फसलों पर लगने वाली नई-नई बीमारियों के लिए जिम्मेवार है जलवायु परिवर्तन

अध्ययन में ब्राजील, उप-सहारा अफ्रीका, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया सहित उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फसलों पर अधिक बीमारियां लगने की आशंका व्यक्त की गई है
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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एक नए शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया के कई हिस्सों में फसलों को लगने वाली बीमारियों में काफी बढ़ोतरी होगी। हालांकि कई इलाकों में इसमें कमी आने की भी संभावना है। जैसे कि गर्म होती धरती के कुछ इलाकों जैसे ब्राजील, उप-सहारा अफ्रीका, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया सहित उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फसलों पर अधिक बीमारियां लगने की आशंका व्यक्त की गई है।

इस शोध में कहा गया है कि भूमध्य रेखा से आगे, फसलों पर बीमारी लगने के खतरे बढ़ेंगे। खासकर यूरोप और चीन के विशेष रूप से प्रभावित होने के आसार हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के अध्ययन के मुताबिक ये बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के तहत फसलों की उत्पादकता पर पैनी नजर रखेंगे। मॉडल बताते हैं कि बढ़ते तापमान से उच्च अक्षांशों पर अधिकांश फसलों की पैदावार बढ़ेगी, जबकि उष्णकटिबंधीय इलाकों में फसलों की उपज घटने के आसार हैं।

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि अमेरिका, यूरोप और चीन में फसलों को प्रभावित करने वाले बीमारियों के मिश्रण में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। एक्सेटर के बायोसाइंसेज विभाग और ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर डैनियल बेबर ने कहा दुनिया भर में पौधों में रोग फैलाने वाले जीव पहले से उत्पादन को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

शोधकर्ता ने कहा कि हमारे पिछले शोध से पता चला है कि फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट भूमध्य रेखा से दूर जा रहे हैं। इस नए अध्ययन में हम आने वाले दशकों में बीमारी फैलाने वाले कीटों से होने वाले खतरों का अनुमान लगा रहे हैं। हमारे परिणाम बताते हैं कि समशीतोष्ण क्षेत्रों में जलवायु संबंधित उपज का फायदा, बढ़ते फसल सुरक्षा के बोझ को कम करेगा।

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और परिवहन द्वारा तेजी से दुनिया भर में बीमारी फैलाने वाले कीटों के उन सभी क्षेत्रों तक पहुंचने की आशंका है जहां परिस्थितियां उनके लिए उपयुक्त हैं। पौधों में कीटो के द्वारा फैलने वाला संक्रमण दर तापमान सहित बहुत सी स्थितियों से निर्धारित होती है।  

अध्ययन ने 80 कवक और ओमीसीट फसलों में बीमारी फैलाने वाले कीटों के लिए न्यूनतम और अधिकतम संक्रमण तापमान पर मौजूदा जानकारी का उपयोग किया है। यहां बताते चलें कि ओमीसीट जिसे "वाटर मोल्ड्स" के रूप में भी जाना जाता है, कई सौ जीवों का एक समूह है, जिसमें पौधों में कुछ सबसे विनाशकारी रोग फैलाने वाले कीट शामिल हैं।  

शोधकर्ताओं ने आरसीपी6.0 जलवायु के तहत तीन फसल मॉडल और चार वैश्विक जलवायु मॉडल का उपयोग करते हुए 12 प्रमुख फसलों के लिए वर्तमान पैदावार और भविष्य में 2061 से 80 तक के उपज अनुमानों की तुलना की। सह-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर सारा गुर ने कहा कि प्रत्येक क्षेत्र में बदलते रोगजनक मिश्रण का एक बड़ा प्रभाव हो सकता है।

प्रोफेसर गुर ने कहा कि प्लांट-ब्रीडिंग और एग्रोकेमिकल कंपनियां विशेष बीमारियों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। उदाहरण के लिए यूके में गेहूं के प्रजनक सेप्टोरिया ट्रिटिकी ब्लॉच, पीला रतुआ और भूरे रंग का रतुआ के प्रतिरोध पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन अब इस तरह के खतरे बदल सकते हैं।

सह-अध्ययनकर्ता थॉमस चालोनर ने कहा कृषि के भविष्य के लिए योजना और तैयारी करनी है और इसका समय आ गया है। हमारे पास केवल कुछ दशक हैं और फसल उगाने में लंबा समय लग सकता है, इसलिए हमें रोगजनकों के प्रतिरोध के बारे में सोचने की जरूरत है जो अभी तक नहीं किया गया है।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि बहुत सारे बीमारी फैलाने वाले कीटों, विशेष रूप से जो वर्तमान में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं इन पर गंभीरता से शोध किया जाता है। हमें इन बीमारियों को समझने में निवेश करने की आवश्यकता है, जो दुनिया के प्रमुख फसल उगाने वाले क्षेत्रों में तेजी से फैल सकती हैं।

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