कम लागत, तेजी से विकसित होंगी रागी, इक्रीसेट ने विकसित की पहली 'रैपिड-रागी' तकनीक

कम समय और लागत में विकसित होंगी रागी की नई किस्में, इक्रीसेट ने विकसित की दुनिया की पहली स्पीड ब्रीडिंग तकनीक
कम लागत, तेजी से विकसित होंगी रागी, इक्रीसेट ने विकसित की पहली 'रैपिड-रागी' तकनीक
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इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) ने रागी की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक क्रांतिकारी तकनीक पेश की है। इस तकनीक की मदद से रागी की बढ़वार और बीज उत्पादन की प्रक्रिया पहले से कई गुना तेज हो जाएगी।

वैज्ञानिकों ने इस नई तकनीक को "रैपिड-रागी" नाम दिया गया है, जो रागी के लिए दुनिया की पहली स्पीड ब्रीडिंग तकनीक है।

वैज्ञानिकों को भरोसा है कि यह तकनीक रागी के फसल चक्र को बेहद छोटा कर देगी, जिससे नई किस्में तेजी से और बेहतर तरीके से तैयार की जा सकेंगी। इससे कृषि अनुसंधान और खेती में क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद की जा रही है।

साल में संभव हो सकेंगी चार से पांच फसलें

इस "रैपिड-रागी" तकनीक के जरिए अब रागी की फसल तेजी से बढ़ेगी। पहले पारंपरिक कृषि में जहां एक साल में रागी की एक से दो फसल होती थी। वहीं इस नई तकनीक की मदद से साल में चार से पांच फसल ली जा सकेंगी।

इक्रीसेट की यह नई खोज रागी की कृषि और शोध में बड़ा बदलाव ला सकती है, खासकर एशिया और अफ्रीका में, जहां रागी आहार का एक मुख्य हिस्सा है और स्कूलों के भोजन और पोषण कार्यक्रमों में इसकी भूमिका तेजी से बढ़ रही है।

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इस बारे में इक्रीसेट के महानिदेशक डॉक्टर हिमांशु पाठक ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "चने और अरहर के बाद यह इक्रीसेट द्वारा विकसित तीसरी ओपन-एक्सेस स्पीड ब्रीडिंग तकनीक है।"

उनके मुताबिक यह अनुसंधान में लगने वाले समय और लागत दोनों को कम कर देती है। साथ ही जलवायु-सहनशील और पौष्टिक किस्मों के विकास को तेज बनाती है।

ज्वार और बाजरे के बाद रागी को तीसरा सबसे अहम मिलेट माना जाता है। 2018 में भारत ने इसे बढ़ावा देने के लिए 'राष्ट्रीय बाजरा वर्ष' घोषित किया था, और 2023 में संयुक्त राष्ट्र ने 'अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष' के रूप में मनाया। तभी से रागी जैसे पोषक मोटे अनाजों को लेकर दुनियाभर में रुचि बढ़ी है।

इक्रीसेट में रिसर्च और इनोवेशन के उप-महानिदेशक डॉक्टर स्टैनफोर्ड ब्लेड का कहना है, "रागी जैसी फसलों की पारंपरिक ब्रीडिंग प्रक्रिया लंबी और खर्चीली रही है। वहीं दुनिया का ध्यान गेहूं, धान और मक्का जैसे प्रमुख अनाजों पर केंद्रित रहने के कारण ये फसलें लंबे समय तक उपेक्षित रहीं। लेकिन स्पीड ब्रीडिंग जैसी तकनीकें इन उपेक्षित फसलों को मुख्यधारा में लाने और उनके सुधार में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।

100 दिन की फसल अब 68 दिन में होगी तैयार

इक्रीसेट द्वारा साझा जानकारी से पता चला है कि नई तकनीक की मदद से रागी की 100 से 135 दिन में तैयार होने वाली फसल को महज 68 से 85 दिन में तैयार किया जा सकता है। यदि फसल पकने पर उसे सही समय पर काटा जाए तो यह अवधि और एक सप्ताह कम हो सकती है।

इसमें बीज जल्दी अंकुरित होते हैं, पौधा तेजी से बढ़ता है, फूल जल्द आते हैं और फसल जल्द पक जाती है। यह बदलाव बेहतर प्रकाश, तापमान, नमी नियंत्रण, सिंचाई, पोषण और पौधों की दूरी जैसे कारकों के अनुकूल और बेहतर प्रबंधन से संभव हुआ है।

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इक्रीसेट के ग्लोबल रिसर्च प्रोग्राम डायरेक्टर डॉक्टर सीन मेयस ने विज्ञप्ति में जानकारी दी, "हमने इस तकनीक को चार वर्षों तक परखा। हमारा उद्देश्य सिर्फ फसलों का जल्दी बढ़ाना ही नहीं था, बल्कि यह भी था कि तकनीक सस्ती, सरल और कम खर्चीली हो, ताकि अलग-अलग जगहों पर काम करने वाले शोधकर्ता इसका उपयोग कर सकें।

चने और अरहर की तरह, जिन्हें उगाने के लिए विकास के अलग-अलग चरण में खास रोशनी की जरूरत होती है, वहीं रागी को ऐसे विशेष प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए रागी की ब्रीडिंग का तरीका आसान और सस्ता है। वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक रोशनी के साथ थोड़ा कृत्रिम प्रकाश भी दिया, खासकर बादलों वाले दिनों में, जिससे अच्छा परिणाम मिले हैं।

इक्रीसेट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर शोभन सज्जा, जो इस अध्ययन के प्रमुख लेखक भी हैं, उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी, "यह पहली बार है जब छोटे मिलेट्स के लिए कोई स्पीड ब्रीडिंग तकनीक विकसित की गई है। अब हम इसी मॉडल को आधार बनाकर कोदो, कंगनी, चेना, सांवा और समा जैसी अन्य फसलों के लिए भी तकनीक विकसित कर रहे हैं, जिनके शुरुआती नतीजे काफी उत्साहजनक हैं।"

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