कृषि उपज को खतरे में डाल रही है ढलानों पर मशीनों की मदद से की जा रही जुताई

रिसर्च से पता चला है कि पहाड़ी ढलानों पर जुताई के लिए बड़ी मशीनों का उपयोग भविष्य में कृषि पैदावार के लिए खतरा पैदा कर सकता है
ढलानों पर होती जुताई; फोटो: जॉन क्विंटन/ लैंकेस्टर विश्वविद्यालय
ढलानों पर होती जुताई; फोटो: जॉन क्विंटन/ लैंकेस्टर विश्वविद्यालय
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लैंकेस्टर और ऑग्सबर्ग विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा की गई रिसर्च से पता चला है कि पहाड़ी ढलानों पर जुताई के लिए बड़ी मशीनों का उपयोग भविष्य में कृषि पैदावार के लिए खतरा पैदा कर सकता है। जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक पहाड़ी ढलानों पर इस तरह की जा रही जुताई से मिट्टी की परत पतली हो रही है, जिसके कारण एक समय में इसकी वजह से खाद्य फसलों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।

सदियों से किसान अपने खेतों को तैयार करने के लिए उसकी जुताई करते रहे हैं। लेकिन पहले इसके लिए लकड़ी से बने हल का इस्तेमाल किया जाता था, जिसे पशु चलाते थे। समय बदला और मशीनों का दौर आया। पारम्परिक खेती में जुताई के लिए हल की जगह तेज ट्रैक्टरों और भारी मशीनों ने ले ली। इससे जहां एक तरफ काम की रफ्तार बढ़ी और साथ ही मेहनत भी घट गई। हालांकि इसका खामियाजा मिट्टी को भुगतना पड़ रहा है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक जब खेतों की जुताई की जाती है तो मिट्टी की महत्वपूर्ण हिस्सा ढलानों पर नीचे की ओर चला जाता है। जिससे मौसम के कारण होने वाले कटाव में वृद्धि होती है। ढलानों पर यह मिट्टी जुताई के कारण पहाड़ों के निचले हिस्से की ओर सरक जाती हैं और घाटी की तलहटी में जमा होने लगती है।

समय के साथ ढलानों पर मिट्टी की ऊपरी परत पतली होती जाती है जिससे निचली परतें ऊपर आ जाती हैं। इन निचली परतों में पोषक तत्वों के साथ-साथ जैविक गतिविधियों और जल भण्डारण क्षमता की कमी के कारण फसलों की पैदावार कम हो जाती है।

कैसे पैदावार को प्रभावित कर रहा है मशीनीकरण

इस बारे में लैंकेस्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और इस शोध से जुड़े शोधकर्ता जॉन क्विंटन का कहना है कि जुताई की वजह से मिट्टी की गहराई में आने वाली कमी पैदावार को कितना नुकसान पहुंचा सकती है इस बारे में अभी बहुत सीमित जानकारी उपलब्ध है। लेकिन हम इतना जानते हैं कि जुताई की वजह से मिट्टी ढलानों से नीचे की और सरक जाती है, जो अक्सर हवा और पानी के कारण होने वाले कटाव के चलते अपनी जगह से स्थानांतरित हो जाती है। उनके अनुसार हम इस बारे में बहुत कम जानते हैं कि मिट्टी की परत के पतला होने से पैदावार कैसे प्रभावित हो सकती है।

वहीं इस बारे में ऑग्सबर्ग विश्वविद्यालय और शोध से जुड़े प्रोफेसर पीटर फिएनर का कहना है कि जैसे-जैसे मशीनों का उपयोग और जलवायु परिवर्तन के चलते सूखे  की आवृत्ति बढ़ रही है, उसके और ढलानों पर जुताई के कारण मिट्टी का कटाव भी बढ़ रहा है। उनका अनुमान है कि इसकी वजह से दुनिया के कई हिस्सों में पैदावार को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। 

यह अध्ययन उत्तरी जर्मन के उकरमार्क क्षेत्र में किया है जहां कृषि के लिए बड़े पैमाने पर मशीनों का उपयोग किया जाता है। शोधकर्तओं का अनुमान है कि इस क्षेत्र में ढलानों पर जुताई के लिए होते मशीनों के उपयोग के कारण कटाव बढ़ गया है जो अगले पचास वर्षों में गेहूं और मक्के की पैदावार में गिरावट की वजह बन सकता है।

उनका अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो इस क्षेत्र में अगले 50 वर्षों में गेंहू की पैदावार में 7.1 फीसदी की गिरावट आ सकती है, वहीं मक्के की पैदावार में 4 फीसदी की गिरावट आने की सम्भावना है। शोध के मुताबिक सूखे के दौरान मिट्टी की ऊपरी परत के कमजोर होने का प्रभाव सबसे ज्यादा स्पष्ट होगा, क्योंकि यह पतली परत नमी और पोषक तत्वों को धारण करने में कम सक्षम होती है।

हालांकि यह शोध जर्मनी के एक क्षेत्र में किया गया है लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि मिट्टी में होते कटाव के कारण दुनिया भर में उन सभी जगहों पर कृषि पैदावार प्रभावित हो सकती है, जहां ढलानों पर जुताई की जा रही है।

इस बारे में प्रोफेसर क्विंटन का कहना है कि अगर हम मिट्टी की इसी तरह जुताई करते रहते हैं तो क्षेत्रीय स्तर पर फसल की पैदावार में गिरावट आ सकती है। वहीं सूखे के दौरान इसका कहीं ज्यादा असर होगा क्योंकि मिट्टी की पतली परत पौधों के लिए पानी को बनाए रखने में कम सक्षम होती हैं। ऐसे में उनका कहना है कि इस विषय पर तत्काल कार्रवाई करने की जरुरत है।   

हालांकि शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध में जलवायु परिवर्तन के असर का अध्ययन नहीं किया है लेकिन उनका कहना है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते सूखे की सम्भावना बढ़ जाएगी, जिसका असर जुताई के कारण होते कटाव पर भी पड़ेगा।

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