भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि चाय के पौधों की जड़ों के आसपास पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी यानी राइजोस्फीयर में मौजूद कुछ बैक्टीरिया मक्के को बेहतर तरीके से बढ़ने में मददगार हो सकते हैं।
इतना ही नहीं, यह बैक्टीरिया मक्के की रोग-संबंधी कोशिकीय तनाव का प्रतिरोध करने की क्षमता को भी बढ़ा सकते हैं। ऐसे में इन सूक्ष्मजीवों का उपयोग फसलों में पर्यावरण अनुकूल जैवउर्वरक के रूप में किया जा सकता है। कोलकाता स्थित बोस इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल आर्काइव्स ऑफ माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इन इन जीवाणुओं को पादप वृद्धि संवर्धक राइजोस्फीयर (पीजीपीआर) उपभेदों के रूप में जाना जाता है। इनका उपयोग फसलों की पैदावार को बढ़ाने के लिए प्रभावी जैव उर्वरक के रूप में किया जा सकता है।
गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र में बढ़ता रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है। यही वजह है कि वैज्ञानिक ऐसे उर्वरकों की खोज में लगे हैं जो पौधों के विकास के साथ-साथ पर्यावरण और स्वास्थ्य के नजरिए से भी सुरक्षित हों।
बता दें कि इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ता अभ्रज्योति घोष के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में चाय के पौधों की जड़ों से 90 जीवाणुओं को अलग किया था। उन्होंने जीवाणु रहित मक्के के बीजों को अलग-अलग जीवाणु कल्चर में मिलाया। इसके बाद 28 डिग्री सेल्सियस पर रात भर इनक्यूबेट करने के बाद, उन्होंने बीजों को जीवाणुरहित मिट्टी में रोप दिया।
कैसे मक्के के पौधे की मदद करता है यह बैक्टीरिया
जिन बीजों को रात भर जीवाणु कल्चर में इनक्यूबेट किया गया था, उनकी जड़ों और अंकुर में दूसरे बीजों की तुलना में कहीं ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई। ऐसे कैसे मुमकिन हुआ, इस बार में शोधकर्ताओं ने लिखा है कि बैक्टीरिया ने बीजों के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्व देकर उनकी मदद की। शोध के मुताबिक बैक्टीरिया ने हवा में मौजूद नाइट्रोजन को स्थिर करके पौधों के लिए फॉस्फेट के उपयोग को आसान बना दिया।
इसकी वजह से मक्के के पौधों की जड़ों और टहनियों में कैटेलेज और एस्कॉर्बेट पेरोक्सीडेज जैसे एंटीऑक्सीडेंट एंजाइम की सक्रियता बढ़ गई। साथ ही जड़ों में तनाव को नियंत्रित करने वाले अमीनो एसिड प्रोलाइन के स्तर में भी इजाफा दर्ज किया गया।
इतना ही नहीं ब्रेवीबैक्टीरियम ने फफूंद से संक्रमित मक्के के पौधों में बीमारी को कम करने में मदद की। साथ ही इसके साथ अन्य जीवाणुओं ने विशिष्ट जीन और अणुओं को सक्रिय करके पौधों की प्रतिरक्षा को मजबूत बनाने में मदद की। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह एक वैक्सीन की तरह काम करता है, जो पौधों को संक्रमित होने से पहले ही सुरक्षित रखता है।