इस साल के मॉनसून सीजन में जून से अगस्त के तीन महीने सामान्य से कहीं ज्यादा गर्म बीते। 1970 के बाद से देखें तो यह दूसरा मौका है जब भारत में इस अवधि के दौरान इतनी गर्मी देखी गई है।
क्लाइमेट सेंट्रल ने अपनी नई रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। यह रिपोर्ट तापमान में आते बदलावों और जलवायु परिवर्तन सूचकांक (क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स) पर आधारित है।
रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि पिछले तीन महीनों में 29 दिनों के दौरान जलवायु परिवर्तन के चलते गर्मी के बढ़ने की आशंका तीन गुणा अधिक थी। वहीं मानसून के दौरान भारत में दो करोड़ से ज्यादा लोग कम से कम 60 दिनों तक जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली गर्मी से प्रभावित हुए।
इसके साथ ही भारत, मानसून के दौरान दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित गर्मी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला देश बन गया।
इस दौरान भारत की करीब एक तिहाई आबादी यानी 42.6 करोड़ लोगों ने कम से कम सात दिनों तक भीषण गर्मी का सामना किया। जो 1991 से 2020 के बीच दर्ज उनके क्षेत्र में दर्ज किए गए 90 फीसदी तापमान से ज्यादा है। दूसरे शब्दों में, यह अतीत के अधिकांश तापमान की तुलना में सामान्य से बहुत अधिक गर्म था।
वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरह की गर्मी लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है। रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की है कि इस दौरान देश में 11 करोड़ से ज्यादा लोगों ने कम से कम महीने तक भीषण गर्मी का सामना किया।
बढ़ते तापमान से भट्ठी बने शहर
रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान कई शहरों में ऐसे दिन दर्ज किए गए जब तापमान जलवायु परिवर्तन से बहुत ज्यादा प्रभावित था। इनमें तिरुवनंतपुरम, वसई-विरार, कवरत्ती, ठाणे, मुंबई और पोर्ट ब्लेयर जैसे शहर शामिल थे।
इन शहरों में 70 या उससे अधिक दिन ऐसे रहे जब जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान के सामान्य से ज्यादा होने की आशंका कम से कम तीन गुणा ज्यादा थी। दूसरे शब्दों में, जलवायु परिवर्तन ने इन बहुत गर्म दिनों को पहले से कहीं ज्यादा आम बना दिया।
मुंबई में 54 दिन ऐसे रहे जब तापमान पर जलवायु परिवर्तन का असाधारण प्रभाव देखा गया। कानपुर और दिल्ली में तापमान का ऐसा लंबा दौर रहा, जिसे स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक माना जाता है। वहां औसत तापमान 39 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा। देखा जाए तो जलवायु में आते बदलावों की वजह से इस तरह के चरम तापमान की आशंका चार गुणा बढ़ गई है।
अपनी इस रिपोर्ट में क्लाइमेट सेंट्रल ने न केवल भारत बल्कि वैश्विक तापमान में होते इजाफे पर भी प्रकाश डाला है। इसके मुताबिक जून से अगस्त के बीच पृथ्वी के हर चौथे इंसान ने कम से कम 30 दिनों तक बेहद गर्मी का सामना किया, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक थी। यह गर्मी जलवायु परिवर्तन से बहुत अधिक प्रेरित थी।
इतना ही नहीं जब 13 अगस्त को वैश्विक तौर पर गर्मी अपने चरम पर थी तब 400 करोड़ लोगों ने असामान्य रूप से उच्च तापमान का सामना किया। जलवायु परिवर्तन की वजह से इस तरह के चरम तापमान की आशंका पहले से तीन गुणा बढ़ गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक 72 देशों ने 1970 के बाद से अब तक के सबसे गर्म जून से अगस्त का सामना किया। उत्तरी गोलार्ध के 180 शहरों में कम से कम एक बार पांच दिन या उससे अधिक समय तक भीषण लू का प्रकोप रहा।
क्लाइमेट सेंट्रल का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते अब पांच दिन या उससे अधिक समय तक चलने वाली लू की आशंका अब 21 गुणा बढ़ गई है। इसके लिए हम इंसानों द्वारा किया जा रहा उत्सर्जन जिम्मेवार है। जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक स्तर पर औसतन 17 अतिरिक्त दिनों के लिए बढ़ती गर्मी की वजह से तापमान “जोखिम भरा” हो गया है।
देखा जाए तो इस बढ़ते तापमान और जलवायु आपदाओं के लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। वैश्विक स्तर पर जिस तरह से उत्सर्जन बढ़ रहा है वो अपने साथ अनिगिनत समस्याओं की वजह बन रहा है। मतलब की कहीं न कहीं हम इंसानों स्वयं ही अपने विनाश की पटकथा लिख रहे हैं।