जलवायु संकट: जलवायु रिकॉर्ड का सबसे गर्म वर्ष होगा 2024, वैज्ञानिकों ने जताई 55 फीसदी आशंका

बढ़ता तापमान न केवल धरती को प्रभावित कर रहा है, इससे समुद्र भी सुरक्षित नहीं है। मार्च 2024 में समुद्र के औसत तापमान को देखें तो वो सामान्य से रिकॉर्ड 1.01 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया
विनाश की राह पर मानवता; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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इस बात की 55 फीसदी आशंका है कि 2024 जलवायु रिकॉर्ड का सबसे गर्म साल होगा। वहीं 2024 के पांच सबसे गर्म वर्षों में शुमार होने की 99 फीसदी आशंका है। यह जानकारी नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।

गौरतलब है कि कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) के बाद अब एनओएए ने भी इस बात की पुष्टि की है कि मार्च 2024 जलवायु इतिहास का अब तक का सबसे गर्म मार्च था। जब मार्च 2024 के दौरान औसत तापमान 20वीं सदी में मार्च के औसत तापमान से 1.35 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। आंकड़ों के मुताबिक यह लगातार 48वां मार्च है जब तापमान बीसवीं सदी के औसत तापमान से ज्यादा दर्ज किया गया है।

गौरतलब है कि इससे पहले सबसे गर्म मार्च होने का यह रिकॉर्ड मार्च 2016 के नाम दर्ज था, जब तापमान बीसवीं सदी के औसत से 1.34 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया था। इसी तरह पिछले वर्ष मार्च 2023 में औसत तापमान बीसवीं सदी के औसत तापमान से 1.23 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था।

वहीं यदि धरती की सतह के तापमान को देखें तो यह उसे चौथा सबसे गर्म मार्च बनाता है। जब तापमान सामान्य से 2.09 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया है। इतना ही नहीं जून 2023 से यह लगातार दसवां महीना है जब वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड बनाया है। मतलब की जून 2023 से कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा, जब किसी महीने बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड न कायम किया हो।

बढ़ते तापमान से सुरक्षित नहीं पृथ्वी का कोई भी कोना

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि मार्च 2024 में अफ्रीका, यूरोप और दक्षिण अमेरिका के अधिकांश हिस्सों के साथ-साथ पूर्वी उत्तरी अमेरिका, पूर्वी एशिया और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में तापमान औसत से ऊपर रहा।

वहीं पश्चिमी उत्तरी अमेरिका, मध्य एशिया और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्से औसत से कहीं ज्यादा ठंडे थे। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका ने जहां अब तक के अपने सबसे गर्म मार्च का सामना किया, जबकि यूरोप के लिए यह दूसरा सबसे गर्म मार्च था। एशिया के लिए यह बारहवां सबसे गर्म मार्च रहा।

ऐसा नहीं है कि बढ़ते तापमान का असर केवल धरती तक ही सीमित था, इसका प्रभाव समुद्रों पर भी दर्ज किया गया। रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2024 के दौरान अधिकांश क्षेत्रों में समुद्र की सतह का तापमान औसत से ऊपर था।

समुद्र के औसत तापमान को देखें तो वो सामान्य से 1.01 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है। जो उसे समुद्र में बढ़ते तापमान के लिहाज से अब तक का सबसे गर्म मार्च बनाता है। इससे पहले 2016 में समुद्र की सतह का तापमान सबसे ज्यादा 0.83 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।

मार्च में विशेषकर उष्णकटिबंधीय अटलांटिक महासागर में, जहां बढ़ता तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। हालांकि दक्षिणी महासागर, दक्षिणपूर्वी प्रशांत और दक्षिणी हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में तापमान औसत से कम रहा। वहीं यदि अप्रैल 2023 से मार्च 2024 के बीच देखें तो वैश्विक महासागर पूरे वर्ष असाधारण रूप से गर्म रहे। पिछले लगातार बारह महीनों से समुद्र का तापमान भी नए रिकॉर्ड बना रहा है।

हालांकि तापमान में यह बढ़ोतरी ऐसे समय में दर्ज की गई है जब मौजूदा अल नीनो अपनी समाप्ति की ओर अग्रसर है। जून 2023 में उभरी यह अल नीनो की स्थिति मार्च में और कमजोर पड़ गई है। एनओएए के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र के अनुसार, अप्रैल से जून 2024 के बीच इस बात की 85 फीसदी सम्भावना है कि अल नीनो का प्रभाव खत्म हो जाएगा और जून से अगस्त 2024 के ला नीना के बनने की 60 फीसदी सम्भावना है।

धरती से कई किलोमीटर ऊपर भी तापमान ने बनाए रिकॉर्ड

इसी तरह बढ़ते तापमान का असर धरती से कई किलोमीटर ऊपर भी रिकॉर्ड किया गया। मार्च में, मध्य-क्षोभमंडल (पृथ्वी की सतह से करीब दो से छह मील ऊपर) में तापमान ने नए रिकॉर्ड बनाए है। इसकी पुष्टि एनईएसडीआईएस के उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों ने भी की है। यदि पिछले नौ महीनों को देखें तो प्रत्येक के दौरान वैश्विक मध्य-क्षोभमंडल में तापमान ने नया रिकॉर्ड बनाया है।

वहीं यदि इस साल के पहले तीन महीनों यानी जनवरी, फरवरी और मार्च 2024 में बढ़ते तापमान की बात करें तो वो भी इस बीसवीं सदी में इस अवधि के दौरान दर्ज तापमान से 1.35 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है।

दक्षिण अमेरिका ने जहां इस अवधि के दौरान बढ़ते तापमान का नया रिकॉर्ड बनाया है। वहीं अफ्रीका, यूरोप और ओशिनिया ने भी दूसरी सबसे गर्म अवधि का सामना किया है। वहीं उत्तरी अमेरिका के लिए यह रिकॉर्ड की चौथी सबसे गर्म अवधि रही।

यदि मार्च 2024 के दौरान सामने आई कुछ महत्वपूर्ण जलवायु घटनाओं को देखें तो जहां ऑस्ट्रेलिया ने अपने दसवें सबसे गर्म मार्च का सामना किया था। वहीं दक्षिण ऑस्ट्रेलिया रिकॉर्ड का सबसे गर्म मार्च रहा। कैरिबियन क्षेत्र ने भी अपने अब तक के सबसे गर्म मार्च का सामना किया था।

मार्च के दौरान कई देशों में भारी बारिश और बाढ़ की घटनाएं भी सामने आई थी। ऐसा ही कुछ दक्षिण-पूर्वी ब्राजील में सामने आया जहां भारी बारिश और बाढ़ ने दो दर्जन से ज्यादा जिंदगियों को निगल लिया। इसी तरह अर्जेंटीना में आई भारी बारिश और तूफान ने भीषण तबाही मचाई थी। उत्तर पूर्वी फ्रांस में आए तूफान मोनिका की वजह से वहां बाढ़ की गंभीर स्थिति पैदा हो गई थी।

इंडोनेशिया में आई भारी बारिश की वजह से बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं सामने आई थी, जिसने जान माल को क्षति पहुंचाई थी। मार्च 2024 में मंगोलिया का करीब 25 फीसदी हिस्सा बर्फ की चादर ओढ़े हुए था। वहां कड़कड़ाती सर्दी और लगातार बर्फबारी की वजह से किसानों ने लाखों मवेशियों को खो दिया।

मार्च के दौरान, उत्तरी गोलार्ध में बर्फ का आवरण 1991 से 2020 के औसत से कम दर्ज किया गया, जो रिकॉर्ड में आठवां सबसे छोटा था। इस दौरान यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका दोनों में सामान्य से कम बर्फबारी देखी गई।

जहां यूरेशिया में इसमें औसत 220,000 वर्ग मील और उत्तरी अमेरिका में 320,000 वर्ग मील की कमी दर्ज की गई। कुल मिलाकर कहें तो, यूरोप और पूर्वी अमेरिका के कई हिस्सों में औसत से कम बर्फबारी हुई, जबकि पश्चिमी अमेरिका में सामान्य से अधिक बर्फबारी दर्ज की गई।

इसी तरह यदि ध्रुवों पर जमा बर्फ को देखें तो वैश्विक समुद्री बर्फ का विस्तार 46 वर्षों में आठवीं बार इतना कम दर्ज किया गया है। जो 1991 से 2020 के औसत से 410,000 वर्ग मील कम है। बता दें कि इस दौरान समुद्री बर्फ का विस्तार 69.7 लाख वर्ग मील रिकॉर्ड किया गया।

जहां इस दौरान आर्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से 60,000 वर्ग मील कम रहा, जबकि अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ का विस्तार औसत से बहुत कम था, जो 350,000 वर्ग मील कम दर्ज किया गया। देखा जाए तो यह अंटार्कटिक में मार्च के दौरान जमा बर्फ की आठवीं सबसे छोटी सीमा है।

यदि मार्च 2024 में दर्ज ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात को देखें तो इस दौरान दुनिया भर में चार नामित तूफान आए, जो 1991 से 2020 के औसत से कम हैं। इस दौरान आया एक मात्रा गंभीर चक्रवात नेविल था। इसी तरह दक्षिणी हिंद महासागर में भी दो अन्य तूफान आए थे।

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