जलवायु में आते बदलावों से कैक्टस की 60 फीसदी प्रजातियों पर मंडराया खतरा

कैक्टस पौधों की एक ऐसी जीवट किस्म है, जो गर्म से गर्म वातावरण में पनप सकती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौधों की यह प्रजातियां भी जलवायु में आते बदलावों से सुरक्षित नहीं है
जलवायु में आते बदलावों से कैक्टस की 60 फीसदी प्रजातियों पर मंडराया खतरा
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कैक्टस पौधों की एक ऐसी जीवट किस्म है, जो गर्म से गर्म वातावरण में पनप सकती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौधों की यह प्रजातियां भी जलवायु में आते बदलावों से सुरक्षित नहीं है। इन पर हाल ही में किए गए एक नए शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से इसकी बहुत सी किस्मों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है। 

कैक्टस एक ऐसा कंटीला पौधा जो गर्म रेगिस्तान से लेकर झुलसती गर्मी में भी फल-फूल सकता है। उसके बारे में एक आम धारणा यह है कि यह विषम से विषम परिस्थितियों में भी उग सकता है। ऐसा मानने के पीछे वजह भी है क्योंकि जिन मरुस्थलों में कोई पौधा नजर नहीं आता वहां भी यह आसानी से पनप सकता है।

माना जाता रहा है कि जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है वो इसके लिए फायदेमंद ही होगी, क्योंकि इसकी बनावट ऐसी है जो बढ़ती गर्मी और सूखे का सामना कर सकती है। लेकिन इस पर हाल ही में किए अध्ययन से पता चला है कि यह धारणा सही नहीं है, क्योंकि जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है उसकी वजह से इन पर विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है।

इस बारे में अमेरिकी और ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि 2050 तक कैक्टस की करीब 60 फीसदी प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगेगा। वैज्ञानिकों द्वारा किया अध्ययन "एलीवेटेड एक्स्टिंक्शन रिस्क ऑफ कैक्टी अंडर क्लाइमेंट चेंज" 14 अप्रैल 2022 को जर्नल नेचर प्लांट्स में प्रकाशित हुआ है।

दुनिया भर में कैक्टस की 1,500 से ज्यादा प्रजातियां ज्ञात है जिनमें से कई तो आद्र और सर्द वातावरण में पाई जाती हैं। कुछ प्रजातियां घने रेनफॉरेस्ट और पहाड़ों पर जहां तापमान कम होता है वहां भी मिलती हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यह पौधा किस सीमा तक गर्मी और सूखे की स्थिति का सामना कर सकता है। 

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कैक्टस की करीब एक चौथाई यानी 408 प्रजातियों पर अलग-अलग परिदृश्यों (2.6, 4.5 और 8.5) में जलवायु और बढ़ते तापमान के प्रभावों का अध्ययन किया है। पता चला है कि कैक्टस की करीब 60 फीसदी प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के चलते अपने आवास में गिरावट का सामना करने को मजबूर हो जाएंगी। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं को यह जानकर हैरानी हुई की इन तीनों ही परिदृश्यों में कैक्टस पर मंडराता खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा।

इतना ही नहीं अध्ययन की गई करीब 40 फीसदी प्रजातियों पर बदलाव का यह खतरा कहीं ज्यादा गंभीर होगा। हालांकि शोधकर्ताओं के मुताबिक कैक्टस की एक प्रजाति जिक-जिक के इन बदलावों के बीच उसके परिवेश में बढ़ने और फैलने की सम्भावना है। गौरतलब है कि कैक्टस की यह प्रजाति मूल रूप से ब्राजील की है।

बढ़ती इंसानी महत्वाकांक्षा विनाश के लिए है जिम्मेवार

शोध के मुताबिक उन क्षेत्रों में कैक्टस के विलुप्त होने का जोखिम सबसे ज्यादा है जहां उन कैक्टस की सबसे ज्यादा प्रजातियां और विविधता पाई जाती हैं। इस तरह शोधकर्ताओं का अनुमान है कि फ्लोरिडा और ब्राजील और मैक्सिको के कुछ हिस्सों में इनके अस्तित्व को सबसे ज्यादा खतरा है।

इससे पहले भी अक्टूबर 2015 में जर्नल नेचर प्लांट्स में प्रकाशित एक अन्य शोध में खुलासा किया था कि कैक्टस, पौधों की सबसे ज्यादा संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक है। अनुमान था कि कैक्टस की 1,478 में से 31 फीसदी खतरे में हैं। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि सूखे मरुस्थलों में भी जैवविविधता इंसानी प्रभाव से सुरक्षित नहीं है।

इस शोध में जो इसके पीछे की वजह बताई गई थी उसमें इंसान की बढ़ती जरूरतों के चलते भूमि की बढ़ती मांग शामिल थी जिसके लिए कैक्टस और अन्य प्रजातियों को साफ किया जा रहा है। इसके साथ ही इनकी अवैध बिक्री भी इनके विनाश की एक वजह है।

लोग इन्हें अपने घरों में सजाने के लिए खरीदते हैं और इन पौधों को इनके प्राकृतिक वातावरण से यह सोचे बिना दूर कर देते हैं कि यह दूसरे वातावरण में कैसे जिएंगे। कैक्टस की कई प्रजातियां तो बहुत महंगी हैं जिनकी कीमत एक हजार डॉलर से भी ज्यादा है। यही वजह है कि इनका अवैध व्यापार फल फूल रहा है।

इसके साथ ही शोध में इनके विनाश के लिए जलवायु परिवर्तन को भी वजह माना है। शोध के मुताबिक यह पौधे जलवायु के प्रति बड़े संवेदनशील होते हैं। यह एक सीमा तक इस बढे हुए तापमान का सामना कर सकते हैं लेकिन उसके बाद हार जाते हैं।

इस नए शोध के मुताबिक भविष्य में जलवायु परिवर्तन कैक्टस के विनाश की सबसे बड़ी वजह होगा। अनुमान है कि विलुप्त होने वाली 60 से 90 फीसदी प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए जलवायु परिवर्तन और इंसानी प्रभाव जिम्मेवार होंगें।              

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