भारतीय शहरों की वायु गुणवत्ता में आते सुधार में नीतियों के साथ मौसम की रही है बड़ी भूमिका

पीएम 2.5 में गिरावट की एक बड़ी वजह मौसमी परिस्थितियां भी हैं, लेकिन शोधकर्ताओं को डर है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का यह अनुकूल पैटर्न बदल सकता है
इलस्ट्रेशन: आईस्टॉक
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प्रिंसटन विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग से जुड़े शोधकर्ताओं का मानना है कि हाल के वर्षों में भारत की वायु गुणवत्ता में जो सुधार आया है, उसमें मौसम का बहुत बड़ा हाथ है। हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहे हैं, उससे इन सुधारों के लम्बे समय तक बरकरार रहने की सम्भावना नहीं है। गौरतलब है कि 2017 के बाद से देश की वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया है।

अतीत पर नजर डालें तो भारत में तेजी से होते औद्योगिकीकरण और बढ़ती आबादी जैसे कारणों ने उत्सर्जन और वायु प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है। यह समस्या इस कदर विकराल रूप ले चुकी थी कि इससे निजात पाने के लिए सरकार ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) को लागू करना पड़ा।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जनवरी 2019 में लागू इस प्रोग्राम का उद्देश्य उन शहरों में वायु प्रदूषकों के पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म कणों को कम करना है, जो देश के वायु गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं हैं। इस प्रोग्राम के तहत 2017 की तुलना में 2024 तक वायु प्रदूषण के स्तर में 20 से 30 फीसदी की कटौती करने का लक्ष्य रखा गया था।

अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक यह सही है कि इस कार्यक्रम के शुरू होने के बाद से इन शहरों में सूक्ष्म कणों के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आई है, लेकिन इस सुधार की बड़ी वजह मौसमी परिस्थितियां हैं, जो इन सूक्ष्म कणों में आती गिरावट में मददगार साबित हो रही हैं।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर किरन हंट ने अपने विचार प्रकट करते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, “भारतीय शहरों की वायु गुणवत्ता में 2017 से सुधार देखा गया है, लेकिन नीतिगत प्रयासों के साथ इस सुधार की एक बड़ी वजह अनुकूल मौसम भी है।“

अध्ययन के मुताबिक वायु गुणवत्ता में सुधार की एक बड़ी वजह पश्चिमी विक्षोभ हैं जोकि एक मौसमी पैटर्न हैं। यह उत्तर भारत में आम तौर पर आने वाले सर्दियों के तूफान हैं। यह अपने साथ सतही हवाओं को साथ लाते हैं, जो शहरों को हवादार बना देती हैं। साथ ही यह सतही हवाएं प्रदूषण को शहरों से दूर ले जाती हैं। इन तूफानी हवाओं के साथ बारिश भी होती है, जो प्रदूषकों को सोख हवा को साफ बना देती है।

पीएम 2.5 में आई 30 फीसदी गिरावट की वजह था अनुकूल मौसम

डॉक्टर हंट के मुताबिक पीएम 2.5 में करीब 30 फीसदी की गिरावट की वजह मौसमी परिस्थितियां हैं। उनका कहना है कि यह चिंताजनक है, क्योंकि जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उनके कारण मौसम का यह अनुकूल पैटर्न आगे जारी नहीं रहेगा।"

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात की भी जांच की है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) छह शहरों में कितना प्रभावी रहा है।

निष्कर्ष दर्शाते हैं कि 2017 से 2022 के बीच पीएम 2.5 के स्तर में सालाना 8.8 फीसदी की दर से गिरावट आई है। वहीं छह में से चार शहरों ने तो इसमें 20 फीसदी से अधिक की कमी के साथ यह लक्ष्य हासिल भी कर लिया है। हालांकि अध्ययन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि प्रदूषण के स्तर में 30 फीसदी का सुधार नीतिगत बदलावों के बजाय अनुकूल मौसम की वजह से हुआ है। वहीं सर्दियों में यह आंकड़ा बढ़कर 50 फीसदी पर पहुंच गया।

बता दें कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मौसमी प्रभावों को उत्सर्जन में होने वाले बदलावों से अलग करने के लिए सतही माप और कंप्यूटर मॉडल की मदद ली है।

उन्होंने पाया है कि पीएम2.5 उत्सर्जन में तो कमी आई है, लेकिन इसके निर्माण में योगदान देने वाले प्रदूषकों में या तो कमी नहीं आई है या फिर 2017 से कुछ क्षेत्रों में वो कहीं ज्यादा बढ़ गए हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस दिशा में कुछ प्रगति के बावजूद अभी भी कई शहर ऐसे है जो वायु गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं हैं। परिणाम दर्शाते हैं कि सुधारों के बावजूद, 2022 तक देश के 57 में से 44 शहर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर पाए थे। ऐसे में अध्ययन के नतीजे वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की सिफारिश करते हैं।

इसमें विशेष रूप से ऐसे उपायों पर जोर देने की बात कही गई है जो बढ़ते प्रदूषण के साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मददगार साबित हो सकते हैं। इनमें अक्षय ऊर्जा को अपनाना और पराली जैसे कृषि से पैदा हो रहे कचरे को जलाने पर अंकुश लगाना जैसे उपाय शामिल हैं। 

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