20 वर्षों में ग्रीनलैंड से पिघल चुकी है 4.7 लाख करोड़ टन बर्फ, अमेरिका को आधा मीटर पानी में डुबाने के लिए है काफी

आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2002 से लेकर अगस्त 2021 तक ग्रीनलैंड में जमा करीब 4.7 लाख करोड़ टन बर्फ पिघल चुकी है, जिसके लिए तापमान में होती वृद्धि मुख्य रूप से जिम्मेवार है
20 वर्षों में ग्रीनलैंड से पिघल चुकी है 4.7 लाख करोड़ टन बर्फ, अमेरिका को आधा मीटर पानी में डुबाने के लिए है काफी
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डेनिश शोधकर्ताओं द्वारा इस सप्ताह जारी आंकड़ों से पता चला है कि ग्रीनलैंड में जमा बर्फ की विशाल चादर से पिछले 20 वर्षों में इतनी बर्फ पिघल चुकी है जो पूरे अमेरिका को आधा मीटर पानी में डुबोने के लिए काफी है।

गौरतलब है कि ग्रीनलैंड में बर्फ की माप अप्रैल 2002 में शुरु हुई थी, तब से लेकर अगस्त 2021 तक वहां करीब 4.7 लाख करोड़ टन (4,700 गीगाटन) बर्फ पिघल चुकी है। अनुमान है कि बर्फ की इस मात्रा के पिघलने के कारण वैश्विक स्तर पर समुद्र के जल स्तर में 1.2 सेंटीमीटर की वृद्धि हो चुकी है।

पोलर पोर्टल के यह निष्कर्ष यूएस-जर्मन ग्रेस प्रोग्राम (ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट) के उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों पर आधारित हैं। इससे पता चला है कि आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ की चादर के किनारे तटों के पास सबसे ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं।

आंकड़ों के मुताबिक बर्फ के पिघलने की रफ्तार पिछले कुछ वर्षों में कहीं ज्यादा तेज हो गई है। यही वजह है कि 2003 से 2011 के बीच ग्रीनलैंड में करीब 23,400 करोड़ टन बर्फ हर वर्ष पिघल रही थी। इसकी वजह से समुद्र के जलस्तर में करीब 0.65 मिलीमीटर की वृद्धि होने का अनुमान है। इतना ही नहीं स्वतंत्र तौर पर किए गए अवलोकनों से भी पता चला है कि वहां बर्फ पतली हो रही है। ग्रीनलैंड का पश्चिमी तट इससे विशेष रूप से प्रभावित है।

जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक अन्य शोध में भी इस बात की पुष्टि हुई है, जिसके अनुसार पिछले 10 वर्षों में ग्रीनलैंड पर जमा करीब 3.5 लाख करोड़ टन बर्फ पिघल चुकी है। इसके कारण समुद्र का जलस्तर करीब एक सेंटीमीटर बढ़ चुका है।

25,400 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही है ग्रीनलैंड में जमा बर्फ

यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि 90 के दशक में जहां ग्रीनलैंड में जमा बर्फ 3,300 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही थी, वो दर पिछले एक दशक में बढ़कर 25,400 करोड़ टन प्रति वर्ष पर पहुंच गई है। इसका मतलब है कि पिछले तीन दशकों में इसके पिघलने की दर में सात गुना वृद्धि हो चुकी है।

इस तेजी से पिघलती बर्फ के लिए कहीं हद तक जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेवार है। नासा के अनुसार धरती पर किसी और जगह की तुलना में आर्कटिक में तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ग्रीनलैंड में तापमान वैश्विक औसत की तुलना में तीन से चार गुना ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है।

अनुमान है कि ग्रीनलैंड में पिघलती बर्फ वैश्विक स्तर पर समुद्र के जलस्तर में होती वृद्धि का एक प्रमुख कारक है। शोध से यह भी पता चला है कि पिछले चार दशकों के दौरान ग्रीनलैंड में बर्फ के पिघलते जल प्रवाह में 21 फीसदी की वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि दुनिया के इस सबसे बड़े द्वीप पर इतनी बर्फ जमा है, यदि वो पिघल जाए तो दुनिया भर में समुद्र का जलस्तर लगभग 20 फीट तक ऊपर उठ जाएगा।

वैज्ञानिकों की मानें तो समुद्र के जलस्तर में होने वाली हर सेंटीमीटर की वृद्धि से और 60 लाख लोगों पर तटीय बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा। ऐसे में ग्रीनलैंड में पिघलती यह बर्फ न केवल वहां के इकोसिस्टम पर असर डाल रही है साथ ही इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर भी पड़ रहा है। इसे रोकने के लिए तेजी से बढ़ते उत्सर्जन को कम करने की जरुरत है, जिससे तापमान में होती वृद्धि को रोका जा सके। 

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