कॉप 27: जलवायु में बदलाव से सुंदरवन को 40 साल में हुआ दो लाख करोड़ का नुकसान

पिछले 25 वर्षों में यहां रहने वाले 62 प्रतिशत लोगों ने अपनी मूल आजीविका खो दी है और 15 लाख लोगों को यहां से सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर किया है
कॉप 27: जलवायु में बदलाव से सुंदरवन को 40 साल में हुआ दो लाख करोड़ का नुकसान
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सुंदरवन बंगाल की खाड़ी में निचले द्वीपों का एक समूह है, जो भारत और बांग्लादेश में फैला हुआ है। इस क्षेत्र को इसकी अनोखी जैव विविधता और पारिस्थितिकी महत्व के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है। यहां दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है, जो 10,200 वर्ग किमी के इलाके में फैला है।

अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान एजेंसी 'जीरो कार्बन एनालिटिक्स' की रिपोर्ट के मुताबिक सुंदरबन दुनिया के सबसे कमजोर माने जाने वाले 72 लाख लोगों का घर है। जिसमें भारत के 45 लाख और बांग्लादेश के 27 लाख लोग शामिल हैं।

हानि और क्षति में पारिस्थितिकी तंत्र को 32,549 करोड़ रुपये का नुकसान और कृषि उत्पादन में नुकसान, भूमि और पानी के खारेपन के कारण 1.6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में सबसे अधिक नुकसान जमीन को होना बताया गया है।

रोजगार के अवसरों की कमी के कारण, अधिकांश लोग भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं जो जलवायु में बदलाव से तेजी से नष्ट हो रहे हैं। पिछले 25 वर्षों में यहां रहने वाले 62 प्रतिशत लोगों ने अपनी मूल आजीविका खो दी है और 15 लाख लोगों को यहां से सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर किया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में बंगाल और बांग्लादेश में फैले अहम पारिस्थितिकी को भारी नुकसान हुआ है। विश्लेषण के अनुसार पिछले 40 साल में सुंदरबन में जीवन, संपत्ति और आजीविका में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। 

विश्लेषण की सबसे चिंताजनक बात यह है कि केवल पिछले तीन साल में ही चार बड़े चक्रवातों के कारण 1.6 लाख करोड़ रुपये की भारी क्षति हुई है।

सुंदरबन में पानी और मिट्टी के खारेपन में भारी वृद्धि हुई है। बांग्लादेश में 1984 से  2014 के बीच, मिट्टी में खारापन छह गुना और कुछ क्षेत्रों में यह 15 गुना तक बढ़ गया है। मिट्टी के खारेपन से फसलें बर्बाद हो जाती है और किसानों की आजीविका को भारी नुकसान पहुंचता है।

रिपोर्ट का अनुमान है कि समुद्र के स्तर में एक मीटर की वृद्धि से खेती में खारेपन के कारण भूमि क्षरण से 5,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने के आसार हैं।

जीरो कार्बन एनालिटिक्स के शोधकर्ताओं ने पिछले 30 सालों में सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व की "पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं" में 27,000 करोड़ रुपये के नुकसान होने का अनुमान लगाया है, जिसमें से 80 प्रतिशत से अधिक मैंग्रोव हैं।

चरम मौसम की घटनाएं अधिक लगातार और खतरनाक हो रही हैं

पिछले 23 वर्षों में, इस क्षेत्र में 13 सबसे बड़े चक्रवात देखे गए हैं। सुंदरवन के साथ बंगाल की खाड़ी में, 1881 से  2001 के बीच चक्रवात की घटनाओं में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट से पता चला है कि 2000 से 2018 के बाद के मॉनसून के मौसम में बहुत गंभीर चक्रवातों की आवृत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों ने 2041 से  2060 के बीच की अवधि में मॉनसून के बाद के चक्रवातों की आवृत्ति में लगभग 50 फीसदी की वृद्धि का अनुमान लगाया है।

क्यों है हानि और क्षतिपूर्ति की जरूरत?

गौरतलब है कि सुंदरबन दुनिया भर में उत्सर्जन के लिए बहुत कम जिम्मेदार है। पूरे बंगाल और बांग्लादेश में वैश्विक उत्सर्जन का केवल 0.56 फीसदी हिस्सा है। लेकिन यहां के लोग जलवायु में बदलाव के परिणाम भुगतने को विवश हैं। कई अन्य विकासशील देशों और कमजोर समुदायों के साथ-साथ इस इलाके को अत्यधिक नुकसान और क्षति को भुगतने लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।

मिस्र के शर्म अल-शेख में चल रहे संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता (कॉप 27) के एजेंडे में आधिकारिक तौर पर शामिल की गई नुकसान और क्षति का वित्तपोषण।यह बताते चलें कि भारत सहित विकासशील और कमजोर देशों को होने वाले नुकसान और क्षति की भरपाई के लिए वित्तपोषण की मांग लंबे समय से हो रही है।

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