बढ़ता तापमान केवल हम इंसानों के लिए ही खतरा नहीं है। इसकी वजह से दूसरे जीव भी प्रभावित हो रहे हैं। ऐसा ही कुछ प्रवाल भित्तियों के मामले में भी सामने आया है। रिसर्च से पता चला है बढ़ते तापमान के साथ इन प्रवाल भित्तियों में लगने वाली बीमारियां भी बढ़ रहीं हैं।
आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले 25 वर्षों में इन प्रवाल भित्तियों यानी मूंगे में लगने वाला रोग बढ़कर तीन गुणा हो गया है। इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर 9.92 फीसदी प्रवाल भित्तियां प्रभावित हुई हैं। चिंता की बात तो यह है कि यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती है।
इस बारे में द यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (यूएनएसडब्ल्यू) के शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि बढ़ते तापमान के साथ सदी के अंत तक 76.8 फीसदी प्रवाल भित्तियां बीमारियों की चपेट में होंगी, जिसकी वजह से उनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। देखा जाए तो मूंगे पर बढ़ते प्रभावों का असर स्थानीय समुदायों पर भी पड़ेगा। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल इकोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं।
अपने इस अध्ययन में द यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स के वैज्ञानिकों ने प्रवाल के स्वास्थ्य से जुड़े 108 अध्ययनों का विश्लेषण किया है। साथ ही प्रवाल भित्तियों में बढ़ते रोगों और समुद्रों के तापमान में होती वृद्धि के बीच के संबंध का भी अध्ययन इस रिसर्च में किया गया है। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह समझने का प्रयास किया है कि कैसे महासागरों में बढ़ता तापमान दुनिया भर में मूंगों में रोगों का प्रसार कर रहा है। साथ ही उन्होंने भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट करने के लिए मॉडलिंग का सहारा लिया है।
बढ़ते तापमान से खतरे में हैं समुद्री इकोसिस्टम
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता सामंथा बर्क का कहना है कि, "रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं वो इस बात को उजागर करते हैं कि बढ़ते तापमान के साथ प्रवाल भित्तियों पर खतरा बढ़ रहा है। यह खतरा समय के साथ विनाशकारी रूप ले लेगा। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के लिए सख्त कार्रवाई की जरूरत है।"
उनका कहना है कि कोरल में लगने वाली यह बीमारियां इनकी मृत्यु दर और रीफ में आने वाली गिरावट की बड़ी वजह हैं। वहीं मॉडलिंग से पता चला है कि यदि समुद्र के बढ़ते तापमान की रफ्तार थम भी जाए तो भी स्थिति बदतर होती जाएगी।
अध्ययन से यह भी पता चला है कि अटलांटिक या हिन्द महासागर की तुलना में प्रशांत महासागर में स्थिति कहीं ज्यादा खराब होने की आशंका है। इस बारे में सामंथा का कहना है कि, "हमारे लिए यह जानना मुश्किल है कि रोगों के बढ़ते प्रसार के लिए क्या केवल समुद्र का तापमान या कई अन्य कारक भी जिम्मेवार हैं।
लेकिन यह स्पष्ट है कि दुनिया भर में बढ़ते तापमान के साथ मूंगों में लगने वाला रोग बढ़ रहा है और यदि बढ़ते तापमान को कम करने के लिए तत्काल प्रयास न किए गए तो कहीं ज्यादा मूंगें इससे प्रभावित होंगें।
बता दें कि यह प्रवाल भित्तियां समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में अहम भूमिका निभाती हैं। दुनिया की एक चौथाई मछलियां इन्हीं पर निर्भर हैं। साथ ही वह भित्तियां तटीय समुदायों के लिए मायने रखती हैं। यह समुदाय मछली पालन और पर्यटन के लिए इन्हीं मूंगें की चट्टानों पर निर्भर हैं। इतना ही नहीं यह चट्टानें तूफान और तटों के कटाव से भी इनकी रक्षा करती हैं।
वहीं मूंगे में लगने वाले रोग की बात करें तो यह तब होता है जब उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है। आमतौर पर इसकी वजह से रोगजनक इन्हें शिकार बना पाते हैं। देखा जाए तो यह कोरल ब्लीचिंग से अलग होता है।
50 वर्षों में विलुप्त हो जाएंगी पश्चिमी हिंद महासागर की सभी प्रवाल भित्तियां
इस बारे में सामंथा ने बताया कि, "कुछ बीमारियां बड़ी तेजी से फैलती हैं। अधिकांश मूंगे जो रोगग्रस्त होते हैं वो इसकी वजह से मर जाते हैं। चूंकि चट्टानों को जमने में दोबारा लम्बा समय लग जाता है, इतने में मूंगा ठीक नहीं हो पाता ऐसे में चट्टान का पूरा हिस्सा ही खत्म हो जाता है।
रिसर्च के अनुसार कोरल्स संवेदनशील जीव होते हैं। जो जीवित रहने के लिए पानी के तापमान, लवणता और गुणवत्ता के साथ पर्यावरणीय की सटीक परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। एक बार यह परिस्थितियां जब उनकी सीमा से बाहर हो जाती हैं तो इनका जीवन खतरे में पड़ जाता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इन मूंगों में लगने वाली कई रोगजनकों के बारे में अभी भी सीमित जानकारी उपलब्ध है। वैज्ञानिक अभी भी इन्हें समझने का प्रयास कर रहे हैं। सामंथा के अनुसार अभी भी इस बारे में पता नहीं है कि क्या बीमार मूंगे से जुड़े सूक्ष्म जीव बीमारी का कारण हैं या लक्षण। बस इतना पता है कि मूंगा बीमार है और उसके ऊतक मर रहे हैं।
जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि यदि इन प्रवाल भित्तियों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई न की गई तो अगले 50 वर्षों में पश्चिमी हिंद महासागर की सभी प्रवाल भित्तियां विलुप्त हो जाएंगी। वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा वैश्विक तापमान में हो रही तीव्र वृद्धि और मछलियों के जरूरत से ज्यादा किए जा रहे शिकार के कारण हो रहा है।
वहीं हाल ही में अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रवाल भित्तियों पर किए एक शोध से पता चला है कि वैश्विक उत्सर्जन में यदि तीव्र वृद्धि जारी रहती है तो 2050 तक करीब 94 फीसदी प्रवाल भित्तियां खत्म हो जाएंगी। हालांकि यह अनुमान ग्लोबल वार्मिंग के आरसीपी 8.5 परिदृश्य पर आधारित है।