बॉन जलवायु सम्मेलन 2024: हानि एवं क्षति के मुद्दे पर सहयोग की है दरकार, तीसरी ग्लासगो वार्ता में उठी आवाज

हानि एवं क्षति के मुद्दे पर तीसरी ग्लासगो वार्ता में दक्षिण से उठी आवाजों ने बेहतर समन्वय और मजबूत तंत्र की मांग की है
 @COP29_AZ / X (formerly Twitter)
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जर्मनी के बॉन में इस सप्ताह हानि एवं क्षति के मुद्दे पर तीसरी ग्लासगो वार्ता हुई। इस वार्ता का आयोजन यूएन फ्रेमवर्क कंवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के सहायक निकायों (एसबी60) के 60वें सत्र के दौरान किया गया।

दो दिनों और तीन सत्रों में हुई इस वार्ता में जलवायु परिवर्तन से होने वाली हानि और क्षति से निपटने के तरीकों पर चर्चा की गई। इस दौरान हानि और क्षति पर बनाए सैंटियागो नेटवर्क (एसएनएलडी), वारसॉ इंटरनेशनल मैकेनिज्म (डब्ल्यूआईएम), और नए लॉस एंड डैमेज फंड (एलडीएफ) जैसे विभिन्न मुद्दों पर गौर किया गया।  

उद्घाटन सत्र में, प्रत्येक तंत्र के सह-अध्यक्षों ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में हानि एवं क्षति (एलएंडडी) पर हुई प्रगति के बारे में चर्चा की। इस दौरान लॉस एंड डैमेज फंड (एलडीएफ) के सह-अध्यक्ष जीन-क्रिस्टोफ डोनेलियर ने फंड से जुड़े बोर्ड के गठन, संस्थागत व्यवस्थाओं, और नियमों को औपचारिक बनाने के लिए उठाए गए सकारात्मक कदमों का जिक्र किया।

वहीं हानि और क्षति पर बनाए सैंटियागो नेटवर्क के सह-अध्यक्ष अल्फा कलोगा का कहना था कि इस नेटवर्क का उद्देश्य हानि और क्षति (एलएंडडी) को संबोधित करने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करना है। वहीं वारसॉ इंटरनेशनल मैकेनिज्म की सह-अध्यक्ष कैमिला मिनर्वा रोड्रिग्ज ने एलएंडडी को संबोधित करने के लिए ज्ञान, संवाद और कार्रवाई को बढ़ाने में मैकेनिज्म की भूमिका पर प्रकाश डाला।

हालांकि वे सभी इस बात पर सहमत थे कि लॉस एंड डैमेज फंड से जुड़े मुद्दों से निपटने और उसे बेहतर बनाने के लिए देशों और समूहों को साथ मिलकर बेहतर काम करने की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि हानि और क्षति को लेकर ग्लोबल साउथ के देश आवाज उठाते रहे हैं। यह वो देश हैं जो जलवायु में आते बदलावों के लिए जिम्मेवार न होते हुए भी इसका सबसे ज्यादा दंश झेलने को मजबूर हैं। वार्ता के दौरान अफ्रीका वार्ताकार समूह, छोटे द्वीपीय देशों के गठबंधन और अरब समूह ने भी विकासशील देशों में हानि और क्षति से जुड़ी गहराती समस्याओं पर प्रकाश डाला।

वार्ताकार इस पक्ष में थे कि हानि और क्षति पर काम करने वाले यह तीनों समूह एसएनएलडी, डब्ल्यूआईएम और एलडीएफ एक साथ मिलकर बेहतर काम करें। भले ही हानि और क्षति को लेकर उन सभी का लक्ष्य एक है, लेकिन वो अलग-अलग चर्चाएं कर रहे हैं। अफ्रीकी वार्ताकार समूह (एजीएन) का कहना है कि अगर वे एक साथ काम करते हैं, तो यह उन देशों के लिए बेहतर होगा जिन्हें मदद की जरूरत है। इससे विकासशील देशों के लिए संसाधन जुटाने में मदद मिलेगी।

वार्ता के दौरान पहले सत्र में देशों ने हानि और क्षति से निपटने के अपने अनुभव और प्रतिक्रियाओं को साझा किए। इस बारे में समुद्र के बढ़ते जल स्तर से जूझते द्वीपीय देश वानुअतु और फिजी का कहना था कि एसएनएलडी, डब्ल्यूआईएम और एलडीएफ के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे एक साथ काम करने के लिए एक स्पष्ट योजना की रूपरेखा बनाएं।

इस तरह के दस्तावेज से देशों को आवश्यक प्रतिक्रिया प्रणाली विकसित करने और जरूरत पड़ने पर संसाधन जुटाने में मदद मिलेगी। फिजी के साथ-साथ मालदीव का भी कहना था कि जलवायु वित्त के मामले में नए एनसीक्यूजी (न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल) लक्ष्य में हानि और क्षति से जुड़े हिस्से को भी शामिल करने की जरूरत है। इस मुद्दे पर अगली बड़ी जलवायु बैठक यानी कॉप-29 में चर्चा की जाएगी, जो इस सम्मलेन से जुड़ा मुख्य मुद्दा भी है।

न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल में हानि और क्षति को शामिल करना ग्लोबल साउथ की एक प्रमुख मांग रही है। उनका मानना ​​है कि इससे जलवायु परिवर्तन की वजह से होती हानि और क्षति से निपटने के लिए अधिक वित्तीय सहायता हासिल करने में मदद मिलेगी।

यह विकसित देशों की जिम्मेवारी को भी रेखांकित करेगा। इससे विकसित देश, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से अधिकांश ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया है, उन्हें अब जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे विकासशील देशों को वित्तपोषित करने में मदद करनी चाहिए।

वहीं दूसरे सत्र में देशों से विशेष रूप से उन तकनीकी हस्तक्षेपों पर जोर देने के लिए कहा गया, जो हानि और क्षति के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को बेहतर बनाएंगे। प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली जो चरम मौसमी घटनाओं का पूर्वानुमान करती है वो हानि एवं क्षति को कम करने में मददगार साबित हो सकती है। वानुअतु, टोगो, इंडोनेशिया और अरब समूह सभी ने इन प्रणालियों के महत्व पर प्रकाश डाला।

इससे जुड़ी एक और महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है समय पर वित्तीय सहायता प्राप्त करना। बांग्लादेश ने जोर देकर कहा है कि स्थानीय परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय ढांचे को लागू करना कठिन है क्योंकि हर जगह परिस्थितयां अलग-अलग होती है। उन्होंने सुझाव दिया कि आपदा के बाद प्रभावित देशों के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जाना चाहिए।

वहीं द्वीपीय देशों ने हानि और क्षति (एलएंडडी) के लिए आवश्यकता मूल्यांकन करने का सुझाव दिया। इसमें गैर-आर्थिक हानि, क्षमता निर्माण और राष्ट्रीय योजनाओं में हानि और क्षति को सम्मिलित करना शामिल होगा।

वहीं तीसरे और अंतिम सत्र में देशों ने हानि और क्षति (एलएंडडी) से जुड़ी चुनौतियों के बारे में चर्चा की। नेपाल, फिजी, किरिबाती और पेरू ने कहा कि चरम मौसमी  घटनाओं के बाद प्रयासों का समन्वय करना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और उनके अपने देशों में भी एक बड़ा मुद्दा है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसमें वित्त तक पहुंच और कौशल निर्माण शामिल है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इसमें सरकार और स्थानीय रूप से प्रभावित समुदायों के बीच समन्वय करना शामिल है। अफ्रीकी वार्ताकार समूह ने कहा कि जटिल समस्याओं का सामना करने वाले देशों के लिए समन्वय करना और भी कठिन है।

द्वीपीय राष्ट्रों ने एक ऐसी वित्तपोषण प्रणाली का सुझाव दिया जो आपदा के तुरंत बाद या कमजोर देशों के लिए निर्धारित समय पर धन उपलब्ध कराती है। ग्लोबल साउथ ने इस बात पर भी जोर दिया कि प्रत्येक देश के लिए प्रतिक्रियाओं को अनुकूलित करने की आवश्यकता है, इसलिए उनकी व्यक्तिगत कमजोरी और जरूरतों का आकलन जरूरी है।

हानि और क्षति कोष (एलडीएफ) के निर्माण ने वित्तपोषण के महत्व को उजागर किया है। हालांकि, तीसरी ग्लासगो वार्ता ने दिखाया है कि अब हानि और क्षति (एलएंडडी) के लिए समग्र रूपरेखा को स्पष्ट करना और यह परिभाषित करना महत्वपूर्ण है कि इसके प्रमुख तंत्र एक साथ कैसे काम करते हैं।

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