पिछले आठ वर्षों में जहां 2010 से 2018-19 के बीच गुजरात में होने वाले मिट्टी के कटाव में 340 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं त्रिपुरा में भी करीब 60 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। यह जानकारी कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा लोकसभा में एक प्रश्न के दिए जवाब में सामने आई है। गौरतलब है कि मिट्टी के कटाव में कितना बदलाव आया है उसकी गणना कुल बोए क्षेत्र के आधार पर की गई है।
हालांकि आंकड़ों के मुताबिक जहां 2010 के दौरान देश में कुल बोए क्षेत्र में मिट्टी के कटाव से प्रभावित कुल भूमि करीब 9.24 करोड़ हेक्टेयर थी, वो 2018-19 में घटकर 4.26 करोड़ हेक्टेयर रह गई है। इसका मतलब है कि पिछले आठ वर्षों में मृदा अपरदन में करीब 54 फीसदी यानी 4.98 करोड़ हेक्टेयर की गिरावट आई है, जोकि एक अच्छी खबर है। यदि 2010 से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो उसके अनुसार तब मिट्टी को कटाव से होने वाला नुकसान करीब प्रति वर्ष 10 टन/वर्ष था।
मंत्रालय ने जो आंकड़े साझा किए हैं उनमें 2010 के आंकड़े भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (आईसीएआर) और 2018-19 के आंकड़ें इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (इसरो) द्वारा रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट की मदद से तैयार एसएसी 2021 से लिए गए हैं।
हालांकि देश के जिन राज्यों में मिट्टी के कटाव से प्रभावित क्षेत्र में वृद्धि हुई है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आंकड़ों के मुताबिक देश के जिन राज्यों में मिट्टी के कटाव से ग्रस्त कृषि क्षेत्र में वृद्धि हुई हैं उनमें गोवा प्रमुख था जहां मिट्टी के कटाव का सामना करने वाले क्षेत्र में 2933 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। गोवा में 2010 में कटाव से प्रभावित क्षेत्र 1,000 हेक्टेयर था वो 2018-19 में बढ़कर 30,330 हेक्टेयर हो गया था। इसी तरह गुजरात में 9.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कटाव से त्रस्त था जो 2018-19 में 340.45 फीसदी बढ़कर 43.3 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया था।
राजस्थान में सबसे ज्यादा 1.03 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र कटाव का कर रहा है सामना
इस दौरान ओडिशा में भी कटाव से प्रभावित क्षेत्र में करीब 99.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। गौरतलब है कि वहां मृदा अपरदन का सामना करने वाला जो कुल बोया क्षेत्र 22.3 लाख हेक्टेयर था वो 2018-19 में बढ़कर 44.4 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया था। इसी तरह इस दौरान त्रिपुरा में भी मिट्टी के कटाव का सामना करने वाले कृषि क्षेत्र में 59.9 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी।
यदि देश में मिट्टी के कटाव से जुड़े वर्तमान आंकड़ों को देखें जोकि 2018-19 में लिए गए थे उनके अनुसार राजस्थान में सबसे ज्यादा बोया क्षेत्र मिट्टी के कटाव का सामना कर रहा था, जिसका कुल क्षेत्रफल करीब 1.03 करोड़ हेक्टेयर था। इसके बाद महाराष्ट्र में 76.3 लाख, कर्नाटक में 47.4 लाख, ओडिशा में 44.4 लाख, गुजरात में 43.3 लाख, झारखंड में 39.1 लाख हेक्टेयर बोया क्षेत्र मिट्टी के कटाव का सामना कर रहा था।
धरती पर मिट्टी की उपस्थिति मनुष्य से लेकर फसलों और छोटे कीड़ों तक तक हर प्रकार के जीवन का आधार है। हजारों सालों से जलवायु और पृथ्वी की प्लेटों में होती हलचल मिट्टी के अपक्षय और क्षरण को नियंत्रित करती रही हैं।
इस बारे में छपे एक शोध से पता चला है कि हम मनुष्य पिछले 4,000 वर्षों से मिट्टी के इस कटाव में वृद्धि कर रहे हैं। औद्योगिकीकरण से बहुत पहले ही मनुष्यों ने जंगलों को काटकर, कृषि और अपने रहने के लिए भूमि उपयोग में बदलाव करना शुरू कर दिया था, जिसके नतीजे आज भी हमारे सामने आ रहे हैं।
देखा जाए तो मिट्टी का यह कटाव न केवल पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता को घटा देता है, बल्कि साथ ही प्रकृति में चल रहे पोषक तत्वों के आदान प्रदान की क्रिया में भी फेरबदल कर देता है। परिणामस्वरूप यह जलवायु और समाज को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। ऐसे में हमें जितना हो सके इसे रोकने के प्रयास करने चाहिए।