अक्सर हम सोचते है कि हम ग्रीनलैंड से बहुत दूर भारत या किसी अन्य देश में रहते हैं, बर्फ की चादर पिघल भी जाए तो क्या? ऐसा नहीं है, हमारी जलवायु आपस में जुड़ीं हुई है। इसका असर हमारे मौसम प्रणाली और समुद्र का स्तर बढ़ने से तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों पर पड़ता है।
शोधकर्ताओं ने उपग्रह के ऐतिहासिक आंकड़ों का विश्लेषण किया है, जिसके मुताबिक, पिछले तीन दशकों में लगभग 28,707 वर्ग किलोमीटर ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर और ग्लेशियर पिघल गए हैं।
शोधकर्ता ने बताया कि बर्फ के नुकसान का कुल क्षेत्र अल्बानिया के आकार के बराबर है और ग्रीनलैंड के कुल बर्फ और ग्लेशियर का लगभग 1.6 फीसदी है। जहां कभी बर्फबारी हुआ करती थी, वहां अब बंजर चट्टानें, आर्द्रभूमि और झाड़ियां उग चुकी हैं।
लीड्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने 1980 से 2010 के दशक तक ग्रीनलैंड में हुए बदलावों पर गौर किया, शोधकर्ताओं का कहना है कि गर्म हवा के कारण बर्फ पीछे हट रही है, जिसके कारण भूमि की सतह के तापमान पर प्रभाव पड़ रहा है। इसके पीछे के कारणों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन एक अहम कारण मानी जा रही है।
पर्माफ्रॉस्ट-पृथ्वी की सतह के नीचे एक स्थायी रूप से जमी हुई परत जो गर्मी के कारण नष्ट हो रही है और कुछ क्षेत्रों में, वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इसका प्रभाव इसके ऊपर मौजूद बुनियादी ढांचे, इमारतों और वहां रहने वाले लोगों पर पड़ सकता है।यह शोध जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
ग्रीनलैंड आर्कटिक क्षेत्र का हिस्सा है। यह दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है, जिसका आकार लगभग 836,330 वर्ग मील है। अधिकांश भूमि बर्फ और ग्लेशियरों से ढकी हुई है और यहां लगभग 57,000 लोग रहते हैं।
1970 के दशक से यह क्षेत्र वैश्विक औसत दर से दोगुनी गति से गर्म हो रहा है। ग्रीनलैंड में, 2007 से 2012 के बीच औसत वार्षिक हवा का तापमान 1979 से 2000 के औसत की तुलना में तीन डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि भविष्य में तापमान के और अधिक बढ़ने के आसार हैं।
लीड्स में पृथ्वी वैज्ञानिक और अध्ययनकर्ता जोनाथन कैरिविक ने कहा, बढ़ता तापमान भूमि में बदलाव से जुड़ा हुआ है जो हम ग्रीनलैंड पर देख रहे हैं। उन्होंने कहा, उच्च रिज़ॉल्यूशन उपग्रह की छवियों का विश्लेषण करके, भूमि में होने वाले बदलावों का एक विस्तृत रिकॉर्ड तैयार किया गया है।
जिससे पता चलता है कि बर्फ गायब हो रही है और उसकी जगह नंगी चट्टानें और झाड़ियों ने ले ली है।
बर्फ का नुकसान वर्तमान ग्लेशियरों के किनारों के आसपास ही नहीं, बल्कि ग्रीनलैंड के उत्तर और दक्षिण-पश्चिम में भी देखा गया। पश्चिम, मध्य-उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व के स्थानीय क्षेत्रों में भी बर्फ का भारी नुकसान हुआ है।
तीन दशकों में, वनस्पति वाली भूमि 87,475 वर्ग किमी बढ़ गई, जो अध्ययन अवधि के दौरान दोगुनी से भी अधिक है।
दक्षिण-पश्चिम, पूर्व और उत्तर-पूर्व में वनस्पति में स्पष्ट वृद्धि देखी गई। घने आर्द्रभूमि वनस्पति में सबसे अधिक वृद्धि दक्षिण-पश्चिम में कांगेरलुसुआक के आसपास और उत्तर-पूर्व में अलग-अलग क्षेत्रों में हुई।
शोधकर्ता कैरिविक ने कहा, हमने ऐसे संकेत देखे हैं कि बर्फ की हानि अन्य प्रतिक्रियाओं को बढ़ा रही है जिसके कारण बर्फ की और अधिक हानि होगी और ग्रीनलैंड में वनस्पति वाला हिस्सों बढ़ेगा, जो सिकुड़ती बर्फ नंगी चट्टानों को उजागर करती है जो बाद में टुंड्रा द्वारा उपनिवेशित हो जाती है और अंततः झाड़ियां बन जाती है।
बर्फ के नष्ट होने से और बढ़ेगी गर्मी
बर्फ के नष्ट होने से भूमि की सतह का तापमान अल्बिडो के कारण प्रभावित होता है, जो इस बात का प्रमाण है कि कोई सतह कितनी परावर्तक है।
बर्फ पृथ्वी की सतह से टकराने वाली सूर्य की ऊर्जा के अच्छी परावर्तक हैं और यह पृथ्वी को ठंडा रखने में मदद करती हैं। जैसे-जैसे बर्फ पिघलती है, यह खाली जमीन को उजागर करती है जो अधिक सौर ऊर्जा को अवशोषित करती है, जिससे भूमि की सतह का तापमान बढ़ जाता है।
इसी प्रकार, जैसे-जैसे बर्फ पिघलती है, झीलों में पानी की मात्रा बढ़ती जाती है। पानी बर्फ की तुलना में अधिक सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित करता है और इससे भूमि की सतह का तापमान भी बढ़ जाता है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक
शोधकर्ता ने बताया कि पूरे ग्रीनलैंड में आर्द्रभूमि लगभग चौगुनी हो गई है, खासकर पूर्व और उत्तर-पूर्व में। आर्द्रभूमि मीथेन उत्सर्जन का एक अहम स्रोत है।
शोधकर्ताओं ने कहा, वनस्पति का विस्तार और विशेष रूप से आर्द्रभूमि क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट पिघलना, सक्रिय परत का मोटा होना और इस प्रकार इन आर्कटिक मिट्टी में पहले से संग्रहीत ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ाता है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने, ग्रीनलैंड के उन क्षेत्रों का पूर्वानुमान लगाने के लिए एक मॉडल भी विकसित किया है जहां भविष्य में तेजी से परिवर्तन देखे जा सकते हैं।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. माइकल ग्राइम्स ने कहा, ग्लेशियरों और बर्फ की चादर के पीछे हटने के साथ-साथ होने वाली वनस्पति का विस्तार, प्रवाह के कारण तटीय जल में तलछट और पोषक तत्वों की मात्रा में भारी बदलाव ला रहा है।
ये बदलाव खतरनाक हैं, विशेष रूप से स्वदेशी आबादी के लिए जिनकी पारंपरिक निर्वाह शिकार प्रथाएं इन नाजुक पारिस्थितिकी तंत्रों की स्थिरता पर निर्भर करती हैं।
इसके अलावा ग्रीनलैंड में बर्फ की भारी मात्रा में पिघलने से दुनिया भर में समुद्र स्तर में वृद्धि होगी, यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जो वर्तमान और भविष्य दोनों में भारी चुनौतियां पैदा करती है।