
दिल्ली के लाल किले की दीवारें वायु प्रदूषण के कारण काली पड़ रही हैं और नक्काशियों का रंग-रूप बिगड़ रहा है।
भारत और इटली के वैज्ञानिकों के अध्ययन में पाया गया कि प्रदूषण से किले की संरचना को गंभीर खतरा है।
काले परत में भारी धातुओं की मौजूदगी और प्रदूषण के महीन कणों का जमाव पत्थरों को कमजोर कर रहा है।
विश्लेषण में पाया गया कि काली परत की मोटाई आवासीय इलाकों में करीब 0.05 मिलीमीटर की पतली परत से लेकर व्यस्त सड़कों के पास की दीवारों पर 0.5 मिलीमीटर तक पाई गई।
अध्ययन ने स्पष्ट किया कि जिप्सम का जमाव आसपास की निर्माण गतिविधियों और सीमेंट फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं के कारण हो रहा है
दिल्ली की हवा में घुला जहर सिर्फ यहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर ही हमला नहीं कर रहा, बल्कि इससे यहां की ऐतिहासिक इमारतों को भी नुकसान हो रहा है। भारत और इटली के वैज्ञानिकों द्वारा किए एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला अब हवा में घुले जहर से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। गौरतलब है कि 17वीं सदी में बनी यह यह ऐतिहासिक इमारत, विश्व धरोहर स्मारक भी है।
वैज्ञानिक ने अपने अध्ययन में चेताया है कि बढ़ते वायु प्रदूषण से किले की लाल बलुआ पत्थर की दीवारें झर रही हैं, नक्काशियों के बारीक काम मिट रहे हैं, पलस्तर उखड़ रहा है और दीवारों पर काली परत जम रही है।
यह अध्ययन भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और इटली के विदेश मंत्रालय के सहयोग से इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) रुड़की, आईआईटी कानपुर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और वेनिस के का’ फोस्कारी विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
इस अध्ययन के नतीजे जर्नल हेरिटेज में प्रकाशित हुए हैं।
गौरतलब है कि यह अपनी तरह की पहली व्यापक वैज्ञानिक जांच है जिसमें वैज्ञानिकों ने लाल किले पर शहरी वायु प्रदूषण के प्रभावों की जांच की है।
कितनी गंभीर है समस्या?
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जफर महल के साथ-साथ लाल किला परिसर के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्रित बलुआ पत्थर और काली परत (ब्लैक क्रस्ट) के नमूनों का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण में पाया गया कि काली परत की मोटाई आवासीय इलाकों में करीब 0.05 मिलीमीटर की पतली परत से लेकर व्यस्त सड़कों के पास की दीवारों पर 0.5 मिलीमीटर तक पाई गई।
लाल किले के आसपास भारी ट्रैफिक, फैक्ट्रियों और धूल प्रदूषण के कारण वहां के पत्थरों और नक्काशियों पर काली परत जम रही है। खास बात यह है कि ये मोटी परतें पत्थर की सतह से इतनी मजबूती से चिपक जाती हैं कि समय के साथ सतह उखड़ने लगती है और बारीक नक्काशियां धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं।
अध्ययन से यह भी पता चला है कि किले की दीवारों पर जमा काली परत (ब्लैक क्रस्ट) में भारी धातुओं की मात्रा अधिक है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस काली परतें में मुख्य रूप से जिप्सम, बेसानाइट, वेडेलाइट और सीसा, जस्ता, क्रोमियम और तांबा जैसी भारी धातुओं की थोड़ी-बहुत मात्रा होती है। ये प्रदूषक बलुआ पत्थर में स्वाभाविक रूप से नहीं पाए जाते, बल्कि बाहरी स्रोतों से जमा होते हैं, जिसके लिए वाहनों से होने वाला प्रदूषण, जीवाश्म ईंधन से हो रहा उत्सर्जन, धूल-मिट्टी और निर्माण गतिविधियां जिम्मेवार हैं।
अध्ययन ने स्पष्ट किया कि जिप्सम का जमाव आसपास की निर्माण गतिविधियों और सीमेंट फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं के कारण हो रहा है। काली परत वाले नमूनों में जिप्सम, क्वार्ट्ज और अन्य रसायन पाए गए हैं, जो पत्थरों को तेजी से कमजोर कर रहे हैं।
वहीं प्रदूषण के महीन कण जैसे पीएम2.5 और पीएम10 किले की सतह पर जमकर कालेपन और बदरंग धब्बों का कारण बन रहे हैं। खासकर नक्काशियों और बारीक शिल्प पर इसका ज्यादा असर दिख रहा है।
क्या हो सकता है समाधान?
वहीं नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे गैसें पत्थर की सतह पर रासायनिक प्रतिक्रिया करके दरारें और टूट-फूट पैदा कर रही हैं। 2021 से 2023 के आंकड़ों से पता चला कि इस दौरान लाल किले के आसपास पीएम10, पीएम2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा लगातार राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से ऊपर रही। शोधकर्ताओं ने चेताया कि यह किले की संरचना के लिए गंभीर खतरा है।
वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी वायु गुणवत्ता से जुड़े आंकड़ों की मदद ली है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर शुरूआत में ही इस काली परत को हटा दिया जाए और पत्थरों पर सुरक्षात्मक परत चढ़ाई जाए, और प्रभावित हिस्सों की नियमित देखभाल की जाए तो नुकसान की रफ्तार धीमी की जा सकती है। साथ ही नियमित सफाई और रखरखाव भी बेहद जरूरी है।
लाल किले का इतिहास और शिल्पकला
मुगल बादशाह शाहजहां ने 1638 में अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने के बाद लाल किले का निर्माण शुरू कराया। इसकी नींव 1639 में रखी गई और 1648 में निर्माण पूरा हुआ। 1660 तक आने वाले मुगल शासकों ने इसमें कई बदलाव किए। 1857 के बाद ब्रिटिश शासनकाल में भी किले में बड़े पैमाने पर बदलाव किए गए।
आज लाल किले के करीब 30 फीसदी हिस्से में असली मुगल वास्तुकला दिखाई देती है, जिसमें फारसी, तैमूरी-सफवीद और हिंदू शैली की झलक खूबसूरती से देखने को मिलती है।
देखा जाए तो कभी यमुना नदी के किनारे और चारों ओर खाई से घिरा यह किला अब दिल्ली की व्यस्त सड़कों और वाहनों के धुएं से घिर चुका है। नतीजा यह है कि भारत की शान और विश्व धरोहर माने जाने वाले इस स्मारक की सुंदरता और मजबूती दोनों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।