डाउन टू अर्थ विश्लेषण: साल 2022 में 365 में से 314 दिन हुई मौसम की अप्रत्याशित घटनाएं

2022 में 314 दिन मौसम की अप्रत्याशित घटनाओं के कारण 3,026 लोगों की जान गई
असम में पिछले साल मई में आई बाढ़ ने जानमाल को काफी नुकसान पहुंचाया। बाढ़ ने 35 में से 30 जिलों के 50 लाख लोगों को प्रभावित किया (फोटो: रॉयटर्स)
असम में पिछले साल मई में आई बाढ़ ने जानमाल को काफी नुकसान पहुंचाया। बाढ़ ने 35 में से 30 जिलों के 50 लाख लोगों को प्रभावित किया (फोटो: रॉयटर्स)
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मौसम से जुड़ी अप्रत्याशित घटनाओं को हम आमतौर पर बड़े पैमाने पर होने वाले विनाश और नुकसान से जोड़कर देखते हैं। हम यह भी मान लेते हैं कि मीडिया हमेशा ऐसी सारी घटनाओं को कवर करता है, उन्हें सुर्खियां बनाता है। लेकिन, हकीकत इससे अलग है। असामान्य मानी जाने वाली इन घटनाओं की गंभीरता हर जगह अलग-अलग होती है। इनमें से अधिकतर घटनाओं की कभी कोई रिपोर्टिंग नहीं होती है। इनकी वजह से दुनिया पर पड़ने वाले असर चिंताजनक हैं।

2022 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ का डेटा सेंटर देशभर हो रहीं ऐसी घटनाओं को पूरे साल ट्रैक करता रहा। इस दौरान पाया गया कि भारत में 365 दिन में मौसम से जुड़ी 314 अप्रत्याशित चरम मौसमी घटनाएं हुईं। इसका तात्पर्य यह है कि देश के किसी न किसी हिस्से में 314 दिन ये घटनाएं घटित हुईं। भारत के वेदर डिजास्टर एटलस ने भी पाया कि अलग-अलग राज्यों में एक ही दिन मौसम की अलग-अलग अप्रत्याशित घटनाएं दर्ज की गईं। उदाहरण के तौर पर, 8 जुलाई 2022 को 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 3 तरह की अप्रत्याशित घटनाएं घटीं। कहीं भयंकर बारिश, बाढ़ और भूस्खलन हुआ, तो कहीं तूफान आया, आकाशीय बिजली गिरी और बादल फटा।

मौसम की इन अप्रत्याशित घटनाओं ने 2022 में 3,026 लोगों की जान ले ली, 1.96 मिलियन हेक्टेयर में फसलें बर्बाद हो गईं। इनसे 4,23,249 घर तहस-नहस हो गए और 69,899 पशु इनकी चपेट में आकर मर गए। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, यह देश का अब तक का 5वां सबसे गर्म साल था। पूरे साल में सबसे ज्यादा 214 दिन भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं हुईं। 185 दिन आकाशीय बिजली गिरी और तूफान आया। 66 दिन हीटवेव की चपेट में बीते, जबकि 46 दिन लोगों को शीतलहर का सामना करना पड़ा। 11 दिन बादल फटने की घटनाएं हुईं, 4 दिन बर्फबारी और 3 दिन साइक्लोन आया। देशभर में पूरे साल जितने दिन ये अप्रत्याशित घटनाएं दर्ज हुईं, उसके मुताबिक विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार की गई।



हर क्षेत्र पर मौसम का कहर

आईएमडी ने पूरे देश को चार क्षेत्रों में बांटा- उत्तर पश्चिम, दक्षिणी प्रायद्वीप, पूर्व व पूर्वोत्तर और सेंट्रल इंडिया। सीएसई-डाउन टू अर्थ डेटा सेंटर के विश्लेषण से पता चलता है कि सभी क्षत्रों को मौसम की इन अप्रत्याशित घटनाओं को झेलना पड़ा। उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में शामिल 10 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में 2022 में 237 दिन किसी न किसी तरह की मौसम से जुड़ी अप्रत्याशित घटनाओं का सामना करना पड़ा। वहीं, मध्य भारत में 218 दिन ऐसी घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में 196 दिन अप्रत्याशित घटनाएं हुईं। देश के दक्षिणी हिस्से में 170 दिन इन घटनाओं की चपेट में बीते।

मौसम से जुड़ी इन अप्रत्याशित घटनाओं से हुए नुकसान को समझने के लिए 4 मानकों पर विश्लेषण किया गया। ये मानक थे- इंसानों की मौत, प्रभावित कृषि क्षेत्र, क्षतिग्रस्त मकान और मारे गए पशुओं की संख्या। इन चरम मौसम की घटनाओं से 2022 में सबसे ज्यादा 939 मानव मौतें मध्य भारत में हुईं। वहीं, उत्तर-पश्चिम इलाके में 878 लोगों की जान गई, पूर्व व पूर्वोत्तर भारत में 810 लोगों और दक्षिणी क्षेत्र में 400 लोगों की मौत हुई।

करीब 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र मौसम की अप्रत्याशित घटनाओं के कारण प्रभावित हुआ। इसमें से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र दक्षिण रहा, जहां 12 लाख हेक्टेयर फसल खराब हो गई। उत्तर पश्चिम और पूर्व व पूर्वोत्तर भारत में 3-3 लाख हेक्टेयर फसल का नुकसान हुआ। वहीं, मध्य भारत में 2 लाख हेक्टेयर फसल चौपट हो गई। देशभर में 4,23, 249 मकान इन घटनाओं के चलते प्रभावित हुए। इनमें से सबसे ज्यादा 3,20,262 मकान पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में तहस-नहस हो गए। देश के दक्षिणी हिस्से में 66,916 मकानों पर मौसम का कहर टूटा। इसी तरह, मध्य भारत में 28,226 और उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में 7,846 मकान टूट गए। 2022 में मौसम के कहर की चपेट में आकर जान गंवाने वाले 69,899 पशुओं में से सबसे ज्यादा 55,611 की मौत पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में हुई।



आंकड़ों में खेल

भारत का वेदर डिजास्टर एटलस मौसम की अप्रत्याशित घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान से जुड़ा आंकड़ा गृह मंत्रालय के नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट डिविजन, आईएमडी और मीडिया रिपोर्ट्स से जुटाता है। इन घटनाओं में मारे गए लोगों व पशुओं की संख्या, प्रभावित कृषि क्षेत्र और टूटे मकानों से जुड़ा डेटा डिजास्टर मैनेजमेंट डिविजन जारी करता है। लेकिन, सरकार द्वारा जारी आंकड़ों और असली आंकड़े अलग-अलग है। उदाहरण के तौर पर अक्टूबर 2022 तक मौसम की अप्रत्याशित घटनाओं के चलते 3,965 मकानों को नुकसान पहुंचा था, जबकि एक महीने बाद सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों में क्षतिग्रस्त मकानों की संख्या घटकर 3,935 रह गई। इससे पहले के महीनों के डेटा में भी ऐसा ही अंतर पाया गया। भारत में सितंबर 2022 तक 18,43,543 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र मौसम से जुड़ी अप्रत्याशित घटनाओं की चपेट में आया। लेकिन, अक्टूबर के अंत तक सरकारी आंकड़ों में कुल प्रभावित कृषि क्षेत्र 18,07,137 हेक्टेयर दिखाया गया। इस तरह 36,000 हेक्टेयर प्रभावित कृषि क्षेत्र सरकारी आंकड़ों में कम हो गया।

उत्तर प्रदेश में यह समस्या ज्यादा है। इस राज्य में मौसम की अप्रत्याशित घटनाओं का सबसे अधिक असर अक्टूबर में देखा गया। इसके बावजूद सितंबर और अक्टूबर के बीच यहां प्रभावित कृषि क्षेत्र 81,793 हेक्टेयर कम हो गया। अगर आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो इस संख्या में लगातार इतनी गिरावट संभव नहीं है। इसी तरह की विसंगति जानवरों की मौत में भी देखी जा सकती है। महाराष्ट्र में सितंबर के अंत तक 4,330 जानवरों की मौत हुई। फिर महज एक महीने बाद के आंकड़ों राज्य में पशुओं की कुल मौतों की संख्या घटकर 4,301 हो गई।

राज्य सरकारों की ओर से दी गई नुकसान और क्षति की जानकारी में भी इस तरह की विसंगतियां नजर आईं, जबकि इस साल 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मौसम की अप्रत्याशित घटनाएं दर्ज की गईं। हालांकि, सिर्फ 15 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ही फसल को नुकसान दर्ज किया गया। जिन राज्यों की लिस्ट में फसल को हुए नुकसान का कोई डेटा नहीं मिला, उनमें मध्य प्रदेश भी शामिल है, जहां मौसम की मार सबसे ज्यादा दिनों तक दर्ज की गई। मध्य प्रदेश के साथ ही हरियाणा, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे कृषि राज्यों में भी फसलों के नुकसान का कोई डेटा नहीं मिला। जबकि, इसकी संभावना कम ही लगती है कि इतनी घटनाओं के बाद भी फसलों को कोई नुकसान नहीं हुआ होगा।

क्षति और नुकसान के आंकड़ों का लोगों के पुनर्वास पर सीधा असर पड़ता है। यह मुद्दा मिस्र के शरम अल-शेख में हाल ही में संपन्न जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के पक्षकारों के 27वें सम्मेलन (कॉप27) के केंद्र में भी था। तब दुनियाभर के नेताओं ने नुकसान और क्षति की भरपाई के लिए आर्थिक सुविधा दिए जाने पर सहमति जताई थी। भारत की योजना इस सुविधा के तहत क्लाइमेट फंड मांगने की है। इसके लिए उसे अपने नुकसान और क्षति के आंकड़ों को दुरुस्त करने की जरूरत होगी।

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