एशियाई मानसून में अहम भूमिका निभाती है तिब्बती पठार पर जमीं ताजे पानी की झीलें

सर्दियों के आखिर में बर्फ से ढकी झीलों का तापमान 6 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, गर्मी बर्फ के आवरण को पिघलाने में अहम भूमिका निभाती है
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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तीसरा ध्रुव कहलाने वाला तिब्बत का पठार दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा पठार है। यह पृथ्वी की जलवायु और जल चक्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका एशियाई मानसून प्रणाली के बनने में और पीली, यांग्त्ज़ी, मेकांग, साल्विन, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदियों जैसी बड़ी एशियाई नदियों की उत्पत्ति में अहम भूमिका है। तिब्बती पठार पर जमी ताजे पानी की झीलें लेंस की तरह काम कर सूरज की गर्मी जमा करती हैं।

इस ऊंचे पहाड़ या अल्पाइन पर स्थित झील प्रणाली किंघई-तिब्बत पठार के ऊपर स्थित है जिसे आमतौर पर तिब्बती पठार के रूप में जाना जाता है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि झीलें जमीन और वायुमंडल के बीच गर्मी के बदलाव को प्रभावित करती हैं, जिससे क्षेत्रीय तापमान और वर्षा प्रभावित होती है।

लेकिन तिब्बती झीलों के प्राकृतिक गुणों और गर्मी संबंधी (थर्मल) गतिशीलता के बारे में बहुत कम जानकारी है, खासकर सर्दियों के महीनों के दौरान जब झीलें बर्फ से ढंकी होती हैं। उस समय पर तापमान 6 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है। गर्मी पानी से बर्फ के आवरण को पिघलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

एक नए अध्ययन में, किरिलिन और सहयोगियों ने पठार पर सबसे बड़ी मीठे या पानी की झील (610 वर्ग किलोमीटर) चीन की नोरिंग झील को देखा, जो आमतौर पर दिसंबर से अप्रैल के मध्य तक बर्फ में ढंकी रहती है। टीम ने सितंबर 2015 में झील के सबसे गहरे हिस्सों में से एक में तापमान, दबाव और विकिरण लॉगर्स के बारे में पता लगाया।

उन्होंने झील की सतह के जमने के बाद एक नियम विरुद्ध गर्मी की प्रवृत्ति देखी, क्योंकि सतह पर सौर विकिरण ने बर्फ के नीचे ऊपर के पानी की परतों को गर्म कर दिया था। पूरे बर्फ के आवरण के एक महीने के भीतर मजबूत संवहन मिश्रण ने नोरिंग झील को पूरी तरह से अपनी औसत गहराई तक मिश्रित कर दिया। यह अध्ययन जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

अधिकांश बर्फ से ढकी झीलों में, पानी का तापमान आमतौर पर अधिकतम घनत्व तापमान से नीचे रहता है, लेकिन यहां शोधकर्ताओं ने पाया कि बर्फ के मौसम के मध्य तक पानी का तापमान अधिकतम मीठे पानी के घनत्व से अधिक था। जिसने जाड़े का मौसम के अंत में बर्फ के पिघलने को तेज कर दिया। जैसे ही बर्फ टूटती है, पानी का तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस गिर जाता है, केवल एक या दो दिनों में वातावरण में लगभग 500 वाट प्रति वर्ग मीटर गर्मी छोड़ देता है।

अध्ययन से पता चलता है कि झीलें बर्फ के नीचे निष्क्रिय नहीं रहती हैं। लेकिन प्रभाव स्थानीय झील प्रभावों से बाहर हैं। एक साथ लिया जाए, तो पठार के पार हजारों झीलें बर्फ के पिघलने के बाद हीट फ्लक्स हॉट स्पॉट हो सकती हैं, सौर विकिरण से अवशोषित कर गर्मी निकल सकती हैं और तापमान, संवहन और जल द्रव्यमान प्रवाह में परिवर्तन को वैश्विक स्तर पर संभावित प्रभावों के साथ चला सकती हैं।

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