यूक्रेन-रूस संघर्ष: गेहूं की कीमतों में हो सकती है 7.2 फीसदी की वृद्धि, बढ़ेगा उत्सर्जन

संघर्ष के कारण पैदा हुई अनाज की कमी को भरने के लिए भारत सहित अन्य उत्पादक देशों को अपने कृषि भूमि उपयोग में विस्तार करना होगा, जिससे 100 करोड़ टन से ज्यादा सीएओ2 उत्सर्जित होंगी
यूक्रेन-रूस संघर्ष: गेहूं की कीमतों में हो सकती है 7.2 फीसदी की वृद्धि, बढ़ेगा उत्सर्जन
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कहते हैं कि युद्ध किसी के लिए फायदेमंद नहीं होता। ऐसा ही कुछ रूस-यूक्रेन के बीच जारी टकराव के कारण भी हो रहा है। अनुमान है कि इस संघर्ष का खामियाजा सारी मानव जाति को झेलना पड़ेगा। ऊपर से सूखा और जलवायु में आता बदलाव समस्याओं को भड़काने में आग में घी का काम कर रहा है।

इस युद्ध के कृषि और खाद्य कीमतों पर पड़ते असर को लेकर सोमवार 19 सितंबर 2022 को एक नया अध्ययन जारी किया गया, जिसके निष्कर्ष बताते हैं कि इस संघर्ष के कारण अनाज की कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है। इतना ही नहीं, इसकी वजह से अन्य देशों पर जो उत्पादन का दबाव पड़ेगा और भूमि उयपोग में बदलाव आएगा, उसके चलते ग्रीनहॉउस गैसों के उत्सर्जन में भी भारी वृद्धि हो सकती है।

वैश्विक आंकड़ों को देखें तो रूस और यूक्रेन दोनों दुनिया के लिए ब्रेडबास्केट हैं, जो सम्मिलित रूप से वैश्विक गेहूं आपूर्ति में करीब 28 फीसदी का योगदान देते हैं। लेकिन जिस तरह से रूस ने काला सागर के बंदरगाहों की नाकेबंदी की है और मास्को पर खाद्य निर्यात को लेकर प्रतिबंध लगाए हैं उसने खाद्य कीमतों में अल्पकालिक वृद्धि के साथ-साथ भुखमरी के संकट को कहीं ज्यादा गंभीर होने की संभावनाओं को जन्म दिया है।

इन प्रभावों को समझने के लिए अमेरिका और उरुग्वे के शोधकर्ताओं ने विभिन्न परिदृश्यों को देखते हुए आने वाले 12 महीनों में गेहूं और मक्का की कीमतों पर इस संघर्ष के संभावित प्रभावों का एक मॉडल तैयार किया है।

जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि यदि रूस अपने अनाज निर्यात को आधा कर देता है और यूक्रेन से होने वाले निर्यात में कमी आ जाए तो इससे वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में 7.2 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। इतना ही नहीं इसके वजह से मक्के की कीमतें भी 4.6 फीसदी बढ़ जाएंगी।

शोध में यह भी सामने आया है कि यदि भारत सहित अन्य अनाज निर्यातक देश कदम उठाते हैं तो वो अनाज की इस कमी को पूरा कर सकते हैं। हालांकि इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि जब तक निर्यात पर प्रतिबंध जारी रहेगा, कीमतों में वृद्धि होती रहेगी।

भूमि उपयोग में बदलाव के चलते उत्सर्जित हो सकती है 100 करोड़ टन से ज्यादा अतिरिक्त सीएओ2

खाद्य आपूर्ति के इस अंतर को भरने के लिए शोध में सामने आया है कि अन्य प्रमुख उत्पादकों को अपने अनाज उत्पादक क्षेत्रों में विस्तार करने की जरुरत होगी। मॉडल के अनुसार यदि यूक्रेन से सभी अनाज निर्यात बंद हो जाते हैं, तो ऑस्ट्रेलिया को अपने गेहूं उत्पादक क्षेत्र में एक फीसदी, चीन को 1.5 फीसदी, यूरोपियन यूनियन को 1.9 फीसदी वहीं भारत को 1.2 फीसदी का विस्तार करने की जरुरत होगी।

देखा जाए तो इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर अनाज उत्पादक क्षेत्र में करीब 1.4 फीसदी की वृद्धि करनी होगी, जोकि करीब 1.11 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र के बराबर होगी। ऐसे में अध्ययन ने आगाह किया है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए भूमि उपयोग में किए इन बदलावों से वातावरण में 101.12 करोड़ टन अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होगी।

शोध के अनुसार यदि यूक्रेन और रूस गेहूं निर्यात को पूरी तरह रोक देते हैं तो इस कमी को पूरा करने के लिए भारत को अपने गेहूं निर्यात में 72 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि करनी पड़ सकती है। इसी तरह यूरोपियन यूनियन को भी 36.1, अमेरिका को 24.2 फीसदी और अर्जेंटीना को भी अपने गेहूं निर्यात में 11.4 फीसदी की वृद्धि करनी पड़ सकती है।

वहीं ऑस्ट्रेलिया के लिए यह वृद्धि 9.4 फीसदी और कनाडा के लिए 8.6 फीसदी रहने की आशंका है। इसी युद्ध के कारण मक्के के निर्यात पर पड़ने वाली कमी को भरने के लिए ब्राजील को अपने मक्के के निर्यात में 13.8 फीसदी और अमेरिका को 15.6 फीसदी की वृद्धि करनी होगी।

इस बारे में इंडियानापोलिस यूनिवर्सिटी के ओ' नील स्कूल ऑफ पब्लिक एंड एनवायर्नमेंटल अफेयर्स और शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जेरोम डुमोर्टियर का कहना है कि “यूक्रेन में जारी संघर्ष के चलते कृषि भूमि का विस्तार बढ़ते उत्सर्जन की कीमत पर हो रहा है।“

पहले ही संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने जुलाई में इसके बारे में चेताया था कि यूक्रेन-रूस के बीच जारी संघर्ष कोविड-19 के साथ मिलकर अभूतपूर्व रूप से वैश्विक खाद्य संकट पैदा कर रहा है। वहीं खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी आंकड़े दर्शाते हैं कि वर्तमान में खाद्य कीमतें पहले ही पिछले साल की तुलना में 10 फीसदी से ज्यादा हैं।

हालांकि अनाज निर्यात को फिर से शुरू करने के लिए मॉस्को और कीव जुलाई 2022 में एक समझौते पर पहुंचे थे, जोकि एक अच्छी खबर है। लेकिन इसके बावजूद आशंका है कि जारी संघर्ष से खाद्य कीमतों में वृद्धि हो सकती है। इस बारे में डुमोर्टियर का कहना है कि वर्तमान में यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि क्या अन्य अनाज उत्पादक देश वैश्विक मांग को पूरा करने में सक्षम हैं। ऐसे में अनाज की कीमतें अनुमान से कहीं ज्यादा बढ़ सकती हैं।

शोध के मुताबिक दक्षिण अमेरिका, यूरोप और चीन पहले ही सूखे का सामना कर रहे हैं, जबकि अर्जेंटीना और इंडोनेशिया जैसे अन्य प्रमुख अनाज उत्पादक देशों द्वारा निर्यात पर लगाई रोक और कीटनाशकों की बढ़ती कीमतें ने दुनिया के कमजोर तबके के लिए खाद्य असुरक्षा को और बढ़ा दिया है।

ऐसे में शोध के मुताबिक कमजोर तबके की सहायता के लिए घरेलू नीतियों में सब्सिडी और व्यापार प्रतिबंधों में कमी जैसे उपाय शामिल किए जा सकते हैं। इसी तरह गहराते जलवायु संकट के प्रभावों को व्यापार पर लगाए प्रतिबंधों को हटाकर सीमित किया जा सकता है।    

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