दलदली भूमि में दो तरह के सूक्ष्मजीव आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं, कुछ मीथेन का उत्पादन करते हैं, वहीं कुछ सूक्ष्मजीव उस मीथेन का उपभोग करते हैं, ऑक्सीजन का उपयोग करके इसे कम हानिकारक सीओ2 में बदल देते हैं।
दलदली भूमि में दो तरह के सूक्ष्मजीव आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं, कुछ मीथेन का उत्पादन करते हैं, वहीं कुछ सूक्ष्मजीव उस मीथेन का उपभोग करते हैं, ऑक्सीजन का उपयोग करके इसे कम हानिकारक सीओ2 में बदल देते हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक

बढ़ती गर्मी से दलदल से भारी मात्रा में उत्सर्जित हो रही है मीथेन, सूक्ष्मजीव भी निपटने में नाकाम

खारे, सल्फेट की अधिकता वाले जगहों में, एनारोबिक सूक्ष्मजीव बिना ऑक्सीजन वाली मिट्टी में उत्पादित मीथेन का 70 फीसदी तक हटा सकते हैं, हालांकि तापमान को बढ़ाए जाने के बाद चीजें बदल जाती हैं।
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दुनिया भर में मीथेन तापमान में लगभग 19 फीसदी की बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार है। जबकि दलदली भूमि को कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) को हटाने में महारत हासिल है, जो कि अधिक प्रचुर मात्रा में ग्रीनहाउस गैस है, वे दुनिया में मीथेन का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत भी हैं।

अलग-अलग देशों के द्वारा मानवजनित गतिविधियों से उत्सर्जित मीथेन को कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं, इसलिए यह समझना अहम है कि दलदली भूमि प्राकृतिक रूप से कितनी मीथेन उत्सर्जित करती हैं और भविष्य में वे कितनी ज्यादा मीथेन उत्सर्जित कर सकती हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि अगर दलदली जमीन से बड़ी मात्रा में मीथेन का उत्सर्जन होता है और अगर हमें इसके बारे में कुछ भी पता नहीं चलता है, तो जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए हमारा कार्बन कटौती का लक्ष्य भविष्य में पटरी से उतर जाएगा।

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दलदली भूमि में दो तरह के सूक्ष्मजीव आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं, कुछ मीथेन का उत्पादन करते हैं, वहीं कुछ सूक्ष्मजीव उस मीथेन का उपभोग करते हैं, ऑक्सीजन का उपयोग करके इसे कम हानिकारक सीओ2 में बदल देते हैं।

सूक्ष्मजीवों की रस्साकशी

दलदली भूमि की मिट्टी में दो तरह के सूक्ष्मजीव आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव मीथेन का उत्पादन करते हैं, जो सीओ2 से 45 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। लेकिन दूसरे सूक्ष्मजीव उस मीथेन का उपभोग करते हैं, ऑक्सीजन का उपयोग करके इसे कम हानिकारक सीओ2 में बदल देते हैं। यह सरल बदलाव ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित रखने के लिए प्रकृति के सबसे शक्तिशाली तरीकों में से एक है।

शोध में एनारोबिक नामक सूक्ष्मजीवों के एक विशेष वर्ग पर गौर किया गया है। एनारोबिक सूक्ष्मजीव मुक्त ऑक्सीजन रहित स्थानों पर रहते हैं, ऐसे क्षेत्र जो बाढ़ वाले दलदली जमीन में काफी आम हैं। लंबे समय से वे मीथेन निकलने की प्रक्रिया को कमजोर कर रहे हैं। मुक्त ऑक्सीजन के बिना, इन सूक्ष्मजीवों को मीथेन का उपभोग करने में कठिनाई होती है।

यहां बताते चले कि एनारोबिक सूक्ष्मजीव ऐसे जीव हैं जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में पनपते हैं।

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अधिकतर मीथेन का उत्पादन ऑक्सीजन की कमी वाले इन वातावरणों में होता है। इसका मतलब है कि इसके लिए एनारोबिक सूक्ष्मजीव सबसे आगे हैं। वे अपना काम कर रहे हैं। एनारोबिक सूक्ष्मजीव 12 फीसदी तक मीथेन हटा सकते हैं, उनके ऑक्सीजन-प्रेमी समकक्षों की तुलना में बहुत कम, लेकिन वैज्ञानिकों ने पहले जितना अनुमान लगाया था उससे कहीं अधिक है।

खारे, सल्फेट की अधिकता वाले जगहों में, एनारोबिक सूक्ष्मजीव बिना ऑक्सीजन वाली मिट्टी में उत्पादित मीथेन का 70 फीसदी तक हटा सकते हैं। हालांकि तापमान को बढ़ाए जाने के बाद चीजें बदल जाती हैं।

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एक तेजी से आगे बढ़ता जलवायु प्रयोग

शोधकर्ताओं ने दलदली जमीन पर एक प्रयोग करके एक गर्म भविष्य का अनुकरण किया। वैज्ञानिकों ने इन्फ्रारेड लैंप और भूमिगत केबलों की पंक्तियों को सक्रिय करके दलदली जमीन के कुछ हिस्सों में तापमान को 5.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा दिया। जमीन के कुछ हिस्सों में शोधकर्ताओं ने अधिक यथार्थवादी भविष्य बनाने के लिए सीओ2 भी बढ़ाया।

तापमान बढ़ने से मीथेन उत्सर्जन में भी बढ़ोतरी हुई। ऐसा इसलिए नहीं था क्योंकि सहायक सूक्ष्मजीव कमजोर हो गए थे। गर्म मिट्टी ने उन्हें पहले से भी अधिक मीथेन निकालने के लिए उकसाया। हालांकि उनके प्रतिस्पर्धी मीथेन उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीव भी अधिक सक्रिय हो गए। एक गर्म दुनिया में, मीथेन निकालने वाले सूक्ष्मजीव आपस में तालमेल नहीं रख पाए।

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शोध के मुताबिक, मीथेन उत्सर्जन कितना बढ़ा, यह पौधों पर निर्भर करता है। घने दलदली पौधे वाले क्षेत्रों में, मीथेन उत्सर्जन लगभग चार गुना अधिक बढ़ गया। लेकिन जहां घास छोटी थीं, वहां मीथेन उत्सर्जन केवल 1.5 गुना बढ़ा।

विडंबना यह है कि बहुत ज्यादा सीओ2 ने प्रभाव को कम कर दिया, लेकिन इसे खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं है। वैज्ञानिकों ने जब भारी तापमान और सीओ2 का एक साथ परीक्षण किया तो घने दलदली पौधे वाले जमीन के हिस्सों में मीथेन उत्सर्जन लगभग चार गुना होने के बजाय सामान्य स्तर से दोगुना हो गया।

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शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं को इस बात का संदेह है क्योंकि सीओ2 पौधों को बड़ी जड़ें विकसित करने में मदद करती है। जड़ें मिट्टी में अधिक ऑक्सीजन इंजेक्ट करती हैं, जिससे सूक्ष्मजीवों के उपयोग के लिए और भी अधिक ऑक्सीजन युक्त सल्फेट यौगिक बनते हैं।

साइंस एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि दलदली भूमि का संरक्षण अभी भी दुनिया को जलवायु परिवर्तन से बचाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे तूफान और चरम मौसम से जीवन रक्षक हिस्से तैयार करते हैं। मीथेन मुद्दे के बावजूद, दलदली भूमि अन्य रूपों में ग्रह के बढ़ते तापमान कार्बन उत्सर्जन को बंद करने में अहम भूमिक निभाता है।

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तटीय इलाकों की दलदली भूमि का एक एकड़ उष्णकटिबंधीय वर्षावन के एक एकड़ से अधिक कार्बन जमा कर सकता है। जलवायु को फायदा पहुंचाने के लिए तटीय दलदली भूमि की रक्षा और दोबारा स्थापित करने का बड़ा फायदा है।

शोध में कहा गया है कि भविष्य की योजना बनाने के लिए नीति निर्माताओं को यह जानना होगा कि आने वाले दशकों में दलदली भूमि कितनी मीथेन उत्सर्जित करेगी। आखिरकार जलवायु परिवर्तन केवल गर्म तापमान के बारे में नहीं है। यह उन अनदेखी गतिविधियों के बारे में भी है जो ग्रीनहाउस गैसों के संतुलन को बिगाड़ सकती हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि इस बात पर भी विचार करना होगा कि जलवायु परिवर्तन इन नाजुक माइक्रोबियल प्रक्रियाओं, जैसे मीथेन ऑक्सीकरण और मीथेन उत्पादन को कैसे प्रभावित करेगा?"

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