जलवायु संकट: जून में रिकॉर्ड गर्मी, जुलाई में दो गुणा अधिक बारिश से देवभूमि त्राहिमाम

उत्तराखंड में जून में रिकॉर्ड गर्मी के बाद, जुलाई के शुरूआती दस दिनों में ही सामान्य से दोगुनी बारिश हो चुकी है, वैज्ञानिक इसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेवार मान रहे हैं
उत्तराखंड में 18 जून, 2013 को आई जलवायु त्रासदी का गवाह रहा केदारनाथ धाम; फोटो: आईस्टॉक
उत्तराखंड में 18 जून, 2013 को आई जलवायु त्रासदी का गवाह रहा केदारनाथ धाम; फोटो: आईस्टॉक
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देवभूमि उत्तराखंड के लिए पिछले दो महीन काफी कठिन गुजरे हैं। जहां जून में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की वजह से उत्तराखंड वासी भीषण गर्म से परेशान रहे, वहीं अब जुलाई में भारी बारिश ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया।

पिछले कुछ दिनों से हो रही भारी बारिश और उसके बाद एकाएक आई बाढ़ और भूस्खलन जैसी चरम मौसमी घटनाओं ने इस हिमालयी राज्य की जलवायु में आते बदलावों को लेकर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।

भूस्खलन की ऐसी ही एक घटना 10 जुलाई 2024 को सामने आई, जब उत्तराखंड के चमोली जिले के पाताल गंगा इलाके में देखते ही देखते पहाड़ दरक गया। भारी भूस्खलन की इस घटना के चलते जोशीमठ- बद्रीनाथ हाईवे को तत्काल बंद कर दिया गया है। जलवायु संगठन क्लाइमेट ट्रेंड ने भी अपने विश्लेषण में इसके लिए जलवायु में आते बदलावों को जिम्मेवार माना है।

खास बात यह है कि जून 2024 में यहां कई दिनों तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया, जिसने मौसम विज्ञानियों को भी चौंका दिया।

आंकड़ों के मुताबिक दस जुलाई तक ही राज्य में 328.6 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है, जबकि सामान्यतः मानसून के दौरान इस समय तक 295.4 मिलीमीटर बारिश होती है। अब तक उत्तराखंड में सामान्य से 11.24 फीसदी अधिक बारिश हो चुकी है।

आशंका है कि आने वाले दिनों में यह प्रवत्ति बनी रह सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तराखंड में हो रही भारी बारिश और जानलेवा लू के लिए आर्द्रता जिम्मेदार है। आर्द्रता और तापमान बिगड़ते मौसम के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा जारी विश्लेषण के मुताबिक उत्तराखंड में जुलाई की शुरूआत बारिश के साथ हुई। वहीं महीने के शुरूआती दस दिनों में ही सामान्य से दोगुनी बारिश हो चुकी है। आंकड़ों से पता चला है कि एक से दस जुलाई के बीच उत्तराखंड में 239.1 मिमी बारिश हुई जबकि आमतौर पर इन दिनों में 118.6 मिलीमीटर बारिश होती है।

मतलब कि यहां जुलाई के शुरूआती दस दिनों में औसत से दोगुनी बारिश हुई है। जाहिर है कि अब तक यहां 102 फीसदी अधिक बारिश रिकॉर्ड की जा चुकी है। यदि जुलाई में होने वाली बारिश को देखें तो उत्तराखंड में इस एक महीने में आमतौर पर 417.8 मिलीमीटर बारिश होती है।

रिकॉर्ड तापमान के बाद भारी बारिश ने बढ़ाई मुश्किलें

जहां जून में उत्तरखंड बारिश की कमी का शिकार था, वहीं अब सामान्य से अधिक बारिश यहां परेशानी का सबब बन रही है। इस प्रदेश के 13 जिलों में जुलाई के दौरान भारी बारिश हुई है। बागेश्वर में तो 357.2 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जबकि सामान्य तौर पर यहां इस दौरान 77.7 मिलीमीटर बारिश होती है।

मतलब कि एक से नौ जुलाई के बीच यहां सामान्य से करीब पांच गुणा यानी 360 फीसदी अधिक बारिश हो चुकी है। इसके बाद ऊधम सिंह नगर में सामान्य से 280 फीसदी अधिक बारिश हुई है। वहीं चंपावत में यह आंकड़ा 272 फीसदी दर्ज किया गया है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके लिए बढ़ता तापमान जिम्मेवार है। देखा जाए तो हमारा वातावरण और समुद्र बड़ी तेजी से गर्म हो रहे है, जिसकी वजह से वातावरण में नमी भी बढ़ रही है। इसकी वजह से धरती से पानी का वाष्पीकरण भी अधिक हो रहा है, नतीजन भारी बारिश होती है।

भारत में भी ऐसा ही कुछ देखा जा रहा है, जहां तापमान में होती बढ़ोतरी के साथ सापेक्ष आद्रता भी बढ़ रही है। क्लॉसियस क्लैपेरॉन समीकरण के मुताबिक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के साथ हवा में करीब सात फीसदी नमी बढ़ती है। कभी-कभी तो इसकी वजह से बेहद थोड़े समय में छोटे क्षेत्र में ही भारी बारिश की स्थिति बन जाती है।

स्काईमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन विभाग के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने इस पर प्रकाश डालते हुए विश्लेषण में जानकारी दी है कि, उत्तराखंड में भारी बारिश की वजह कई मानसूनी परिस्थितियों का मिलना है। उत्तरी पाकिस्तान और आसपास के इलाके में बना पश्चिमी विक्षोभ, मध्य पाकिस्तान से बन रहा कम दबाव वाले क्षेत्र के साथ बंगाल की खाड़ी से आ रही पूर्वी हवाओं ने उत्तराखंड के वातावरण में नमी को बढ़ा दिया है। इनके कारण घने बादल बन रहे हैं, जिसकी वजह से भारी बारिश हो रही है।"

उनके मुताबिक बढ़ते तापमान के साथ, भारी बारिश की यह प्रवत्ति कहीं ज्यादा आम हो जाएगी।

देखा जाए तो जुलाई में भारी बारिश से पहले उत्तराखंड ने भीषण गर्मी का भी सामना किया है। इस हिमालयी राज्य में जून के दौरान कई दिनों तक तापमान लगातार 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया था। तापमान में इस बदलाव को लेकर मौसम वैज्ञानिक भी हैरान हैं। विश्लेषण के मुताबिक जलवायु में आते बदलावों की वजह से चरम मौसमी परिस्थितियां बन रही हैं, जो इस पहाड़ी क्षेत्र में पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियां पैदा कर रही हैं। इनकी वजह से आम लोगों की जीविका और जान पर खतरा मंडरा रहा है।

भारी बारिश, रिकॉर्ड तापमान: क्या जलवायु परिवर्तन से जुड़े हैं तार

वैसे भी जून में पड़ी गर्मियां सजा से कम नहीं थी। इस दौरान उत्तराखंड के करीब-करीब सभी जिले लू की चपेट में थे। हालात यह थे कि नौ से 20 जून के बीच देहरादून में पारा लगातार 11 दिनों तक 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर दर्ज किया गया। मई के दौरान भी देहरादून में पारा आठ दिनों तक 40 डिग्री सेल्सियस के पार रहा।  

मुक्तेश्वर हिल स्टेशन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जहां मई में कम से कम पांच मौकों पर तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जिसे पहाड़ी क्षेत्र में लू की शुरूआत कह सकते हैं। जून में तो गर्मी कहर बनकर टूटी, जब मुक्तेश्वर में दस दिनों तक तापमान 30 डिग्री से अधिक रहा।

15 जून को मुक्तेश्वर में तापमान 32.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ, जो बीते दस साल में सबसे अधिक है। देखा जाए तो यह 16 जून 2012 को रिकार्ड मुक्तेश्वर के इतिहास के सर्वाधिक तापमान 32.5 डिग्री सेल्सियस के भी बहुत करीब है। इसमें बस महज 0.3 डिग्री सेल्सियस का अंतर रहा।

पंतनगर में भी बढ़ते तापमान ने 10 साल का रिकार्ड तोड़ दिया, जब 19 जून को तापमान 41.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। यहां 11 से 20 जून के बीच लगातार दस दिनों तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार दर्ज किया गए। मई की शुरुआत से ही इस शहर में तापमान 40 डिग्री के पास पहुंचने लगा था, वहीं आखिरी चार दिन तो यह 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया। 

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक तापमान में हुई इस भारी वृद्धि के लिए कम बारिश और लंबे समय तक बनी शुष्क परिस्थितियां जिम्मेवार हैं। इस दौरान मानसून से पहले होने वाली बारिश (प्री मानसून) भी न के बराबर रही। पलावत का कहना है, ‘बारिश में यह उतार-चढ़ाव सामान्य है लेकिन इन परिस्थितियों की कमी में जलवायु परिवर्तन की भूमिका बढ़ जाती है।

मई और जून में लम्बे समय तक बना शुष्क मौसम ने तापमान को बढ़ा दिया।" उनके अनुसार वैश्विक तापमान में होता इजाफा मौसम को भी प्रभावित कर रहा है। इसकी वजह से लू और बारिश के पैटर्न पर भी असर पड़ रहा है।

गर्मी में बढ़ते तापमान से जंगल में लगने वाली आग की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। एक अन्य रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बेहद गर्म दिनों व रातों की संख्या बढ़ रही है जबकि अत्यधिक ठंडे दिन व रात घट रहे हैं। बीते चार दशकों से उत्तराखंड में चरम मौसमी घटनों का कोप भी बढ़ा है। उत्तराखंड में जंगल में लगने वाली आग का सीजन मार्च के अंत से शुरू होकर करीब 11 हफ्ते तक रहता है। एक जनवरी 2024 से तीन जून 2024 के बीच उत्तराखंड में 247 फायर अलर्ट जारी किए गए।

ग्लोबल फारेस्ट वाच द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक नैनीताल में 2001 से 2023 के बीच सबसे अधिक 12 हेक्टेयर में फैले जंगल को आग से नुकसान पहुंचा है। देखा जाए तो उत्तराखंड में बढ़ता तापमान जंगल की आग को हवा दे रहा है। कहीं न कहीं जलवायु में आता बदलाव पहाड़ी क्षेत्रों में मौसमी और पर्यावरण से जुड़ी परिस्थितियों को प्रभावित कर रहा है। 2001 से 2023 के बीच उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से 1.18 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में पेड़ों को नुकसान पहुंचा है। वहीं अन्य सभी कारणों से 19.5 हजार हेक्टेयर में फैले जंगल नष्ट हुए हैं।

आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ रजनीश रंजन का कहना है, ‘भीषण गर्मी और जंगल की आग में सीधा संबंध है। हालांकि इस बात से इंकार नहीं कि जंगल में लगने वाली इस आग के लिए इंसान जिम्मेवार हैं। लेकिन इस साल हमने जो देखा है उससे स्पष्ट है कि कैसे बढ़ता तापमान जंगल में आग की स्थिति को तेज कर सकता है। अत्यधिक लंबे सूखे मौसम ने तापमान में वृद्धि के साथ सूखी पत्तियों के गिरने की प्रवृत्ति में भी इजाफा किया है।

इन कारणों के चलते आग जंगल में बढ़ी और दूर तक फैल गई जिससे वन क्षेत्र का भारी नुकसान हुआ।" उनके मुताबिक आग बुझाने के उपायों के साथ-साथ बढ़ते उत्सर्जन को कम करने पर भी ध्यान देना होगा।

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