दिल्ली की हवा में बढ़ते ओजोन पर चिंता, एनजीटी ने मांगी विशेषज्ञ समिति की रूपरेखा

यह मामला टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर खबर के आधार पर अदालत द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया गया है, जो दिल्ली में बढ़ते ग्राउंड लेवल ओजोन के स्तर से जुड़ा है
दिल्ली में लम्बे समय से प्रदूषण की समस्या चली आ रही है, जिससे निपटने के लिए अभी भी ठोस करवाई की दरकार है; फोटो: विकास चौधरी/सीएसई
दिल्ली में लम्बे समय से प्रदूषण की समस्या चली आ रही है, जिससे निपटने के लिए अभी भी ठोस करवाई की दरकार है; फोटो: विकास चौधरी/सीएसई
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 21 अगस्त 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। मंत्रालय से कहा गया है कि वह ओजोन प्रदूषण पर गठित विशेषज्ञ समिति के प्रस्तावित कार्यक्षेत्र और उसमें शामिल किए जाने वाले विशेषज्ञों के नाम बताए।

यह मामला टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर खबर के आधार पर अदालत द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया गया है, जो दिल्ली में बढ़ते ग्राउंड लेवल ओजोन के स्तर से जुड़ा है। 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 20 दिसंबर 2024 को इस समस्या पर विशेषज्ञों द्वारा एक व्यापक अध्ययन करने का सुझाव दिया था।

सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि कोविड-19 लॉकडाउन (अप्रैल 2020) के दौरान दिल्ली में ओजोन का स्तर काफी बढ़ा पाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, ओजोन स्तर सिर्फ स्थानीय कारणों से नहीं बल्कि सीमा पार प्रदूषण, मिट्टी से निकलने वाले उत्सर्जन और प्राकृतिक स्रोतों से भी प्रभावित होता है।

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दिल्ली में लम्बे समय से प्रदूषण की समस्या चली आ रही है, जिससे निपटने के लिए अभी भी ठोस करवाई की दरकार है; फोटो: विकास चौधरी/सीएसई

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि इस बढ़ोतरी के पीछे के असली कारणों को समझने के लिए वायु गुणवत्ता विशेषज्ञों की मदद से विस्तृत अध्ययन जरूरी है। साथ ही ओजोन बनने की प्रक्रिया का मॉडल तैयार किया जाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि इसमें सीमा पार से आने वाले प्रदूषण, प्राकृतिक स्रोतों और मानवजनित गतिविधियों का कितना योगदान है।

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चेन्निमलाई के आरक्षित वन क्षेत्र में कचरा फेंकने से वन्यजीवों को खतरा, एनजीटी ने मांगा जवाब

तमिलनाडु के चेन्निमलाई में आरक्षित वन क्षेत्र की सीमाओं पर कचरा डाले जाने के मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंभीरता से लिया है।

21 अगस्त, 2025 को इस मामले की सुनवाई करते हुए एनजीटी की दक्षिण बेंच ने इरोड के जिला कलेक्टर, तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और चेन्निमलाई ब्लॉक पंचायत अधिकारी (बीडीओ) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

यह मामला अंग्रेजी अखबार न्यू इंडियन एक्सप्रेस में 11 अगस्त, 2025 को छपी खबर के आधार पर अदालत ने स्वतः संज्ञान में लिया है। इस खबर में कहा गया है कि इरोड जिले के चेन्निमलाई क्षेत्र में आरक्षित वन सीमा के पास बड़ी मात्रा में कचरा डाला जा रहा है, जिससे पर्यावरण और वन्यजीवों के लिए खतरा पैदा हो रहा है।

खबर के मुताबिक, चेन्निमलाई के पसुवापट्टी गांव के एक किसान ने बताया कि चेन्निमलाई से अराचलूर और तिरुप्पुर जैसी जगहों को जोड़ने वाली सड़कें आरक्षित वन क्षेत्र से होकर गुजरती हैं। इन रास्तों पर कई जगह लोग बड़े पैमाने पर कचरा फेंक रहे हैं।

एक सामाजिक कार्यकर्ता और वकील के हवाले से कहा गया कि चेन्निमलाई के जंगलों में भले ही बड़े वन्यजीव न हों, लेकिन यहां बंदर, लोमड़ी जैसे छोटे जीव अभी भी पाए जाते हैं, जिन्हें यह कचरा नुकसान पहुंचा रहा है। जंगल के किनारे खासकर प्लास्टिक कचरा फेंकना इन जानवरों के लिए नुकसानदायक है।

कुछ लोग तो इस कचरे को जला भी देते हैं, जिससे इलाके में प्रदूषण फैलता है।

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