24 साल की सत्या ठाकुर के दिन के कुल 3 घंटे यानी सप्ताह (रविवार छोड़कर) में कुल 18 घंटे घर से कोचिंग सेंटर जाने में खर्च हो जाते हैं। सत्या छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तिकरापारा में रहती हैं। घर से 3 किलोमीटर दूर जयस्तंभ चौक पहुंचने के लिए वह शेयरिंग ऑटो या ई-रिक्शा पकड़ती हैं। जय स्तंभ चौक तक पहुंचने में उन्हें 20-30 मिनट लग जाते हैं। यहां से उन्हें 7 किलोमीटर दूर मोवा बाजार जाने के लिए दूसरा ऑटो या ई-रिक्शा पकड़ना पड़ता है।
मोवा बाजार से दो किलोमीटर दूर कोचिंग सेंटर की दूरी उन्हें पैदल ही तय करनी पड़ती है क्योंकि यहां यातायात का कोई साधन नहीं चलता। मोवा बाजार से कोचिंग सेंटर की दूरी को पैदल तय करने में उन्हें करीब 30 मिनट लगते हैं। सामान्य परिस्थितियों में लगभग 12 किलोमीटर की दूरी तय करने और वापस घर लौटने पर 3 घंटे लगते हैं और जाम की स्थिति में समय बढ़ जाता है। आने-जाने में उनके 60-80 रुपए खर्च हो जाते हैं।
सत्या की तरह रायपुर के टाटीबंध में रहने वाली मनप्रीत कौर मान के भी प्रतिदिन ढाई घंटे घर से दफ्तर और कोचिंग सेंटर आने जाने में खर्च हो जाते हैं। मनप्रीत घर से 7 किलोमीटर दूर जय स्तंभ चौक में स्थित दवाई की दुकान पर नौकरी करती हैं।
शाम को दफ्तर से करीब 2 किलोमीटर दूर विवेकानंद आश्रम में कोचिंग करने आती हैं और फिर रात करीब आठ बजे विवेकानंद आश्रम के ऑटो पकड़कर 6 किलोमीटर की दूरी तय करके घर पहुंचती हैं। इस आवाजाही में उनके कम से कम 100 रुपए खर्च होते हैं। मनप्रीत कहती हैं कि रात को ऑटो में सफर करने पर असुरक्षा का भाव आता है, लेकिन आने-जाने के लिए उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
रायपुर के मेकाहारा में स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर मेमोरियल अस्पताल में पिछले 12 साल वॉर्ड बॉय के रूप में काम कर रहे चेतन दीवान ने राजेंद्र नगर से अस्पताल आने के लिए करीब 7 साल तक साइकल का इस्तेमाल किया है लेकिन 2020 में दोस्तों के उधार पैसे लेकर बाइक खरीद ली और तब से उनका आना-जाना बाइक से ही हो रहा है।
उनका मानना है कि रायपुर की सड़कें साइकल के लिए उपयुक्त नहीं है, इसलिए उन्होंने इसे त्याग दिया है। कुछ ऐसा ही अनुभव शैलेंद्र नगर में रहने वाले शााश्वत शुक्ल का भी है। तीन साल पहले हादसा होने बाद उन्होंने साइकल का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर बाइक का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। रायपुर में पर्यावरण हितैषी साइकल का इस्तेमाल बहुत कम लोग कर रहे हैं।
रायपुर में रहने वाला आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग आवाजाही के लिए निजी वाहन इस्तेमाल करता है। बहुत से घर ऐसे हैं जिनमें हर सदस्य के अपना निजी वाहन है चाहे वह दोपहिया हो या चार पहिया। आदर्श नगर में रहने वाला अशोक कुमार का परिवार ऐसा ही है।
दूरदर्शन की सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके अशोक कुमार 32 साल से रायपुर में हैं और इस अवधि में केवल एक बार ही उन्होंने बस का इस्तेमाल किया है। उन्होंने पिछली बार 7-8 साल पहले टाटीबंध से घर आने के लिए पत्नी के साथ सिटी बस पकड़ी थी। करीब 12 किलोमीटर की दूरी तय करने में दो से ढाई घंटे लग गए थे।
इसके बाद उन्होंने बस का इस्तेमाल न करने की कसम खा ली। अशोक कुमार के पास मौजूदा समय में एक कार और चार बाइक व स्कूटी हैं। उनकी बेटी, बेटा और बहू नौकरीपेशा हैं और सभी बाइक अथवा स्कूटी से आना-जाना करते हैं। वह बताते हैं दोपहिया से आने-जाने में समय और पैसे दोनों की बचत होती है और इसीलिए उनकी कॉलोनी के अधिकांश लोग इन्हीं से आते-जाते हैं।
रायपुर में रहने वाली अधिकांश आबादी की आवाजाही इसी तरह होती है। ऑटो और ई-रिक्शा पर लोगों की सबसे अधिक निर्भरता है। परिवहन के दूसरे साधनों की कमी के चलते शहर में ऑटो और ई-रिक्शा बेतहाशा बढ़ गए हैं।
परिवहन विभाग के अनुसार, अकेले साल 2025 के शुरुआती 5 महीनों में ही रायपुर में 1,335 ऑटो और ई-रिक्शा की बढ़ोतरी हुई है। पिछले पांच वर्षों (2021-25) में 10,188 नए ई-रिक्शा रायपुर की सड़कों पर उतरे हैं। यही स्थिति यात्री ऑटो की भी है। 2016 से अब तक 6,484 यात्री ऑटो का पंजीयन हुआ है और इनकी संख्या में साल दर साल इजाफा हो रहा है।
कोविड काल (2020-21) को छोड़कर पिछले 10 वर्षों में लगभग सभी वर्षों में इनकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। रायपुर ऑटो महासंघ के अध्यक्ष कमल पांडे के अनुसार, अकेले रायपुर में लगभग 15,000 से अधिक ऑटो और ई-रिक्शा चल रहे हैं।
वह बताते हैं कि शहर का मजदूर वर्ग और निम्न मध्य वर्ग यातायात के लिए मुख्यत: इन्हीं दो साधनों पर निर्भर है। करीब 19 लाख की आबादी वाले इस शहर में लगभग 6 लाख से अधिक लोग ऑटो या ई-रिक्शा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस हिसाब से देखें तो शहर का हर तीसरा शख्स आवाजाही के लिए इन पर निर्भर है।
कमल पांडे मानते हैं कि शहर में आवाजाही की स्थिति ठीक नहीं है क्योंकि सरकार इस मुद्दे ध्यान नहीं दे रही है। उनकी चिंता इस बात को लेकर भी है कि सरकार ऐसे लोगों को भी ऑटो या ई-रिक्शा दे देती है जो प्रशिक्षित नहीं है।
रोड पर ऐसे लोग परेशानी पैदा करते हैं, जिससे पूरा यातायात बाधित हो जाता है और इनकी वजह से अक्सर हादसे भी होते हैं। वह बताते हैं कि हमने सरकार से कई बार यातायात को व्यवस्थित करने की अपील की है लेकिन इस पर अब तक ध्यान नहीं दिया गया है।
ई-रिक्शा रोजगार और स्थानीय आजीविका का बड़ा साधन बन गया है। बहुत से लोग ऐसे हैं जो इन्हें किराए पर देकर मोटी कमाई कर रहे हैं। रायपुर में ई-रिक्शा चल रहे सुमित पांडे ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उनके पास कुल 14 ई-रिक्शा हैं।
इनमें से सबसे पहला और सबसे पुराना ई-रिक्शा वह खुद चलाते हैं और अन्य 13 किराए पर दे रखे हैं। एक ई-रिक्शे से उन्हें रोज 300-350 रुपए का किराया मिलता है। इस तरह 13 अन्य से उन्हें करीब 4,000 रुपए की कमाई हो जाती है।
डाउन टू अर्थ रिपोर्टर में रायपुर के कई स्थानों पर जाने के लिए ई-रिक्शा और ऑटो का इस्तेमाल किया और पाया कि इनका कोई निर्धारित रेट अथवा रूट नहीं है। ऑटो और ई-रिक्शा चालकों के मनमाने किराए से रोजमर्रा के यात्री परेशान रहते हैं और रेट को लेकर कई बार उनकी नोंकझोंक हो जाती है।
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