महासागर की गर्मी और ग्रीनलैंड की पिघलती बर्फ है संकट की बड़ी चेतावनी

ग्रीनलैंड की एनईजीआईएस आइस स्ट्रीम पर महासागर की गर्म धाराओं का प्रभाव, भविष्य में समुद्र स्तर बढ़ने का खतरा।
बर्फ और महासागर के बीच की क्रियाओं को समझना भविष्य में समुद्र स्तर बढ़ने की भविष्यवाणी और जलवायु मॉडल के लिए महत्वपूर्ण है।
बर्फ और महासागर के बीच की क्रियाओं को समझना भविष्य में समुद्र स्तर बढ़ने की भविष्यवाणी और जलवायु मॉडल के लिए महत्वपूर्ण है।फोटो साभार: प्रतीकात्मक छवि, आईस्टॉक
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सारांश
  • एनईजीआईएस, ग्रीनलैंड की सबसे बड़ी आइस स्ट्रीम, पिघलने पर वैश्विक समुद्र स्तर को एक मीटर से अधिक बढ़ा सकती है।

  • एनईजीआईएस का पिछला पीछे हटना मुख्य रूप से गर्म अटलांटिक पानी के ग्राउंडिंग लाइन तक पहुंचने से हुआ, केवल वायुमंडलीय तापमान नहीं।

  • लगभग 15,000 साल पहले, महासागर की गर्मी और बढ़ती हवा का तापमान मिलकर आइस-शेल्फ के टूटने और तेजी से पीछे हटने का कारण बने।

  • भूवैज्ञानिक और तलछटी रिकॉर्ड ग्रीनलैंड में आइस-शेल्फ टूटने के शुरुआती प्रमाणों में से एक प्रदान करते हैं।

  • बर्फ और महासागर के बीच की क्रियाओं को समझना भविष्य में समुद्र स्तर बढ़ने की भविष्यवाणी और जलवायु मॉडल के लिए महत्वपूर्ण है।

हाल के वैज्ञानिक शोध से यह सामने आया है कि महासागर का गर्म होना, ग्रीनलैंड की सबसे बड़ी बर्फीली धारा - नॉर्थ ईस्ट ग्रीनलैंड आइस स्ट्रीम (एनईजीआईएस) के बड़े पैमाने पर पीछे हटने (पिघलने) का एक मुख्य कारण रहा है। यह खोज न केवल अतीत को समझने में मदद करती है, बल्कि भविष्य में समुद्र स्तर बढ़ने के खतरे को भी स्पष्ट करती है।

एनईजीआईएस ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर से निकलने वाली सबसे बड़ी आइस स्ट्रीम है। इसमें इतनी बर्फ जमा है कि अगर यह पूरी तरह पिघल जाए, तो दुनिया भर में समुद्र का स्तर 1.1 से 1.4 मीटर तक बढ़ सकता है। इसलिए इसकी स्थिरता पूरी मानव सभ्यता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

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20,000 साल का इतिहास क्या बताता है?

इस शोध में वैज्ञानिकों ने पिछले 20,000 वर्षों के दौरान एनईजीआईएस के व्यवहार का अध्ययन किया। यह समय अवधि अंतिम हिमयुग के अंत से लेकर आज तक की है। अध्ययन का नेतृत्व न्यूकैसल विश्वविद्यालय और डरहम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया है।

नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित शोध से पता चला कि बर्फ के पिघलने के पीछे केवल हवा का तापमान ही जिम्मेदार नहीं था, बल्कि महासागर की गर्म धाराओं ने भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई।

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महासागर की गर्मी का असर

बर्फ की चादर जहां जमीन से उठकर समुद्र में तैरने लगती है, उसे ग्राउंडिंग लाइन कहा जाता है। जब इस हिस्से तक गर्म समुद्री पानी पहुंचता है, तो बर्फ नीचे से तेजी से पिघलने लगती है। इससे बर्फ की चादर कमजोर हो जाती है और उसके टूटने या पीछे हटने की संभावना बढ़ जाती है।

शोध में पाया गया कि करीब 20,300 से 17,600 साल पहले, एनईजीआईएस का पहला बड़ा पीछे हटना शुरू हुआ। उस समय हवा का तापमान आज की तुलना में 15 से 20 डिग्री सेल्सियस कम था। यानी वातावरण बहुत ठंडा था, फिर भी बर्फ पिघल रही थी। इससे साफ होता है कि उस समय गर्म अटलांटिक महासागरीय पानी बर्फ के नीचे पहुंचकर उसे पिघला रहा था।

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बर्फ की शेल्फ का टूटना

इसके बाद लगभग 15,000 साल पहले, स्थिति और गंभीर हो गई। गर्म अटलांटिक पानी और आगे बढ़ गया और बर्फ की तैरती हुई शेल्फ के नीचे तेजी से पिघलाव हुआ। इसी समय हवा का तापमान भी तेजी से बढ़ने लगा।

इन दोनों कारणों से समुद्र की गर्मी और हवा के तापमान में वृद्धि ने मिलकर बर्फ की शेल्फ को कमजोर कर दिया। नतीजतन, शेल्फ टूट गई, ग्राउंडिंग लाइन अस्थिर हो गई और बर्फ तेजी से पीछे हटने लगी। यह अध्ययन ग्रीनलैंड में भूवैज्ञानिक रिकॉर्ड में दर्ज बर्फ की शेल्फ टूटने के शुरुआती प्रमाणों में से एक है।

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आज के समय के लिए क्या सीख?

आज भी वैज्ञानिक देख रहे हैं कि गर्म अटलांटिक पानी फिर से ग्रीनलैंड की बर्फ के नीचे पहुंच रहा है। यह स्थिति अतीत से मिलती-जुलती है, जब बड़े पैमाने पर बर्फ पिघली थी।

इसका मतलब यह है कि अगर मौजूदा जलवायु परिवर्तन इसी तरह जारी रहा, तो एनईजीआईएस भविष्य में भी अस्थिर हो सकती है और समुद्र स्तर में तेज वृद्धि हो सकती है

शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु मॉडल और भविष्यवाणियों में केवल हवा के तापमान को ही नहीं, बल्कि बर्फ और महासागर के बीच की जटिल क्रियाओं को भी शामिल करना बेहद जरूरी है।

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शोध कैसे किया गया?

यह शोध “ग्रीनलैंड इन ए वॉर्मर क्लाइमेट” नामक परियोजना का हिस्सा था, जिसका नेतृत्व डरहम विश्वविद्यालय ने किया। इसमें ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे और जर्मनी के अल्फ्रेड वेगेनर संस्थान (एडब्ल्यूआई) के वैज्ञानिक भी शामिल थे।

2016 और 2017 में वैज्ञानिकों ने जर्मन आइसब्रेकर जहाज आरवी पोलरस्टर्न पर दो समुद्री यात्राएं कीं। इन यात्राओं के दौरान समुद्र तल की मैपिंग की गई और तलछट के नमूने इकट्ठा किए गए। बाद में इन नमूनों का अध्ययन कर सूक्ष्म जीवाश्मों और भूवैज्ञानिक संकेतों का विश्लेषण किया गया, जिससे यह समझने में मदद मिली कि अतीत में बर्फ कैसे और क्यों पिघली।

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यह शोध एक स्पष्ट चेतावनी देता है। एनईजीआईएस पहले भी महासागर की गर्मी के कारण कमजोर हुई है और आज वही परिस्थितियां दोबारा बन रही हैं। अगर हमने बर्फ और महासागर के संबंध को गंभीरता से नहीं समझा, तो आने वाले समय में समुद्र स्तर बढ़ने का खतरा और भी बढ़ सकता है।

अतीत की यह जानकारी हमें भविष्य के लिए तैयार होने का मौका देता है, लेकिन केवल तभी, जब हम इसे समय रहते समझें और उस पर कार्रवाई करें।

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