नदियां ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), मीथेन (सीएच4) और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) के अहम स्रोत हैं। नदियों से होने वाले ये उत्सर्जन मानवजनित गतिविधियों, जैसे कि कृषि उर्वरक या उपचारित अपशिष्ट जल के नदियों में छोड़े जाने के कारण बढ़ सकते हैं, क्योंकि इनमें अक्सर पोषक तत्वों की भारी मात्रा होती है।
नदी के जीएचजी उत्सर्जन पर अपशिष्ट जल के प्रभावों को अभी भी ठीक से समझा नहीं गया है। यहां शोधकर्ताओं ने दो नदियों का अध्ययन किया है, जिनमें नगरपालिका का अपशिष्ट जल छोड़ा जाता है।
शोध के मुताबिक, नदी का वह हिस्सा जिसमें उपचारित अपशिष्ट जल छोड़ा जाता है, वह उस नदी के अन्य हिस्से की तुलना में पांच गुना अधिक मीथेन उत्सर्जित करता है। इस बात का खुलासा रेडबौड यूनिवर्सिटी के इडा पीटर्स और लिसाने हेंड्रिक्स के शोध में किया गया है।शोध के मुताबिक, अध्ययन में माइक्रोबायोलॉजिस्ट पीटर्स और इकोलॉजिस्ट हेंड्रिक्स ने लिंगे और क्रोमे रिजन नदियों के विभिन्न हिस्सों पर होने वाले मीथेन उत्सर्जन को मापा गया।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, एक फ्लोटिंग चैंबर का उपयोग करके, नदी से पानी की सतह पर उठने वाली गैसों का पता लगाया और उनका विश्लेषण किया। उन्होंने इस बात की भी जांच की कि पानी और मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व मौजूद थे।
शोधकर्ताओं ने जल उपचार संयंत्र से 500 मीटर पहले, उपचार संयंत्र से निकलने वाले अपशिष्ट पानी पर, उसके 500 मीटर बाद और इसी तरह दो किलोमीटर बाद तक ऐसा किया। एक उपचार संयंत्र के डिस्चार्ज पॉइंट के दो किलोमीटर बाद, शोधकर्ताओं ने मीथेन के भारी उत्सर्जन होने का पता लगाया, जो डिस्चार्ज पॉइंट से पांच गुना अधिक था।
नदी पर अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र का प्रभाव
इस तरह शोधकर्ताओं ने दिखाया कि उपचारित पानी, हालांकि डच मानकों के अनुसार साफ है, लेकिन नदी पर इसका असर पड़ता है। शोधकर्ता ने कहा, उपचारित पानी में नाइट्रोजन, फॉस्फेट और कार्बन भी होता है। उदाहरण के लिए, पानी में मौजूद ये सभी पोषक तत्व शैवाल को बढ़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये शैवाल आखिरकार नष्ट हो जाते हैं और नीचे डूब जाते हैं, जो बदले में मीथेन-उत्पादक सूक्ष्म जीवों के लिए एक आदर्श स्थिति होती है।
क्योंकि इस प्रक्रिया में कुछ समय लगता है, इसलिए डिस्चार्ज पॉइंट के ठीक बाद मीथेन उत्सर्जन बहुत अधिक नहीं होता। हालांकि थोड़ा आगे बढ़ने पर यह बढ़ जाता है।
शोधकर्ता ने शोध में कहा, हालांकि नदियों में छोड़ा जाने वाला पानी डच मानकों को पूरा करता है, लेकिन यह समझना जरूरी है कि यह अभी भी मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि के लिए जिम्मेवार है। क्योंकि नदियों जैसी जल प्रणालियां मीथेन उत्सर्जन के लिए 50 फीसदी तक के लिए जिम्मेदार हैं, इसलिए यह ऐसी चीज है जिससे निपटा जा सकता है। यह शोधपत्र साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।