भारत में आवाजाही: सबसे स्वच्छ इंदौर की हवा में भी प्रदूषण का 'जहर'

अपने खराब वायु गुणवत्ता सूचंकांक (एक्यूआई) की वजह इंदौर को उन शहरों की गिनती में रखा गया है, जहां हवा साफ करने की बहुत कवायद की जानी है
इंदौर में निजी वाहनों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। फोटो : राकेश मालवीय
इंदौर में निजी वाहनों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। फोटो : राकेश मालवीय
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प्रियांशी वैदय इंदौर शहर के विजयनगर इलाके में रहती हैं। वह पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही हैं। उन्हें अपनी कोचिंग के लिए भंवरकुआं जाना पड़ता था। इंदौर में जब बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) बसें चला करती थीं तो उन्हें आधा घंटा लगता था, लेकिन बीआरटीएस खत्म होने के बाद अब एक से डेढ़ घंटा लग जाता है और खर्चा भी बढ़ा है।

महीने में एक से डेढ़ हजार रुपए का खर्च बढ़ गया। परेशानियां भी बढ़ गईं। प्रियांशी अकेली नहीं हैं। दिनेश गौर भी इंदौर के ट्रैफिक से परेशान हैं। वह बाइक से अपने कारखाने जाते हैं। उनका मासिक वेतन बीस हजार रुपए है, जिसमें से तीन हजार रुपए केवल पेट्रोल का खर्च है। कोई साधन नहीं होने से बाइक ही उनके पास विकल्प है।

इंदौर, पिछली सदी की शुरुआत में एक लाख आबादी वाला शहर भी नहीं था। इंदौर पहले इंदूर कहलाता था, यह इंद्रपुर या इन्द्रेश्वर का अपभ्रंश है। यह उस गांव का नाम है, जहां इस नगर की स्थापना की गई। इंद्रेश्वर का मंदिर जिसके कारण गांव का यह नाम रखा गया अब भी शहर के मध्य जूनी इंदौर में मौजूद है।

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इंदौर में निजी वाहनों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। फोटो : राकेश मालवीय

आगरा—मुंबई मार्ग पर होने से इसका तेजी से विकास होता चला गया। काई यहां धंधा करने आया,  कोई काम की तलाश में, कोई पढ़ने, धीरे—धीरे यह मध्यप्रदेश का मुंबई हो गया, इसे कहते भी हैं मिनी मुंबई। इसी गांव का विकास शहर के रूप में हुआ जो अब बढ़ते—बढ़ते लगभग 24 लाख की आबादी और 3898 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैल गया है।

1940 से लेकर 2018 तक 118 वर्षों में इंदौर 5 गुना से अधिक बढ़ गया है। 1975-1990 15 वर्षों की अवधि में लगभग 2.5 गुना बढ़ा है। अब यह देश में दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में 14वें स्थान पर आता है। आंकड़ों के मुताबिक 2020 में इंदौर की आबादी 25,73,071 बताई जाती है।  

इंदौर की नई पहचान, सबसे स्वच्छ शहर :

बीते सात-आठ सालों में इसने अपनी एक नई पहचान गढ़ी और वह है स्वच्छता के मामले में नंबर 1। स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर पूरे देश में बाजी मार रहा है, पर एक अजीब बात यह भी है कि स्वच्छता में अव्वल रहने वाले शहर के आसमान के आंकड़े सही नहीं हैं। अपने खराब एक्यूआई की वजह इंदौर को उन शहरों की गिनती में रखा जहां पर हवा साफ करने की बहुत कवायद की जानी है।

इंदौर कैसे बढ़ा आगे

  • 1956:  में इंदौर मध्य प्रदेश में शामिल हुआ. इंदौर मुनिसिपल कारपोरेशन की स्थापना हुई.

  • 1962: में पहला आउटलाइन देवलोपमेंट प्लान बना, और एमपी एस आर टी सी बनाया गया.

  • 1972:  साइकिल और टेम्पो इंदौर शहर के सबसे पोपुलर साधन बन गए.

  • 1974 : इंदौर का पहला मास्टर प्लान (१९७४-91) बनना शुरू हुआ.

  • 1991: शहर से तांगे एकदम कम हो गए. इस्टर्न रिंग रोड बना. मिनी बस और ऑटो बढ़े.

  • 1995 : शहर में प्राइवेट बस ओपरेटर की आमद.    

  • 2004: मिनी बस के मारुति वैन और टाटा मैजिक का आगमन

  • 2005 : जेएनएनयूआरएम, एआईसीटीएसएल का गठन

  • 2006 : केंद्र सरकार से बीआरटीएस मंजूर,  इंदौर का दूसरा डेवलपमेंट 2021 प्लान, सिटी बस की शुरुआत

  • 2007 : बीआरटीएस बनना शुरू

  • 2010 : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट के तहत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की स्थापना

  • 2013 :  बीआरटीएस के खिलाफ पीटिशन दाखिल, मेट्रो सच्न्चालन की कवायद शुरू,  बीआरटीएस का सञ्चालन शुरू

  • 2015 : उच्च न्यायालय ने बीआरटीएस के पक्ष में निर्णय दिया, स्मार्ट सिटी स्कीम में इंदौर शामिल  

  • 2016 : इंदौर देश के बीस सबसे स्मार्ट शहरों में शामिल, इंदौर मेट्रो की डीपीआर, सामाजिक कार्यकर्त्ता किशोर कोडवानी ने बीआरटीएस हटाने के लिए पीटिशन दाखिल की

  • 2017 : इलेक्ट्रिक बसों का आगमन  

  • 2024: इंदौर शहर में इंटीग्रेटेड ट्रैफ़िक मैनजमेंट सिस्टम की लांचिंग

  • 2025 : इंदौर में ई बसें चलाने की कवायद, बीआरटीएस तोड़ा जाना शुरू, मेट्रो की तैयारी पूरी, 31 मई से शुरुआत

बेहतरीन लोक परिवहन न होने का असर

इंदौर एक बढ़ता हुआ शहर है। यहां जनसंख्या का घनत्व कम है, शहर भौगोलिक रूप से ज्यादा फैला है। यही वजह है कि पिछले दस सालों में इंदौर में में वाहनों की संख्या में जबर्दस्त् बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़ों के मुताबिक यहां 2008 तक यहाँ 9 लाख वहां थे। 2020 तक यहाँ 24 लाख ट्रांसपोर्ट और नॉन ट्रांसपोर्ट वाहन आरटीओ में रजिस्टर्ड हैं. उसमें भी बड़ी संख्या कारों की है. 31 मार्च 2019 तक इंदौर शहर में 18 लाख वाहन थे।

सीएममपी के मुताबिक यहाँ पर सबसे ज्यादा 39 प्रतिशत हिस्सा दो पहिया वाहनों का है. 19 प्रतिशत लोग लोक परिवहन से सफ़र करते हैं, पैदल चलने वालों का प्रतिशत 15 है। इंदौर आरटीओ के आंकड़ों के मुताबिक 2008 में इंदौर में वाहनों की संख्या 9,29,000 थी, जो 2020 में बढ़ कर 24,32,000 हो गई।  

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इंदौर में निजी वाहनों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। फोटो : राकेश मालवीय

बीआरटीएस कोरिडोर के निर्माण को रोकने के लिए याचिका दाखिल करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी कहते हैं कि इंदौर शहर का विकास विनाशकाले विपरीत ​बुद्धि की तर्ज पर हो रहा है। वह सवाल उठाते हैं कि “इंदौर शहर के मास्टर प्लान में 25 प्रतिशत हिस्सा जोकि आवासीय हिस्से का लगभग आधा है दिया गया है तब भी इंदौर शहर का ट्रैफिक इतना बदहाल क्यों है? वह कहते हैं कि प्रशासन के पास विकास के लिए न तो उचित सांख्यिकी है और न ही प्लान? वह बढ़ते वाहनों के प्रति चिंता जताते हुए कहते हैं कि इंदौर शहर में साढ़े सात लाख घर हैं और साढ़े तीन लाख कार हैं, अब बताइए, इतनी कारों को हम खड़ा कहां करेंगे और कहां चलाएंगे?” 

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय मिश्र का कहना है कि “इंदौर का कोई कम्पलीट ट्रैफिक प्लान पिछले दस सालों में देखने में नहीं आया है। शहर का जिस तरह से चारों ओर फैलाव हुआ है, उसने यहां ट्रैफिक की गंभीर समस्या पैदा कर दी हैं। शहर की अपनी व्यवस्थित और सुलभ लोक परिवहन व्यवस्था नहीं होने से लोग अपने निजी वाहनों पर ज्यादा निर्भर हैं, इससे रोड पर दबाव साफ दिखता है। कुछ खामियां भी हैं। पूरा नया इंदौर, जिनमें मॉल्स, स्कूल, मैरिज गार्डन हैं, वह बायपास रोड पर चला गया है, वहां तक जाने में जो बोगदा पुल या टनल बनाए हैं वह बहुत संकरे हैं, इनसे हर समय जाम की समस्या चल रही है।  

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इंदौर में निजी वाहनों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। फोटो : राकेश मालवीय

उनका कहना है कि इंदौर में एक जमाने में कभी तांगे चला करते थे, यह शहर की एक विरासत थी, कल्चर था, इसे शहर के किन्हीं इलाकों में संरक्षित किया जा सकता था, जो पर्यटकों के लिए भी आकर्षण होता, पर ऐसी सोच किसी के पास नहीं है। इंदौर में जो लोग लोक परिवहन से यात्रा करना चाहते हैं या जिनकी मजबूरी ही लोक परिवहन है उनके पास तीन पहिया के अलावा कोई और सुलभ विकल्प नहीं है।

इंदौर में बीआरटीएस उखाड़ा जाना शुरू

इंदौर में बीआरटीएस को एक सफल प्रयोग बताया गया उसे हाईकोर्ट के आदेश के बाद उखाड़ने की कार्रवाई शुरू हो गई है। 350 करोड़ रुपए की लागत से बीआरटीएस का निर्माण हुआ था। इसके लिए जवाहर लाल शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत इंदौर को राशि मिली थी। यह बीआरटीएस कॉरिडोर शहर के बीचों—बीच और उपयोगी साबित हो रहा था। इस रूट पर कई शैक्षणिक संस्थाएं, अस्पताल और कॉर्पोरेट ऑफिस मौजूद थे।

यही वजह है कि बीआरटीएस में चलने वाली 50 आई बस में रोजाना तकरीबन साठ हजार यात्री सफर कर रहे थे। इनमें नौकरीपेशा और बड़ी संख्या में विद्यार्थी शामिल थे। कोर्ट के आदेश के बाद बीआरटीएस को तोड़े जाने की कार्रवाई शुरू कर दी। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी बीआरटीएस तोड़े जाने की बात कही थी।

बीआरटीएस पर पहले से ही सवाल उठाए जा रहे थे। किशोर कोडवानी पहले व्य​क्ति थे जिन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल करके विरोध किया था। उनका मानना था कि यह विदेशों से लिया गया मॉडल है जहां कि राइट हैंड ड्राइविंग होती है, हमारे यहां पर लेफ्ट हैंड ड्राइविंग है। लोगों का मानना है कि इसे तोड़े जाने से ट्रेफिक स्मूथ हो जाएगा, क्योंकि बीआरटीएस से यातायात बॉटलनेक की तरह हो गया था। कोदवानी का कहना है कि बीआरटीएस तोड़कर भी जिन 12 फ्लाइओवर को बनाने की योजना है वह केवल कार वाले लोगों के नजरिए से ही ज्यादा कहलाएगा।

इसका विकल्प मेट्रो को बताया जा रहा है। लम्बे इन्तजार के बाद 31 मई को मेट्रो शुरू भी हो रही है. लेकिन अन्य शहरों की तरह मेट्रो यहां सफल होगी या नहीं उस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्त्ता चिन्मय मिश्र कहते हैं ‘दिल्ली के एक अध्ययन में कहा गया है कि मेट्रो वही अफोर्ड कर सकता है  जिसकी मासिक आय 36 हजार रुपए से अधिक है। मेट्रो का न्यूनतम किराया ही तीस रुपए होगा, ऐसे में यह आम लोगों की मेट्रो न बनकर एलीट क्लास की मेट्रो साबित होगी। ​जो लोग इसमें सफर करना भी चाहेंगे उनके लिए मेट्रो स्टेशन पर प्रॉपर पार्किंग नहीं होना एक चुनौती होगी।“

ऐसे में एक सवाल उठता है कि इंदौर के लोग करें तो क्या ? राजेंद्रनगर क्षेत्र के अभिषेक जोशी बाइक के शौकीन रहे हैं, पर वह कई सालों से चार पहिया वाहन से ही सफर कर रहे हैं। वह कहते हैं कि इंदौर की सड़कें सुरक्षित नहीं हैं, दुर्घटना के खतरे ज्यादा हैं। फ्लाईओवर, बाईपास बनते देख लगा था कि राहत मिलेगी, लेकिन ट्रैफिक का हाल और बुरा हो गया है। ट्रैफिक रूल्स का लोग पालन भी करते हैं पर ग्रीन सिग्नल के इंतज़ार में गाड़ियों की एक लम्बी कतार लग जाती है, और पूरा ट्रैफिक सड़क पर रेंगता हुआ नज़र आता है। कई बार तो एक चौराहे से दूसरे चौराहे और दूसरे से तीसरे तक पहुंचने में ही बहुत समय जाता है, इसमें बहुत समय खराब होता है, बार—बार ब्रेक और क्लच दबाने से हमारी गाड़ियों का एवरेज चालीस प्रतिशत तक कम हो गया गया है।

आंकड़े बताते हैं कि इंदौर की सड़कों पर दुर्घटनाओं में लगातार इजाफा हुआ है. साल 2022 में इंदौर दुर्घटनाओं के मामले में इंदौर की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत थी. दुर्घटनाएँ के साथ मौत के आंकड़े भी बढ़ते गए हैं.

इसके लिए जरूरी होगा कि इंदौर में लोक परिवहन मजबूत हो. पर एन्वायरमेंट प्लानिंग एंड कोर्डिनेशन ऑर्गनाइजेशन (एप्को) के अध्ययन में बताया वर्तमान में बसें केवल 19 प्रतिशतप्रतिशत लोगों की यात्राओं को पूरा करती हैं। शहर में प्रति 1000 लोगों पर मात्र 0.95 बसें उपलब्ध हैं, जो कि मांग के अनुरूप अपर्याप्त है। यह अनुमान लगाया यगा है कि 2025 में प्रतिदिन 5.5 मिलियन यात्राएं होंगी, जिनमें से 2.75 मिलियन यात्राएं सार्वजनिक परिवहन द्वारा पूरी की जाएंगी। जरूरी होगा कि उपलब्धता और सुरक्षा दोनों पर काम हो सके.

बढ़ते वाहनों का आसमान पर असर

इस साल 9 अप्रैल को इंदौर का पीएम 2.10 सर्वाधिक 291 के आंकड़े पर था। साल 2024 में केवल 9 दिन इंदौर की फिजा खुशनुमा रही, 126 दिन संतोषजनक पाई गई, 45 दिन खराब, 4 दिन अत्यंत खराब जबकि एक दिन बहुत ज्यादा खराब रही। यह दिन 1 नवम्बर का था जबकि आंकड़ा 406 पर था।  मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साल 2023 के डैशबोर्ड में इंदौर उन शहरों में शामिल है जहां पीएम 10 की स्थिति साल भर खराब बनी हुई है। साल 2023 में यहां पीएम10 का औसत स्तर 110 पर बना हुआ है। 2022 में यह 121 पर था। यह स्तर सालाना 60 पर होना चाहिए। देश के सबसे स्वच्छ शहर पर यह एक बड़ा सवाल है।

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक इंदौर में साल 2019 में हवा में प्रदूषण सबसे ज्यादा था। उस साल पीएम10 की मात्रा 137.77 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम2.5 की मात्रा 66.45 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रही। साल 2020 में यह प्रदूषण कुछ कम हुआ। इस साल पीएम10 की मात्रा 99.65 और पीएम2.5 की मात्रा 39.78 रही। साल 2021 में प्रदूषण फिर से थोड़ा बढ़ा। उस साल पीएम10 का औसत 117.81 और पीएम2.5 का औसत 48.45 रहा। साल 2022 में भी पीएम10 की मात्रा 121.28 और पीएम2.5 की मात्रा 43.05 रही। साल 2023 में पीएम10 थोड़ा कम होकर 110.68 पर आ गया, जबकि पीएम2.5 लगभग स्थिर रहा और इसका औसत 43.62 रहा।

इन आंकड़ों से पता चलता है कि इंदौर में वायु प्रदूषण की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी हवा पूरी तरह साफ नहीं है। साफ हवा के लिए और प्रयास करने की जरूरत है।

उसकी बड़ी वजह वाहन भी हैं।  इंदौर क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार 2015 से 2020 के बीच पंजीकृत कुल वाहनों में से 55 प्रतिशत पेट्रोल, 40 प्रतिशत डीजल और केवल 4 प्रतशित सीएनजी पर चलते हैं। सिर्फ 1 प्रतिशत वाहनों का इस अवधि में पंजीकरण इलेक्ट्रिक के रूप में हुआ है, जिनमें से इलेक्ट्रिक फोर-व्हीलर्स और बसें सबसे कम संख्या में हैं। शहर की फिजा का खराब होने का एक कारण यहां बड़ी संख्या में इस तरह के वाहनों का होना माना जा सकता है।

सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए जो प्लान बनाया है उनमें 15 साल से अधिक वाहनों को सड़कों से हटाना, पूरी बस फ्लीट को सीएनजी में परिवर्तित करना और ऑटो और टैक्सी को केवल सीएनजी पर चलाने का निर्णय है। इसके साथ ही वृक्षारोपण को प्रमोट करने के लिए काम किए गए हैं।

यह स्टोरी हमारी खास सीरीज भारत में आवाजाही का हिस्सा है, जो शहरों और कस्बों में वायु गुणवत्ता और लोगों की आवाजाही (परिवहन सेवाओं) के बीच संबंधों पर फोकस है। पूरी सीरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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