कर्नाटक के शहरों में गिरती वायु गुणवत्ता पर एनजीटी ने सीपीसीबी से मांगा जवाब

खबर में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया है, जिसके मुताबिक शहरों ने अपने फंड का छह फीसदी से ज्यादा हिस्सा सड़कों की धूल को नियंत्रित करने पर खर्च किया है
फोटो: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)
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कर्नाटक के कुछ शहरों में गिरती वायु गुणवत्ता को लेकर छपी खबर पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने चिंता जताई है। एनजीटी का कहना है कि इस खबर में वायु अधिनियम, 1981 और पर्यावरण अधिनियम, 1986 के पालन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला है।

ऐसे में ट्रिब्यूनल ने दो अगस्त 2024 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, बैंगलोर और कर्नाटक को प्रतिवादी बनाया है। इन सभी को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले एनजीटी की दक्षिणी बेच के समक्ष अपना जवाब दाखिल करने को  कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई तीन सितंबर, 2024 को होनी है।

गौरतलब है कि इस बारे में 20 जुलाई, 2024 को डेक्कन हेराल्ड में एक खबर प्रकाशित हुई थी। इस खबर के मुताबिक वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए केंद्र सरकार द्वारा आवंटित धन का उपयोग करने में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले तीन राज्यों में कर्नाटक एक है। वहीं नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत दी जाने वाली धनराशि को खर्च करने के मामले में बेंगलुरू 25 शहरों में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला शहर है।

हालांकि कर्नाटक के चार प्रमुख शहरों, जिनमें दावनगेरे, गुलबर्गा और हुबली-धारवाड़ शामिल हैं, को एनसीएपी के तहत वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए धन मिला है, लेकिन इसके बावजूद राज्य का प्रदर्शन निराशाजनक है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले चार वित्तीय वर्षों में बेंगलुरू ने प्राप्त धनराशि का केवल 13 फीसदी ही इस्तेमाल किया है।

इस खबर में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है, जिसमें बताया गया है कि शहरों ने अपने फंड का छह फीसदी से ज्यादा हिस्सा सड़कों की धूल को नियंत्रित करने पर खर्च किया है। इससे उद्योगों, वाहनों और बायोमास जलाने से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए बहुत कम पैसा बचता है।

खबर के अनुसार 131 शहरों के लिए 10,566 करोड़ रुपए से ज्यादा जारी किए गए थे। लेकिन सिर्फ सड़कों की धूल को नियंत्रित करने पर 6,806 करोड़ रुपए (64 फीसदी) खर्च किए गए हैं। वहीं औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ 0.61 फीसदी, जबकि वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर 12.63 फीसदी जबकि बायोमास जलाने में कमी लाने के लिए 14.51 फीसदी धनराशि खर्च की गई है।

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