नई कृषि पद्धतियों से बढ़ सकती है उपज और ग्रीनहाउस गैसों व बढ़ते तापमान पर लगेगी लगाम

कृषि से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अब 1960 के दशक की तुलना में 18 गुना अधिक हो गया है, जो दुनिया में तापमान वृद्धि का लगभग 30 फीसदी है।
मौजूदा टिकाऊ कृषि पद्धतियों और तकनीकों को यदि व्यापक पैमाने पर लागू किया जाए, तो वे कृषि के कारण होने वाले उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
मौजूदा टिकाऊ कृषि पद्धतियों और तकनीकों को यदि व्यापक पैमाने पर लागू किया जाए, तो वे कृषि के कारण होने वाले उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकते हैं।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, चौ. महेश्वर राजू
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दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और कृषि पर किए गए शोधों से एक जटिल दो-तरफा संबंध का पता चला है। कृषि के कारण होने वाला जलवायु परिवर्तन, विलुप्ति और प्रदूषण के लिए जिम्मेवार है और साल-दर-साल पर्यावरण पर इसका प्रभाव बढ़ रहा है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा और बढ़ता तापमान दुनिया भर में फसलों के उत्पादन को खतरे में डालने लगे हैं।

कृषि से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अब 1960 के दशक की तुलना में 18 गुना अधिक हो गया है, जो दुनिया में तापमान वृद्धि का लगभग 30 फीसदी है। खेत में छोड़े गए अतिरिक्त उर्वरकों को बैक्टीरिया द्वारा नाइट्रस ऑक्साइड बनाने के लिए तोड़ा जाता है, जो एक ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक शक्तिशाली है।

अधिक पैदावार बनाए रखने के साथ खेती के कारण तापमान में बढ़ोतरी को कम करने के लिए रणनीतिक प्रयास जलवायु परिवर्तन को कम करने और हमारे खाद्य आपूर्ति को इसके प्रभावों से बचाने के लिए जरूरी हैं।

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मौजूदा टिकाऊ कृषि पद्धतियों और तकनीकों को यदि व्यापक पैमाने पर लागू किया जाए, तो वे कृषि के कारण होने वाले उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकते हैं।

मिनेसोटा विश्वविद्यालय और दुनिया भर के 20 से अधिक विशेषज्ञों के साथ मिलकर किए गए इस शोध में जलवायु और खेती के बीच संबंधों की जांच की गई है।

साइंस में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया की खाद्य आपूर्ति पर अधिक दबाव डालता है, कृषि में ऐसी पद्धतियों को अपनाया जा रहा है जो जलवायु परिवर्तन को और तेज कर रही हैं। शोध में शोधकर्ताओं ने नई कृषि पद्धतियों की भी पहचान की है जो आने वाले दशकों में जलवायु के प्रभावों को बहुत कम करने, दक्षता बढ़ाने और हमारी खाद्य आपूर्ति को स्थिर करने की क्षमता रखती हैं।

शोधकर्ताओं ने शोध में पाया कि जलवायु परिवर्तन का खेती करने की पद्धतियों पर भारी प्रभाव पड़ता है, पानी का उपयोग और कमी बढ़ती है, नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जन, मिट्टी का क्षरण, नाइट्रोजन और फास्फोरस प्रदूषण, कीट दबाव, कीटनाशक प्रदूषण और जैव विविधता का नुकसान होता है।

खेती की वजह से कृषि से संबंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ सकता है। कृषि में बदलाव के बिना, तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करना असंभव बना सकता है।

मौजूदा टिकाऊ कृषि पद्धतियों और तकनीकों को यदि व्यापक पैमाने पर लागू किया जाए, तो वे कृषि के कारण होने वाले उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकते हैं। इसे हासिल करने के लिए, सरकारों को सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को दूर करने और किसानों और खाद्य उत्पादकों के लिए जलवायु के अनुकूल समाधान सुलभ बनाने के लिए काम करना होगा।

शोध पत्र में कहा गया है कि हमें कृषि की आवश्यकता है, लेकिन मानवता के भविष्य के लिए यह भी आवश्यक है कि हम कृषि के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम करें। पचास साल पहले कृषि के प्रभाव न के बराबर थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। दुनिया भर में आजमाए जा रहे नए तरीकों का मूल्यांकन करके उन तरीकों की पहचान की गई है जो पर्यावरणीय नुकसान को कम करते हुए फसलों की उपज को बढ़ाते हैं।

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मौजूदा टिकाऊ कृषि पद्धतियों और तकनीकों को यदि व्यापक पैमाने पर लागू किया जाए, तो वे कृषि के कारण होने वाले उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकते हैं।

एक बार जब इन नई पद्धतियों का परीक्षण और सत्यापन हो जाता है, तो हमें एक कृषि विधेयक की आवश्यकता होती है जो किसानों को फसलों के उत्पादन और पर्यावरण में सुधार दोनों के लिए जरूरी है। किसान पृथ्वी पर 40 फीसदी हिस्से के संरक्षक हैं। बेहतर प्रबंधन करने से हम सभी को बहुत फायदा होता है। मुद्रास्फीति को कम करने जैसे अधिनियम, कानून ने हमारे खेतों को और अधिक कुशल बनाने में मदद करने के लिए संसाधन प्रदान किए हैं।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से बताया कि उन्होंने कृषि और जलवायु के बीच इस संबंध के सभी पहलुओं पर विचार किया ताकि यह तय किया जा सके कि नई पद्धतियां कहां सबसे अधिक प्रभावी हैं। जबकि कार्बन को अलग करने की वर्तमान में एक प्राथमिकता है, एक साथ चलने वाला नजरिया जो कृषि दक्षता और नाइट्रस ऑक्साइड जैसे प्रदूषकों पर गौर करता है, वह जलवायु के लिए बहुत बड़ा फायदा और कृषि के लिए अधिक स्थिर भविष्य प्रदान कर सकता है।

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शोधकर्ताओं की टीम ने अगले कई कदमों की पहचान की है। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, इससे जुड़े लोगों को कुशल और जलवायु के अनुकूल कृषि को किफायती बनाया जाना चाहिए। सटीक खेती, बारहमासी फसल एकीकरण, एग्रीवोल्टाइक्स, नाइट्रोजन फिक्सेशन और नए जीनोम संपादन उन उभरती हुई तकनीकों में से हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करते हुए कृषि में उत्पादन बढ़ा सकती हैं।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से जलवायु अनुकूल कृषि और ऑन-फार्म रोबोट जैसी नई तकनीकों पर आगे के शोध करने की भी सलाह दी है।

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