बिहार में बक्सर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार में विवादास्पद भूमि अधिग्रहण की बड़ी भूमिका रही। यह अधिग्रहण बिजली संयंत्र के लिए किया गया था। गौरतलब है कि किसान अपनी जमीन के बदले मुआवजे को लेकर नाखुश थे। ऐसे में किसानों की मुआवजे की मांग और उसके बाद प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ जिस तरह पुलिस ने कार्रवाई की उसका असर चुनावी नतीजों पर भी देखने को मिला।
इसकी वजह से भाजपा उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के उम्मीदवार सुधाकर सिंह से हार का सामना करना पड़ा। सुधाकर सिंह, किसान अधिकारों का समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं।
भले ही यह आश्चर्यजनक लग सकता है कि कैसे किसानों से जुड़े एक स्थानीय मुद्दे का इतना बड़ा प्रभाव पड़ा। लेकिन इसने बक्सर में मतदाताओं को भाजपा के खिलाफ करने में बड़ी भूमिका निभाई। गौरतलब है कि बक्सर उत्तर प्रदेश के बलिया और गाजीपुर जिलों के साथ सीमा को साझा करता है। नहीं भूलना चाहिए कि यह वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गढ़ के भी करीब है।
बनारपुर गांव के किसान हरिदयाल तिवारी का कहना है कि, "सैकड़ों किसानों ने भाजपा के खिलाफ वोट किया, ताकि वास्तविक मांगों की अनदेखी करने के लिए उन्हें सबक सिखाया जा सके। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों के खिलाफ पुलिस की क्रूर कार्रवाई का उल्टा ही असर हुआ, लोगों को लगा की इस कार्रवाई की अनुमति सरकार ने दी है।“
मोहनपुरवा और कोचरही जैसे आस-पास के ग्रामीणों ने भी ऐसा ही महसूस किया। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई के कारण मार्च 2024 से करीब 10,000 ग्रामीण भय के साय में जी रहे हैं।
गौरतलब है कि सतलुज जल विद्युत निगम की एक सहायक इकाई एसजेवीएन थर्मल प्राइवेट लिमिटेड बक्सर में 1,283 एकड़ जमीन पर 1,320 मेगावाट का कोयला बिजली संयंत्र बना रही है। इस संयंत्र में दो इकाइयां होंगी, जिनमें से प्रत्येक 660 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौ मार्च, 2019 को इस परियोजना की आधारशिला रखी थी। इसमें उन्नत ग्रीनफील्ड सुपरक्रिटिकल थर्मल पावर तकनीक का उपयोग किया जाएगा और इसकी लागत करीब 11,000 करोड़ रुपए होगी। किसान अपनी जमीन की एवज में नई दरों पर मुआवजे की मांग कर रहे हैं। पिछले साल भी सैकड़ों किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया था जो 500 दिनों से भी अधिक समय तक चला और बाद में हिंसक हो गया था।
बक्सर में भाजपा को ले डूबी किसानों की नाराजगी
लोकसभा चुनावों की घोषणा के तुरंत बाद, 24 मार्च, 2024 को पुलिस ने कथित तौर पर प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ कार्रवाई की। पुलिस के इस कदम से किसान भड़क गए, उन्हें लगा कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार उनके लंबे समय से चल रहे विरोध को दबाने की कोशिश कर रही है।
अमित तिवारी नामक किसान का कहना है कि, "कथित तौर पर पुलिस पर हमला करने और निर्माण कार्य में बाधा डालने के लिए पुलिस ने 60 किसानों और 300 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। हम पुलिस की कार्रवाई के शिकार हुए हैं, जिसका उद्देश्य जायज मुआवजे के लिए हमारे विरोध को खत्म करना है।"
तिवारी ने आगे कहा कि, "हम पीड़ित हैं क्योंकि पुलिस ने किसानों के विरोध को खत्म करने के लिए बल प्रयोग किया। इस दौरान सैकड़ों किसानों की पुलिस के साथ झड़पें हुई। पुलिस न ने केवल लाठीचार्ज किया, विरोध स्थल पर तोड़फोड़ की, वो घरों तक में घुस गए। उन्होंने महिलाओं पर हमला किया, उनके साथ दुर्व्यवहार तक किया। पुलिस ने हमें धमकी भी दी कि अगर हमने विरोध बंद न किया तो वे हमें झूठे मामलों में फंसा देंगे। पुलिस की इस कार्रवाई में कई किसान घायल भी हुए हैं।"
प्रियंका तिवारी नामक युवती ने बताया कि, “बक्सर और आस-पास के जिलों में किसानों का गुस्सा फैल गया। वे सरकार के इस फैसले से भी नाखुश थे कि उन्हें उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं दिया जा रहा।“ वहीं राजद उम्मीदवार सुधाकर सिंह, जो लगातार किसानों का मुद्दा उठाते रहे हैं, ने खासकर ग्रामीण इलाकों में लोगों से संपर्क किया और उन्हें भरोसा जताया कि वो चुनाव जीतने पर उनका साथ देंगें।
सिंह का कहना है कि, "मैंने एक के बाद एक हर चुनावी सभा में लोगों, खासकर किसानों को भरोसा दिलाया कि अगर इंडिया गठबंधन जीतता है, तो उन्हें एमएसपी और जल्द ही बिजली संयंत्र के लिए ली गई जमीन का मुआवजा मिलेगा। लोग जानते हैं कि मैं किसानों का समर्थन करता हूं।"
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने भी बक्सर में अप्रैल 2024 में हुई पुलिस कार्रवाई के बाद किसानों से मुलाकात की और उन्हें भरोसा दिलाया कि वह उनके लिए लड़ेंगे।
सिंह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कृषि नीतियों पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए हैं और राज्य में चल रहे कृषि कार्यक्रमों की जांच की मांग की है। उन्होंने किसानों को एमएसपी और मंडी (थोक बाजार) प्रणाली को फिर से पुनर्जीवित करने की मांग के लिए लामबंद किया है, जिसे 2006 में एनडीए सरकार ने कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम को निरस्त करने के बाद खत्म कर दिया गया था।
वहीं चुनावी मैदान में नए उतरे मिथिलेश तिवारी को नाराज किसानों का सामना करना पड़ा। इन किसानों ने कृषि मुद्दों पर भाजपा के दोहरे रुख पर भी सवाल उठाए। ऐसे में अपनी लोकप्रियता खो चुके मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे की जगह तिवारी को लाने से भी जनता का असंतोष कम नहीं हुआ।
दूसरी तरफ युवा पुलिस अधिकारी आनंद मिश्रा के निर्दलीय उम्मीदवार बनने से भाजपा के लिए स्थिति और जटिल हो गई। मिश्रा की उम्मीदवारी ने बक्सर में भाजपा के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया, जोकि बक्सर में भाजपा की हुई हार की एक वजह रही।