में अधिक होता है।
सीएसई के विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मॉनसून के दौरान गर्मी ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इन शहरों का ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) मॉनसून -पूर्व अवधि की तुलना में अधिक होता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी इलाकों में बहुत ज्यादा बढ़ रहा है तापमान, जिसे शहरी हीट आइलैंड के रूप में जाना जाता है। यह दुनिया के कुछ शहरों में ठंड के कारण होने वाली मौतों की संख्या को कम करके गर्मी से जुड़ी मृत्यु दर के कुछ बुरे प्रभावों को कम कर सकते हैं।

शोध के निष्कर्ष शहरी हीट आइलैंड के प्रभाव को कम करने के लिए क्षेत्र और मौसम से संबंधित विशेष रणनीतियां बनाने में उपयोग की जा सकती हैं।

शहरी हीट आइलैंड का प्रभाव गर्म मौसम के दौरान दुनिया भर में लोगों को होने वाले खतरों और उसके बाद होने वाली मृत्यु में वृद्धि के लिए जिम्मेवार है। हालांकि यह घटना ठंडी परिस्थितियों में ठंड से संबंधित मौतों की दर को भी प्रभावित कर सकती है।

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सीएसई के विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मॉनसून के दौरान गर्मी ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इन शहरों का ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) मॉनसून -पूर्व अवधि की तुलना में अधिक होता है।

यह दोहरे प्रभाव वाले इलाकों और मौसमों में अलग-अलग हो सकता है, लेकिन पिछले शोध ने अक्सर स्थानीय स्तर पर प्रभाव पर गौर किया है। जलवायु परिवर्तन और तेजी से शहरीकरण के चलते, शहरी तापमान को कम करने की रणनीतियों के लिए गर्मी और ठंड से संबंधित मौतों पर शहरी हीट आइलैंड के व्यापक प्रभाव को समझना जरूरी है।

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 3,000 से अधिक शहरों में मृत्यु दर और तापमान के बीच संबंधों को स्थापित करने के लिए रिमोट सेंसिंग आंकड़ों, जलवायु और सामाजिक-आर्थिक कारणों सहित कई आंकड़ों के स्रोतों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि शहरी हीट आइलैंड के तहत ठंड से होने वाली मृत्यु दर में कमी 2018 में गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में वृद्धि से 4.4 गुना अधिक है।

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सीएसई के विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मॉनसून के दौरान गर्मी ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इन शहरों का ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) मॉनसून -पूर्व अवधि की तुलना में अधिक होता है।

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि उच्च अक्षांशों पर स्थित शहरों में और भी अधिक कमी देखी गई, उदाहरण के लिए, मॉस्को में ठंड से संबंधित मौतों में कमी देखी गई जो गर्मी से संबंधित मौतों की तुलना में 11.5 गुना अधिक थी। शोधकर्ताओं ने बढ़ती वनस्पति और इमारतों की परावर्तकता (अल्बेडो) की भूमिका का भी विश्लेषण किया, जो शहरी हीट आइलैंड के प्रभाव को कम करने की मौजूदा रणनीतियां हैं।

शोध के मुताबिक, रणनीतियों के चलते ठंड से संबंधित मौतों में वृद्धि हो सकती है जो हस्तक्षेप की परिणाम और जिस मौसम में इसे लागू किया जाता है, उसके आधार पर दुनिया भर में गर्मी से संबंधित मौतों को पार कर जाती है।

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सीएसई के विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मॉनसून के दौरान गर्मी ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इन शहरों का ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) मॉनसून -पूर्व अवधि की तुलना में अधिक होता है।

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से इस बात पर जोर दिया गया है कि निष्कर्षों को शहरी हीट आइलैंड के स्वास्थ्य को होने वाले बुरे प्रभावों को कम करके आंकने के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इसके बजाय मौसमों में इसके प्रभाव की बारीकियों के बारे में अहम जानकारी प्रदान करनी चाहिए। शोध में सुझाव देते हुए कहा गया है कि शहरों को शहरी हीट आइलैंड के प्रभाव को कम करने के लिए मौसमी नजरिया अपनाया जाना चाहिए।

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के द्वारा जारी रिपोर्ट 'डिकोडिंग दि अर्बन हीट स्ट्रेस अमंग इंडियन सिटीज' के मुताबिक, गर्मी का तनाव केवल बढ़ते तापमान के कारण नहीं है। यह हवा के तापमान, जमीन की सतह के तापमान और सापेक्ष नमी का एक घातक मिश्रण है जो शहरों में गर्मी से होने वाली परेशानी और गर्मी के तनाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

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सीएसई के विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मॉनसून के दौरान गर्मी ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इन शहरों का ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) मॉनसून -पूर्व अवधि की तुलना में अधिक होता है।

भले ही जलवायु क्षेत्रों में हवा के तापमान अलग-अलग क्यों न हो और कुछ हिस्सों में इसमें गिरावट भी दर्ज की गई हो, लेकिन अन्य दो कारण सापेक्ष नमी और जमीन की सतह का तापमान मिलकर असुविधा और गर्मी से संबंधित बीमारी के खतरों को बढ़ाते हैं। ऐसा माना जाता है कि 41 डिग्री सेल्सियस का हीट इंडेक्स मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।

सीएसई ने भारत के छह महानगरों में गर्मियों के दौरान तीनों कारणों - हवा का तापमान, भूमि की सतह का तापमान और सापेक्ष नमी के तनाव का व्यापक मूल्यांकन किया है। इसमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई शामिल थे। अध्ययन की समय सीमा जनवरी 2001 से अप्रैल 2024 तक की गर्मियों की थी। ये छह शहर अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों में स्थित हैं और गर्मी के तनाव में क्षेत्रीय विविधताओं के बारे में अहम जानकारी देते हैं।

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सीएसई के विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मॉनसून के दौरान गर्मी ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इन शहरों का ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) मॉनसून -पूर्व अवधि की तुलना में अधिक होता है।

विश्लेषण के मुताबिक, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मॉनसून के दौरान गर्मी ज्यादा परेशान करती है, क्योंकि इन शहरों का ताप सूचकांक मॉनसून -पूर्व अवधि की तुलना में अधिक होता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, शहरों में रात के समय ठंडक उस दर से नहीं बढ़ रही है, जैसी 2001 से 10 के दौरान हुआ करती थी। यह घटना सभी जलवायु क्षेत्रों में देखी जा रही है। रिपोर्ट में गर्म हवाओं से सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आपातकालीन कार्ययोजना की जरूरत पर भी जोर दिया गया है।

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