जलवायु संकट: गर्म होते महासागरों से भाग रही प्रवाल भित्तियां

आशंका है कि बढ़ते तापमान के साथ 86 फीसदी प्रवाल भित्तियां खत्म हो सकती हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उठाए ठोस कदम इस नुकसान को एक-तिहाई तक सीमित कर सकते हैं
जलवायु परिवर्तन के कारण नष्ट होती प्रवाल भित्तियां
जलवायु परिवर्तन के कारण नष्ट होती प्रवाल भित्तियां
Published on

वैश्विक तापमान में होता इजाफा हम इंसानों के साथ-साथ दूसरे जीवों के लिए भी खतरा है, ऐसे में यह जीव अपने-अपने तरीकों से इससे बचने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा ही कुछ प्रवाल भित्तियों के मामले में भी देखा गया है, जो गर्म होते महासागरों से बचने के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से बाहर की ओर बढ़ रही हैं, लेकिन उनके पलायन की यह गति इतनी धीमी है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बच पाना मुश्किल है।

यह जानकारी अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण अध्ययन में सामने आई है। यह अध्ययन हवाई विश्वविद्यालय के हवाई इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन बायोलॉजी की मरीन इकोलॉजिकल थ्योरी लैब के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

यह भी पढ़ें
जलवायु संकट: प्रवाल भित्तियों में तीन गुणा बढे रोग, सदी के अंत तक 77 फीसदी होंगे शिकार
जलवायु परिवर्तन के कारण नष्ट होती प्रवाल भित्तियां

हालांकि साथ ही अध्ययन में उम्मीद की एक किरण भी दिखाई दी है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर अभी से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जाए, तो प्रवाल भित्तियों का भविष्य काफी बेहतर हो सकता है।

धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं प्रवाल भित्तियां

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता नोआम वोग्ट-विंसेंट ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "जैसे-जैसे समुद्र गर्म होता है, कई प्रजातियां ठंडी इलाकों की ओर बढ़ने लगती हैं। इतिहास गवाह है कि जलवायु परिवर्तन के दौरान प्रवाल भित्तियां अपने क्षेत्र का प्रसार कर चुकी हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ये प्रक्रिया दशकों में होती है या सदियों में।

प्रवाल भित्तियों के प्रसार में होने वाले बदलावों का अनुमान लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने सुपरकंप्यूटर की मदद ली है। इसकी मदद से उन्होंने एक वैश्विक मॉडल तैयार किया, जिसमें करीब 50,000 प्रवाल भित्तियों को शामिल किया गया।

यह भी पढ़ें
50 वर्षों में विलुप्त हो जाएंगी पश्चिमी हिंद महासागर की सभी प्रवाल भित्तियां?
जलवायु परिवर्तन के कारण नष्ट होती प्रवाल भित्तियां

इस मॉडल में प्रवालों की वृद्धि, फैलाव, अनुकूलन और गर्मी के प्रति उनकी सहनशीलता जैसे जरूरी पहलुओं को शामिल किया गया। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने तीन संभावित जलवायु परिदृश्यों को ध्यान में रखा, जिसमें पहले परिदृश्य में तापमान के सदी के अंत तक दो डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान है। वहीं दूसरे परिदृश्य में इसके तीन डिग्री सेल्सियस जबकि भीषण गर्मी वाले परिदृश्य में तापमान के सदी के अंत तक चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की आशंका है।

नई भित्तियां बनेंगी, पर देर से

अध्ययन से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियों के अपनी वर्तमान सीमाओं से बाहर फैलने में सदियां लगती हैं। हालांकि यह तय है कि उनका विस्तार होगा, लेकिन प्रवाल भित्तियों को सबसे ज्यादा नुकसान आने वाले 60 वर्षों में होने की आशंका है।

इसका मतलब है कि जो नई भित्तियां भविष्य में ठन्डे इलाकों में बनेंगी, वे समय रहते नहीं बन पाएंगी। ऐसे में अधिकतर उष्णकटिबंधीय प्रवाल प्रजातियों का बचना मुश्किल हो जाएगा।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि उत्तरी फ्लोरिडा, दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी जापान जैसे क्षेत्रों में भविष्य में नई प्रवाल भित्तियां बन सकती हैं, लेकिन यह बदलाव इतना धीरे होगा कि इस सदी के भीतर प्रवालों को बचाने में मदद नहीं कर पाएगा।

यह भी पढ़ें
वैश्विक उत्सर्जन में तीव्र वृद्धि से 2050 तक 94 फीसदी प्रवाल भित्तियां हो जाएंगी खत्म
जलवायु परिवर्तन के कारण नष्ट होती प्रवाल भित्तियां

अब भी बची हैं उम्मीदें

अध्ययन में सामने आया है कि अगर पेरिस जलवायु समझौते जैसे सख्त कदम उठाए जाएं तो उससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कमी आ सकती है। इस तरह प्रवाल भित्तियों का होने वाले संभावित नुकसान को भी काफी हद तक रोका जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि 86 फीसदी प्रवाल भित्तियां खत्म हो सकती हैं। लेकिन ठोस कदमों की मदद से इस नुकसान को एक-तिहाई तक सीमित किया जा सकता है।

वोग्ट-विंसेंट का कहना है, "ग्रीनहाउस गैसों में कमी सिर्फ इस सदी के लिए नहीं, बल्कि आने वाली सैकड़ों-हजारों वर्षों तक प्रवाल भित्तियों के भविष्य को बेहतर बना सकती है। ऐसे में आने वाले कुछ दशकों में लिए हमारे फैसले, इन नाजुक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों पर गहरा असर डालेंगे।"

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in