बजट 2025-26: बढ़ रही आपदाएं, लेकिन फसल बीमा को पिछले सात सालों में मिला सबसे कम

फसल बीमा में बड़ी गिरावट क्या इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा
बजट 2025-26: बढ़ रही आपदाएं, लेकिन फसल बीमा को पिछले सात सालों में मिला सबसे कम
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एक फरवरी को जारी केंद्रीय बजट 2025-26 में सरकार की महत्वाकांक्षी फसल बीमा योजना के लिए पिछले सात वर्षों में सबसे कम धनराशि आबंटित की गई है।

यह तब है जब एक दिन पहले ही जारी आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात को स्वीकार किया गया है कि देश में चरम मौसमी घटनाओं के चलते फसलों की पैदावार पर असर पड़ रहा है, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) को केंद्रीय बजट 2025-26 में 12,242.27 करोड़ रुपए मिले हैं। यह 2024-25 के 15,864 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान (आरई) से करीब 23 फीसदी कम है।

वहीं 2019-20 के बाद से देखें तो यह इस योजना को मिलने वाली अब तक की सबसे कम धनराशि भी है।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरूआत फरवरी 2016 में की थी। इस योजना का उद्देश्य फसलों के खराब होने पर व्यापक बीमा कवर प्रदान करना था, जिससे किसानों की आय को स्थिर रखने में मदद मिल सके।

31 जनवरी, 2025 को जारी आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि किस प्रकार पीएमएफबीवाई किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों से होने वाले फसल नुकसान से बचाने में मदद करती है, जिससे उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिलती है।

ऐसे समय में जब चरम मौसमी घटनाएं न केवल फसलों को खराब कर रही हैं, साथ ही इनसे आपूर्ति श्रृंखलाएं भी बाधित हो रही हैं, तो कहीं इस योजना के बजट में की गई कटौती इस बात की मौन स्वीकृति तो नहीं कि पीएमएफबीवाई का फायदा किसानों को नहीं मिल रहा है। खासकर तब जब बीमा कंपनियां इस योजना से पीछे हट रही हैं और बीमा में अपनी हिस्सेदारी कम कर रही हैं।

किसानों को मिलने वाले बीमा दावों में आ रही गिरावट

इसे सरकार के अपने आंकड़ों में भी देखा जा सकता है, किसानों को दिए जाने वाले बीमा दावों में भारी गिरावट देखी गई है, जो 2018-19 में 29,444.66 करोड़ रुपए से घटकर 2023-24 में 10,391.39 करोड़ रुपए रह गए हैं।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत दावों का भुगतान न होना या देरी से भुगतान होना, योजना के प्रति किसानों के मोहभंग का प्रमुख कारण रहा है।

दूसरी तरफ देश में चरम मौसमी घटनाओं का कहर बढ़ रहा है, खासतौर पर लू की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, 2022 से 2024 के बीच भारत को औसतन 18 फीसदी दिनों में लू का प्रकोप झेलना पड़ा, वहीं 2020 से 2021 के बीच यह आंकड़ा महज पांच फीसदी था।

आर्थिक सर्वेक्षण में डाउन टू अर्थ के आंकड़ों का हवाला देते हुए दिखाया गया है कि 2024 में चरम मौसमी घटनाओं की वजह से जितने फसल क्षेत्र को नुकसान पहुंचा, वो पिछले दो वर्षों की तुलना में अधिक था।

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