हर दशक भारत में 15 दिन से अधिक बढ़ रही शीतलहर के दिनों की संख्या :अध्ययन

अध्ययन के अनुसार 2011 से 2021 की अवधि के दौरान, मध्य और पूर्वी भागों में, शीतलहर के दिनों की औसत संख्या में प्रति दशक पांच दिनों से अधिक और यहां तक कि प्रति दशक 15 दिनों से अधिक की वृद्धि हुई है।
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स
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पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम) के मुताबिक हाल के दशकों में भारत में भले ही कई रिकॉर्ड तोड़ गर्म साल देखे गए हों, लेकिन बढ़ते तापमान के बावजूद देश में शीतलहर के दिनों में कोई कमी नहीं आई है। 

यह अध्ययन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किया गया है। पिछले सात दशकों, 1951 से 2022 में शीतलहर की घटनाओं की संख्या के विश्लेषण में पाया गया कि पिछले दशकों की तुलना में हाल के दशक में शीतलहर के दिन बढ़ रहे हैं।

कब होती है शीतलहर की घोषणा

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) शीतलहर की घोषणा तब करता है जब मैदानी इलाकों में एक मौसम स्टेशन का न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस के बराबर या उससे कम होता है और उस अवधि के लिए सामान्य तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस कम होता है।

आईआईटीएम के अनुसार  शीत लहरों के आने और बने रहने के लिए पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव सबसे अहम होता है। एक बार जब ठंडी उत्तर-पश्चिमी हवाएं इस क्षेत्र से गुज़रती हैं, तो तापमान में गिरावट शुरू हो जाती है। जब दो पश्चिमी विक्षोभों के बीच का अंतर बड़ा होता है, तो गंभीर शीतलहर का प्रकोप होता है। पश्चिमी विक्षोभ की कमी के कारण बारिश में कमी होती है, जिसके कारण तापमान में कमी आती है।

हाल के दशक में, भारत के आंतरिक शीतलहर वाले इलाकों में मध्य और पूर्वी भागों में शीतलहर के अधिक दिन देखे गए हैं। इलाकों में पूर्व और पश्चिम मध्य प्रदेश, झारखंड, विदर्भ, मराठवाड़ा, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्र जैसे छत्तीसगढ़, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली इसमें शामिल हैं।

अध्ययन के अनुसार 2011 से 2021 की अवधि के दौरान, मध्य और पूर्वी भागों में, शीतलहर के दिनों की औसत संख्या में प्रति दशक पांच दिनों से अधिक और यहां तक कि प्रति दशक 15 दिनों से अधिक की वृद्धि हुई है।

अध्ययन में कहा गया है कि औसतन, भारत में आंतरिक शीतलहर वाले क्षेत्र के मध्य और पूर्वी हिस्सों में 1951 से 2011 से अधिकांश दशकों के दौरान प्रति 10 वर्षों में दो से पांच दिन दर्ज किए जाते थे। 2021 जो कि बीते पिछले दशक, में यह बढ़कर लगभग पांच से 15 दिन हो गया है।

इसलिए यह माना जा सकता है कि हाल के दिनों में शीतलहर की घटनाएं इस शीतलहर वाले क्षेत्र के मध्य और पूर्वी हिस्सों में अधिक होती हैं, उत्तर के जम्मू और कश्मीर को छोड़कर, जहां दशकों से कोई बदलाव नहीं देखा गया है। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि पिछले 20 साल की अवधि के दौरान हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली के कुछ हिस्सों में शीतलहर के दिनों में प्रति दशक पांच से 10 दिनों की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले दशकों में यह औसतन दो से पांच थी।

अध्ययन में पाया गया कि पिछले आठ दशकों के दौरान हुई सबसे लंबी अवधि की शीतलहरें लगभग 61 फीसदी, भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ला नीना संबंधी स्थितियों से जुड़ी हुई थीं। अध्ययनकर्ता ने कहा, हम अध्ययन के माध्यम से समझना चाहते थे कि क्या बढ़ते तापमान के परिदृश्य के बीच शीतलहर की घटनाओं में कमी आ सकती है या नहीं।

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