

वुशेल-डी1 जीन की पहचान: यह जीन सक्रिय होने पर एक फूल में तीन अंडाशय विकसित करता है।
दानों की संख्या में वृद्धि: सामान्य गेहूं की तुलना में तीन गुना अधिक दाने पैदा करने की क्षमता।
उपज बढ़ाने की नई संभावना: बिना अतिरिक्त जमीन, पानी या खाद के उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
भविष्य के लिए खाद्य सुरक्षा: जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच बड़ी राहत।
अन्य फसलों में भी उपयोग की संभावना: यह तकनीक चावल, मक्का और जौ जैसी फसलों में भी अपनाई जा सकती है।
दुनिया भर में बढ़ती जनसंख्या और घटती खेती योग्य जमीन के बीच, वैज्ञानिकों ने गेहूं की उपज बढ़ाने की दिशा में एक बड़ी सफलता हासिल की है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन की पहचान की है जो एक सामान्य गेहूं के पौधे के फूल में एक की जगह तीन अंडाशय विकसित कर देता है। इस खोज से गेहूं की पैदावार को बिना अतिरिक्त जमीन, पानी या उर्वरक के बढ़ाया जा सकता है।
क्या है यह खोज?
गेहूं की एक दुर्लभ प्रजाति में वैज्ञानिकों ने देखा कि उसके हर फूल में सामान्य एक अंडाशय की जगह तीन अंडाशय बनते हैं। हर अंडाशय से एक दाना बनता है, यानी इस खास प्रजाति में एक फूल से तीन दाने तैयार होते हैं, जबकि सामान्य गेहूं में केवल एक।
वैज्ञानिकों ने इस अनोखी विशेषता का कारण जानने के लिए इस गेहूं की डीएनए मैपिंग की और इसकी तुलना आम गेहूं से की। तब उन्होंने पाया कि इस प्रजाति में एक विशेष जीन वुशेल-डी1 (वुश-डी1) सक्रिय हो जाता है, जबकि सामान्य गेहूं में यह जीन निष्क्रिय रहता है।
जब वुश-डी1 जीन सक्रिय होता है, तो यह फूल बनने की शुरुआती अवस्था में अधिक फूलों के ऊतक बनाता है, जिससे अतिरिक्त अंडाशय बनते हैं।
क्या है इसका महत्व ?
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित यह खोज गेहूं की खेती के लिए एक क्रांतिकारी कदम हो सकती है। इसके मुख्य फायदे इस प्रकार हैं:
उत्पादन में बढ़ोतरी - एक फूल से तीन दाने बनने का मतलब है कि पूरे पौधे की कुल उपज कई गुना बढ़ सकती है।
बिना अतिरिक्त संसाधनों के - इस तकनीक से पैदावार बढ़ाने के लिए अधिक जमीन, पानी या खाद की जरूरत नहीं होगी।
जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद - जलवायु परिवर्तन के कारण जब खेती चुनौतीपूर्ण हो रही है, यह तकनीक उत्पादन बनाए रखने में मदद कर सकती है।
विश्व खाद्य सुरक्षा - गेहूं एक प्रमुख खाद्यान्न है जो दुनिया की अरबों आबादी को पोषण देता है। इसकी उपज बढ़ाना भविष्य में खाद्य संकट को टालने में सहायक हो सकता है।
अब आगे क्या?
इस खोज को वास्तविक खेती में लागू करने के लिए वैज्ञानिकों को अब यह पता लगाना होगा कि वुश-डी1 जीन को कैसे नियंत्रित और सक्रिय किया जा सकता है। इसके लिए वे जीन एडिटिंग टूल्स जैसे कि क्रिस्पर का उपयोग कर रहे हैं।
यदि वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को स्थायी और सुरक्षित तरीके से विकसित कर पाते हैं, तो किसान ऐसे गेहूं के बीज उगा सकेंगे जिनमें प्राकृतिक रूप से अधिक दाने बनते हैं।
शोध पत्र में यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि हमने इस विशेष गुण के पीछे का जीन पहचान लिया है। अब हमारा लक्ष्य है कि इस जीन को नयी किस्मों में शामिल कर ऐसी गेहूं की प्रजातियां विकसित करें जिनसे अधिक उत्पादन हो सके।
क्या यह केवल गेहूं तक सीमित है?
नहीं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह तकनीक गेहूं में सफल रहती है, तो इसे अन्य अनाजों जैसे कि चावल, जौ और मक्का में भी लागू किया जा सकता है।
संभावनाएं और सावधानियां
हालांकि यह खोज बहुत ही आशाजनक है, परंतु कुछ सावधानियां भी जरूरी हैं:
जीन को इस तरह से सक्रिय करना होगा कि पौधे की प्राकृतिक वृद्धि में कोई बाधा न आए।
अधिक दाने बनने से यह भी देखना होगा कि पौधे को पोषक तत्वों की कमी न हो जाए।
लंबे समय के फसल परीक्षण करने होंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नई किस्में हर मौसम और इलाके में अच्छा उत्पादन देती हैं।
यह खोज वैज्ञानिकों और किसानों के लिए एक नई आशा की किरण है। यदि सब कुछ योजना अनुसार चला, तो आने वाले सालों में हम ऐसी गेहूं की किस्में देख सकते हैं जो कम जमीन में अधिक अनाज दे सकेंगी।
इससे न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि विश्व खाद्य संकट से लड़ने में भी मदद मिलेगी। भविष्य की खेती में विज्ञान की यह भूमिका निश्चित ही किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद सिद्ध हो सकती है।