लैंडफिल साइटों से उत्सर्जित हो रही है भारी मात्रा में मीथेन, एनजीटी ने दिए जांच के निर्देश

इन शहरों में मुंबई, पुणे कल्याण, अहमदाबाद, सूरत, बाड़मेर, जैसलमेर, तारानगर, चिड़ावा और असम का नाजिरा व डिब्रूगढ़-तिनसुकिया शामिल हैं
देश में लैंडफिल से उत्सर्जित होता प्रदूषण; फोटो: आईस्टॉक
देश में लैंडफिल से उत्सर्जित होता प्रदूषण; फोटो: आईस्टॉक
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 19 मार्च, 2024 को देश के कई शहरों में लैंडफिल साइटों पर रिपोर्ट तलब की है। इन शहरों में महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे और कल्याण के साथ गुजरात में अहमदाबाद और सूरत, राजस्थान में बाड़मेर, जैसलमेर, तारानगर और चिड़ावा के साथ-साथ असम का नाजिरा और डिब्रूगढ़-तिनसुकिया भी शामिल है।

एनजीटी ने इस मामले में तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश करने के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का भी निर्देश दिया है। इस समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सदस्य सचिव द्वारा नियुक्त एक वरिष्ठ अधिकारी, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रतिनिधि और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा नामित एक वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल होंगे।

कोर्ट के निर्देशानुसार समिति महत्वपूर्ण तथ्य जुटाएगी और जरूरत पड़ने पर साइटों का दौरा भी करेगी। साथ ही इस बारे में एक रिपोर्ट भी कोर्ट को सौंपेगी। यह रिपोर्ट इस बात पर ध्यान केंद्रित करेगी कि क्या साइटें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 की अनुसूची I का पालन कर रही हैं और अनुसूची के पैराग्राफ (एफ) में उल्लिखित किसी भी मुद्दे के समाधान के लिए क्या कार्रवाई की गई है। इस कार्य को पूरा करने के लिए समिति के पास तीन महीने का समय है।

इस मामले में अगली सुनवाई पांच जुलाई 2024 को होनी है।

रिपोर्ट में यह जानकारी शामिल होनी चाहिए कि क्या साइटों को एमएसडब्ल्यू नियम, 2016 के तहत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) से प्राधिकार प्राप्त हैं। इसके साथ ही रिपोर्ट में साइटों पर जमा कचरे की मात्रा और एमएसडब्ल्यू नियम, 2016 के अनुसार इन साइटों के आसपास वायु गुणवत्ता निगरानी के आंकड़े शामिल होने चाहिए।

समिति ओएनजीसी साइटों से मीथेन जैसे कार्बनिक उत्सर्जन को कम करने के लिए उठाए गए कदमों का भी जिक्र रिपोर्ट में करेगी। इसके अतिरिक्त, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), और महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को भी इस मामले में प्रतिवादी के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि यह मामला सात फरवरी, 2024 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए शुरू किया गया था। इस खबर में मुख्य रूप से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक अध्ययन के आधार पर अहमदाबाद और सूरत में लैंडफिल साइटों से बड़ी मात्रा में मीथेन उत्सर्जन की जानकारी दी गई थी।

इस खबर में महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और असम के कुछ शहरों में लैंडफिल साइटों को दर्शाने वाला एक चार्ट भी शामिल था, साथ ही इन साइटों से उत्सर्जित मीथेन की औसत मात्रा की भी जानकारी दी गई थी, जो भारी प्रदूषण का कारण बन रही है।

अदालत की राय है कि इस खबर में पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया गया है। कोर्ट के अनुसार यह मुद्दा केवल चार राज्यों तक ही सीमित नहीं है, ऐसा लगता है कि यह पूरे भारत की समस्या है।

हवाई अड्डों पर ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एनजीटी ने दिए निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को सभी संबंधित हवाई अड्डों और एयरलाइंस को सर्कुलर भेजने का निर्देश दिया है। इस सर्कुलर में उनसे शोर का स्तर कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाने की बात कही गई है, ताकि 18 जून, 2018 को जारी अधिसूचना का पालन किया जा सके। कोर्ट के निर्देशानुसार डीजीसीए को तीन महीने के भीतर, संबंधित हवाई अड्डों और एयरलाइंस को फैसले की एक प्रति के साथ ये सर्कुलर जारी करने होंगें।

अदालत ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) को शहरी विकास और विमानन मंत्रालय के साथ-साथ राज्य सरकारों के साथ सहयोग करने का सुझाव दिया है, ताकि भविष्य में हवाई अड्डे के विकास और आवासीय निर्माण के कारण होने वाले शोर से आम लोगों को बचाया जा सके।

दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड ने अदालत को सूचित किया है कि उसने इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (आईजीआई) और एटीसी पालम में परिचालन करने वाली एयरलाइनों को सर्कुलर भेजा था। इस सर्कुलर में उनसे शोर को कम करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करने की बात कही गई थी। उनसे आधुनिक तकनीकों को अपनाने का आग्रह किया गया है। हालांकि यह निर्देश केवल दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे द्वारा प्रबंधित हवाई अड्डों पर लागू होता है।

भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने अपने तहत आने वाले हवाईअड्डों और वहां संचालित होने वाली एयरलाइनों के लिए इस तरह के सर्कुलर या निर्देश जारी नहीं किए हैं।

एनजीटी ने सुझाव दिया है कि एएआई को अपने द्वारा संचालित सभी हवाई अड्डों के लिए इसी तरह के निर्देश जारी करने चाहिए। इसके साथ ही उन हवाई अड्डों पर चल रही सभी संबंधित एयरलाइनों को भी निर्देश जारी करने चाहिए। यह कार्रवाई फैसले की तारीख से दो महीने के भीतर पूरी की जानी चाहिए।

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