भारत में बच्चों के लिए काल बना जीवश्म ईंधन, हजार में 27 बच्चों की ले रहा जान

रिसर्च के मुताबिक प्रदूषण का एक महीने से कम आयु के शिशुओं पर सबसे ज्यादा गहरा असर पड़ता है, क्योंकि उनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते। इसके साथ ही वो खाना पकाने के दौरान अपनी माओं के करीब होते हैं
भारत के बहुत से घरों में अभी भी महिलाएं खाना पकाने के लिए पारम्परिक चूल्हों का उपयोग करती हैं; फोटो: आईस्टॉक
भारत के बहुत से घरों में अभी भी महिलाएं खाना पकाने के लिए पारम्परिक चूल्हों का उपयोग करती हैं; फोटो: आईस्टॉक
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भारत में बच्चे न केवल घरों के बाहर बल्कि भीतर भी प्रदूषण से सुरक्षित नहीं हैं, जो बेहद चिंताजनक है। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी ने अपनी नई रिसर्च में खुलासा किया है कि देश में हर हजार शिशुओं और बच्चों में से 27 की जान खाना पकाने के लिए घरों में उपयोग होने वाला दूषित ईंधन ले रहा है। गौरतलब है कि भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां वायु गुणवत्ता का स्तर जानलेवा है।

भारत में वायु गुणवत्ता की स्थिति कितनी खराब है, इसकी पुष्टि 2023 में जारी वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट भी करती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 100 सबसे ज्यादा खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों में से 83 भारत में हैं। इन सभी शहरों में प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों से 10 गुणा ज्यादा है।

हालांकि ज्यादातर मामलों में घरों के बाहर मौजूद वायु प्रदूषण पर ही ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन घरों के भीतर मौजूद प्रदूषण भी स्वास्थ्य के लिहाज से कम हानिकारक नहीं है। इस बारे में पर्यावरण संरक्षण एजेंसी और अन्य संगठनों का भी मानना है कि घरों के भीतर मौजूद खराब वायु गुणवत्ता अधिक घातक है, क्योंकि ज्यादातर लोग अपना अधिकांश समय यहीं बिताते हैं।

अध्ययन के बारे में जानकारी देते हुए प्रमुख शोधकर्ता अर्नब बसु ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जो भारतीय घरों में खाना पकाने के लिए उपयोग होने वाले जीवाश्म ईंधन की वास्तविक लागत को उजागर करता है। यह दर्शाता है कि कैसे यह जीवाश्म ईंधन बच्चों की जान ले रहा है।

बसु के मुताबिक अध्ययन में 1992 से 2016 के बीच पिछले 25 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इन आंकड़ों ने घरों में उपयोग होने वाले सभी प्रकार के दूषित ईंधनों की पहचान करने की अनुमति दी है। इस अध्ययन नतीजे जर्नल ऑफ इकोनॉमिक बिहेवियर एंड ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित हुए हैं।

रिसर्च में सामने आया है कि इस प्रदूषण का एक महीने से कम आयु के शिशुओं पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। बसु के मुताबिक ऐसा इसलिए हैं क्योंकि उनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं। साथ ही यह बच्चे खाना पकाने के दौरान अपनी माओं के करीब होते हैं।

बच्चियों पर पड़ रहा कहीं ज्यादा असर

बसु के मुताबिक दिलचस्प बात यह है कि भारतीय घरों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की मृत्यु दर कहीं ज्यादा है। ऐसा इसलिए नहीं कि बच्चियां ज्यादा कमजोर होती हैं, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय परिवार अक्सर बेटों को प्राथमिकता देते हैं और जब उनकी छोटी बच्ची को खांसी जैसी समस्याएं होने लगती हैं तो वो उनका इलाज नहीं करवाते।

ऐसे में बसु के मुताबिक स्वच्छ ईंधन को अपनाने से न केवल बच्चों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। साथ ही बच्चियों के साथ होने वाली उपेक्षा की समस्या भी दूर होगी।

देखा जाए तो दूषित ईंधन केवल भारत की ही समस्या नहीं है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयला, गोबर और फसलों के बचे अपशिष्ट जैसे बायोमास ईंधन पर निर्भर है। नतीजन हर साल दुनिया भर में 32 लाख लोगों की मौत हो रही है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक भारत के कहीं ज्यादा प्रभवित होने के लिए कई अन्य कारण भी जिम्मेवार हो सकते हैं, जैसे भारतीय परिवार आम तौर पर बड़े होते हैं। इन घरों में खाना पकाने जैसे घरेलु कामों की जिम्मेवारी अक्सर महिलाओं की होती है। उनके अनुसार भारत में अविवाहित महिलाएं श्रम शक्ति में कहीं ज्यादा योगदान देती हैं। वहीं दूसरी तरफ विवाहित महिलाओं को अपने छोटे बच्चों के साथ घरों की भी देखभाल करनी पड़ती है। भारत में जिस तरह के व्यंजन तैयार किए जाते हैं उनमे काफी मेहनत लगती है। धीमी गति से पकने वाले इन आहारों के लिए बहुत ज्यादा तैयारी करनी पड़ती है। नतीजन मां और बच्चे को कहीं ज्यादा समय रसोई में गुजरना पड़ता है।

आंकड़ों में भारतीय घरों में उपयोग होने वाले दस अलग-अलग तरह के ईंधन शामिल थे, जिनमें केरोसिन से लेकर लकड़ी, कोयला, फसल अवशेष और गोबर जैसे जीवाश्म ईंधन शामिल थे। बसु के मुताबिक बहुत अधिक ध्यान घरों से बाहर मौजूद प्रदूषण और फसल अपशिष्ट को कैसे जलाया जाता है, इस पर दिया जाता है। सरकार इस फसल अपशिष्ट को जलाने के खिलाफ कानून बना सकती है और किसान इन्हें न जलाएं इसके लिए उन्हें आर्थिक रूप से प्रोत्साहन दे सकती है।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने घरों में खाना पकाने के लिए साफ-सुथरे ईंधन तक पहुंच को बढ़ावा देने की बात कही है। उनके मुताबिक स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने से देश में हजारों बच्चों की जान बचाई जा सकती है। 

भारत में वायु प्रदूषण से जुड़े ताजा आंकड़ा आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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