जलवायु की चरम घटनाएं कभी भी और कहीं भी हो सकती हैं, इसकी मार धरती से लेकर समुद्र तक हर जगह पड़ती दिखाई दे रही है। दुनिया भर में 80 प्रतिशत व्यापार बंदरगाहों के जरिए होता है। हालांकि, कई बंदरगाहों को चरम मौसम की घटनाओं से कई तरह के व्यवधानों का सामना करना पड़ता है, जिससे समय के साथ-साथ आर्थिक नुकसान भी होता है।
अब ऑक्सफोर्ड के एनवायर्नमेंटल चेंज इंस्टीट्यूट के नए शोध में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि, 122 बिलियन डॉलर से अधिक की आर्थिक गतिविधि और 81 बिलियन डॉलर का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार चरम जलवायु घटनाओं के प्रभाव से खतरे में है।
शोध में कहा गया है कि, दुनिया भर में शिपिंग, व्यापार और आपूर्ति करने वाले नेटवर्क पर चरम मौसम का भारी असर पड़ेगा। इन खतरों से दुनिया भर के बंदरगाहों और अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होंगी, भले ही स्थानीय बंदरगाह चरम घटनाओं से सीधे प्रभावित न हों।
उत्तरी यूरोप, पश्चिमी अमेरिका, दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया, मध्य पूर्व और पश्चिम अफ्रीका के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से पूर्वी एशियाई बंदरगाहों पर निर्भरता के कारण ऐसे प्रभावों के पड़ने की आशंका जताई गई है। यह अहम है क्योंकि बंदरगाहों पर विदेशी निर्भरता के कारण आने वाले खतरों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह तब दिखाई देने लगा जब रूसी आक्रमण के कारण यूक्रेन के अनाज बंदरगाह अचानक बंद हो गए।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जब आश्रित बंदरगाहों, व्यापार प्रवाह, वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखलाओं में आने वाले व्यवधानों को ध्यान में रखा जाता है, तो इससे कम से कम 122 बिलियन डॉलर की आर्थिक गतिविधि की कुल खतरे संबंधी लागत बढ़ जाती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह स्पष्ट रूप से इन तथाकथित प्रणालीगत खतरों को मापने के महत्व पर प्रकाश डालता है, क्योंकि केवल बुनियादी ढांचे में स्थानीय नुकसान को देखने से भारी आर्थिक नुकसान से बचा जा सकता है जो चरम घटनाओं के दौरान हो सकता है।
नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित शोध के अनुसार, शीर्ष दस सबसे अधिक जोखिम वालीअर्थव्यवस्थाओं में ताइवान, मकाऊ, हांगकांग और कुछ छोटे द्वीप विकासशील राज्य (एसआईडीएस) शामिल हैं, जिनमें हर साल औसतन सभी तरह की खपत का 0.5 फीसदी से अधिक के बाधित होने के आसार हैं। लेकिन कुछ क्षेत्रों के लिए और भी बहुत कुछ है जो पूरी तरह समुद्री आयात पर निर्भर हैं।
एसआईडीएस को विशेष रूप से जिस तरह की कठिनाई का सामना करना पड़ता है, उनमें बहुत कम संख्या में क्षेत्रीय बंदरगाहों पर निर्भर होना हैं जिन पर विशेष रूप से चरम जलवायु का भारी असर पड़ता हैं, व्यवधान के मामले में सामान को दूसरे मार्ग पर ले जाने या डायवर्ट करने की क्षमता बहुत कम होती है।
अलग-अलग देशों में चरम जलवायु से पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए विनियमन पर विचार करने का आह्वान करते हुए, शोध टीम वैकल्पिक व्यापार मार्गों या भागीदारों की पहचान करने और ऐसे घटनाओं से निपटने के लिए बंदरगाह प्रणालियों में सुधार करने का सुझाव देती है।
अध्ययन में इस बात पर जोर देने की कोशिश की गई है कि सभी देशों को एक साथ आने की जरूरत है।
अध्ययन में कहा गया है कि, जलवायु परिवर्तन के लिए बंदरगाहों को अनुकूलित करना, जिसकी भविष्य में तत्काल जरूरत पड़ेगी। इसको एक वैश्विक सार्वजनिक भलाई के रूप में देखा जा सकता है, जिसके चलते बहुत जरूरी जलवायु वित्त को जारी करने में मदद मिलनी चाहिए।
शोधकर्ताओं के पिछले विश्लेषण से पहले ही पता चला है कि तूफान, बाढ़ और अन्य जलवायु चरम स्थितियों से बंदरगाहों को होने वाले नुकसान से हर साल लगभग आठ बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है।